Govardhan Vasi Sanware Tum Bin Rahyo Naa Jaaye| श्री चतुर्भुज दास पद | गोवर्धनवासी साँवरे |
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श्री गोवर्धन वासी सांबरे लाल तुम बिन रह्यो न जाय हो। वृजराज लढ़ैते लाड़ले॥
वंक चिते मुसकाय केँ लाल सुन्दर बदन दिखाय।
लोचन तलफें मीन ज्यों लाल पलछिन कल्प विहाय॥ ॥1॥
सप्तक स्वर बंधान सों मोहन वेणु बजाय।
सुरत सुहाई बाँधिके नेक मधुरें मधुरें गाय॥ ॥2॥
रसिक रसीली बोलनी गिरि चढ़ गाय बुलाय।
गाय बुलावै धूमरी कछु ऊँची टेर सुनाय॥॥3॥
द्रष्टिपरे जा दिवस ते तबते रुचि न आन।
रजनी नींद न आवहिं मोहि विसर्यो भोजनपान॥ ॥4॥
दरसन को नैना तपें वचन सुनन को कान।
मिलवे को जियरा तपै जिय के जीवन प्राँन॥ ॥5॥
पूरण शशि मुख देखके चित चोहट्यो वाही ओर।
रूप सुधारस पान को जैसे कुमुद चकोर॥ ॥6॥
मन अभिलाषा यह रहै लगै न नैन निमेष।
इकटक देखूँ भामतो नटवर नागर भेष॥ ॥7॥
लोक लाज विध वेधिकें छाँड्यो सकल विवेक।
कमल कली रवि ज्यों बढ़ै छिन छिन प्रीति विसेष॥ ॥8॥
कोटिक मन्मथ वारनें देखी डगमगी चाल।
युवती जनमन फंदना अम्बुज नयन विशाल॥ ॥9॥
कुँज भवन क्रीड़ा करौ सुखनिधि मदन गोपाल।
हम वृन्दावन मालती तुम भोगी भ्रमर भुआल॥ ॥10॥
यह रटलागी लाड़िले जैसैं चातक मोर।
प्रेमनीर वरषावहो नवघन नन्द किशोर॥ ॥11॥
युग युग अविचल राखियो यह सुख शैल निवास।
श्री गोवर्धन धर रूप पे बलजाय चतुर्भुज दास॥ ॥12॥
- श्री चतुर्भुज दास जी