गुरु रविदासजी चरणछोह गंगा खुरालगढ़ इतिहास
एक बार गुरु रविदास जी महाराज हरियाणा के शहर कुरुक्षेत्र में एक संत सम्मेलन में आए हुए थे जिसमें सतगुरु कबीर साहिब नामदेव जी मीराबाई रैदास जी जगजीवन दास ने भी शिरकत की थी ॥ सारी रात संतों ने धार्मिक प्रवचन के साथ संत सम्मेलन किया ॥
सुबह मीराबाई अपने पूज्य गुरु रविदास जी से कहने लगी , महाराज मेरा मासड़ राजा वैन यहां से नजदीक खुरालगढ़ का राजा हैँ ॥ उसके राज्य में जो भी साधु संत प्रवेश करता हैँ , उसे वह चक्की पीसने की सजा देता हैँ , मुझे ये सुन कर अत्यंत दुःख होता हैँ ॥ साधु संत भी मानसिक रूप से प्रताड़ित होते हैँ ॥ इसलिये मेरी आपसे करबद्ध प्रार्थना हैँ कि , आप खुरालगढ़ चल कर उन्हें सन्मार्ग पर लाने की कृपा करें ॥ मैं भी गुरु जी आपकी अत्यंत शुक्रगुजार हूंगी ॥ गुरु रविदास जी तो स्वयं ही उसी पापी के पापों से साधु संतों को मुक्त करने कुरुक्षेत्र आए थे ॥ गुरु जी ने मीराबाई को कहा , ठीक हैँ हम आपके साथ राजा वैन के राज्य में अवश्य चलेंगे ॥
गुरु रविदास महाराज अपने प्रिय साथियों के साथ कुरुक्षेत्र से चंडीगढ़ होते हुए भी शाम को रोपड़ पहुंचे ॥ गुरु रविदास जी और अन्य सभी संत महापुरुषों का स्थानीय संतों और संगत ने हार्दिक अभिनंदन किया ॥ थके हुए संतों ने रात को कुछ समय धार्मिक चर्चा की और सो गये ॥ सुबह पुन अपने लक्ष्य की ओर सभी संतवृन्द चल पड़े ॥ गुरु जी अपने संत वृन्द के साथ नंगल होते हुए संतोषगढ़ रुके जहाँ उन्हें पूर्णरूपेण रात हो गईं ॥ इस गांव में सभी लोग चमार जाति के रहते आए हैं ॥ गुरु रविदास जी भी हमेशा मार्शल चमार जाति के घर ही रात बिताते थे ! गांव वासियों ने अपने भगवान गुरु रविदास और अन्य पूज्य गुरुओं के गांव में पधारने पर अपने आपको धन्य समझ कर सभी गुरुओं का जोरदार स्वागत किया ॥ सभी के निर्मल स्वच्छ जल से पांव धोये ॥ सभी को खाना खिलाया और आराम करने केलिये शयन व्यवस्था की ॥ सभी गुरुओं ने रात को वहां शब्द कीर्तन किया और स्थानीय जनता की सेवा का मेवा देकर उपकृत किया ॥
दूसरे दिन सभी संत खुरागढ़ केलिये रवाना हो गये ॥ वे गांव टाहलीबाल , बाथड़ी होते हुए खुरालगढ़ पहुंच गये ॥ सभी गुरुओं ने राजा वैन के राज्य में डेरा डाल दिया ॥ दोहपर का खाना वहीँ खाया ॥ उधर राजा के गुप्तचरों ने राजा को साधु संतों के राज्य में प्रवेश की सूचना देदी ॥ राजा वैन गुप्तचरों की सूचना सुनते ही आग बबूला हो गया ॥ उसनेअपने अहदियों को आदेश दिया , तुरंत साधुओं को दरबार में बुलाओ ॥ उनकी यहां प्रवेश करने की हिम्मत कैसे हुई ? अहदी तुरंत उस स्थान पर चले गये जहाँ सभी साधु संत ठहरे हुए थे ॥ अहदियों ने गुरुओं को राजा वैन का फरमान सुना कर उनके दरबार में हाजर होने केलिये कहा ॥ गुरु रविदास जी के साथ सभी साधु राजा के दरबार में हाजर हो गऐ ॥ किसी भी संत ने राजा वैन को सलाम कलाम नहीं की जिससे क्रोद्ध की भठ्ठी में जलते हुए राजा ने साधुओं को कड़े स्वर में पूछा , क्या आपको ज्ञान हैँ कि मेरे राज में जब साधु संत प्रवेश करते हैं तो उन्हें क्या करना पड़ता हैँ ? गुरु रविदास जी महाराज ने राजा वैन को उतर देते हुए कहा , नहीं राजन हम नहीं जानते ॥ राजा ने गुस्से से कहा , यहां साधुओं को चक्की में अन्न पीस कर आटा तैयार करना पड़ता हैँ ॥ गुरु रविदास जी ने राजा को हुक्म दिया आप अपने सारे राज्य का सारा आनाज तुरंत इकठ्ठा करके एक जगह ढेर लगा दो और वहीँ एक चक्की भी लगा दो ॥ जब हमारी चक्की चलेगी तो हमारे संत निरंतर रात दिन चक्की चलाएंगे ॥ काम करते समय हमें रुकावट नहीं होनी चाहिये ॥
राजा वैन ने समीप के उजाड़ बियाबान जंगल के पास नाले में चक्की लगा दी ॥ राजा ने भी राज्य का सारा अन्न वहीँ इकठ्ठा करबा दिया ॥ जब पूज्य गुरु रविदास जी वहां पहुंचे तो सभी संत गर्मी के कारण पसीने से भीग गये ॥ कबीर साहिब , गुरु रविदास जी से कहने लगे गुरु महाराज हमें प्यास बहुत सता रही हैँ ॥ प्यास इतनी लगी हुई हैँ कि जान निकली जा रही हैँ ॥ गुरु रविदास जी ने कबीर साहिब की पुकार तुरंत सुनकर अपने दाहिने पांव के अंगूठे से सूखे पठार से एक पत्थर उखाड़ा जिससे वहाँ गंगा हजार हो गईं और पानी की बौछारें निकलनी शुरू हो गईं ॥ जब राजा वैन को इस हैरतंगेज घटना का पता चला तो वह दंग रह गया ॥ उधर जब चक्की चली तो वह खुद ही चलती रही ॥ जब राजा वैन चलती चक्की देखने केलिये आता तो क्या देखता कि:--- चक्की को साधु हाथ से चला रहे हैँ जबकि चक्की स्वत ही चलती रहती थी ॥ सारा अन्न कुछ ही दिनों में पीस दिया गया ॥ जनता को इतनी भूख बढ़ गईं कि राज्य का अन्न भी खत्म होता गया ॥ जब राजा वैन को इस घटना का पता चला कि राज्य का सारा अन्न खत्म हो रहा हैँ जिससे आहत होकर वह नंगे पांव गुरु रविदास जी के पास अनुनय विनय करने लगा ॥ महाराज मैं हमेशा गलती करता आया हूँ , मुझे बख्श लो ॥ मैं तौबा करता हूँ ॥ अब मैं किसी को भी दुखी नहीं करूंगा ! मैं सभी साधुओं का आदर करूंगा ॥ मुझे माफ कर दो ॥ गुरु रविदास जी तो अपनी क्रान्तिकारी योजना के अनुसार पापियों के पाप कर्म छुड़ा रहे थे ॥ गुरु रविदास जी ने राजा वैन को माफ कर दिया मगर वह भी संन्यास लेकर गुरु जी का मुरीद बन गया ॥गुरु जी ने राजा का दिल परिवर्तित करके पंजाब के लिये प्रस्थान कर दिया ॥ राजा वैन का आज भी संतोषगढ़ कस्बे से वाया नंगड़ा ऊना जाने वाली सड़क के किनारे एक छोटा सा मंदिर हैँ ॥ ये मंदिर इसीलिये विकास नहीं कर सका कि इस का संबंध गुरु रविदास जी से हैँ अन्यथा गुरु रविदास जी किसी ब्राह्मण के मुरीद होते तो यहां आलीशन मंदिर होता ॥
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