HIMALAYAN HIGHWAYS| आपदा की दहशत,पलायन और खूबसूरत " लिंगड़ी " गाँव | बोरागाड़ देवाल,चमोली UTTARAKHAND
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हिमालयन हाइवेज।HIMALAYAN HIGHWAYS
पहाड़ों के सर्द मौसम की गुनगुनी धूप में अपने अतीत को याद कर कभी उदास होना या फिर किसी याद के साथ मुस्कुरा देना और कुछ नही तो चुप हो जाना ये भी इन पहाड़ों की एक अदा होती है।
भौगौलिक परिस्थितियां भले ही एकांत को पसंद करती हो लेकिन यहां जीवन में नीरसता कहीं नजर नही आती। लोकगीत हमेशा से यहां जीवन को परिभाषित करते आये है और ये सिलसिला सदियों से यू ही जारी है।
आपदाएं इन्तेहाँ लेने के लिए हमेशा तैयार रहती है लेकिन अपनी जड़ों से जुड़े रहने की जिद हमेशा इस तैयारी पर भारी साबित हुई है। इसीलिए तो पलायन के बाद भी लोग वापस गांव आने के बहाने तलाश ही लेते है।
ये सादगी आत्मीयता और अपनी बात खुले दिल से कहने के लिए इंसान का जिंदादिल होना जरूरी है जो आपको यहां हर जगह आसानी से मिल जाएगा।
नमस्कार हिमालयन हाइवेज के एक ओर खास एपिसोड में आपका स्वागत है। उत्तराखण्ड के सुदूर में स्थित गांवों से आपका परिचय कराने की इस सीरीज में आज हम आपके लिए लेकर आये है देवाल विकासखण्ड में स्थित पिंडर नदी के किनारे बसा खूबसूरत लिंगड़ी गांव। अपने अतीत को साथ लिए लिंगड़ी गांव वर्तमान में पिंडर नदी की तेज धाराओं से हो रहे कटान से दहशत में भले ही हो लेकिन जीवन के रंग यहां आज भी अपनी विरासत को सहेज कर आगे बढ़ रहे है। एक दूसरे से सटे मकानों की लंबी लाइन दूर से बेहद शानदार नजर आती है। 2013 में आई आपदा के जख्म लेकर आगे बढ़ रहे लिंगड़ी गांव में जीवन तेजी से बदल रहा है और दिन ब दिन पलायन हो रहे परिवारों के पैतृक आवास पर लोहे के तालों की संख्या भी उसी अनुपात में बढ़ रही है। आइए शुरू करते है आज का ये सफर इस खूबसूरत माँगल गीत के साथ....
उत्तराखण्ड के चमोली जनपद में स्थित है देवाल विकासखण्ड, इसी विकासखण्ड के सुदूर खेता मानमती को जोड़ने वाली सड़क पर स्थित है बोरागाड बाजार, किसी दौर में इस क्षेत्र में यही बाजार आवश्यक वस्तुओं की खरीदारी का बड़ा केंद्र हुआ करता था। बोरागाड बाजार से पिंडर नदी को झूला पुल के सहारे पार कर आप पहुंचते है लिंगड़ी गांव में। लगभग अस्सी से अधिक परिवारों वाले इस गांव में आबादी का विस्तार अलग अलग तोकों में भी हुआ है। गांव के इतिहास, लिंगड़ी नाम रखने की वजह और अतीत की जीवनशैली को लेकर यहां रहने वाले बुजुर्ग विस्तार से चर्चा करते है।
पिछले कुछ सालों में लिंगड़ी गांव पिंडर नदी के चलते मुश्किल में नजर आता है और यहां पिंडर नदी द्वारा हो रहा भूमि का कटान गांव के बिल्कुल समीप पहुंच गया है। बरसात के मौसम में यहां ग्रामीणों की नींद उड़ी रहती है साथ ही हर पल दहशत में रहना मजबूरी बन जाता है। 2013 की आपदा में गांव को जोड़ने वाला झूला पुल भी पिंडर नदी के बहाव में बह गया था। ग्रामीण लम्बे समय से पिंडर नदी के किनारे जमीन के कटाव रोकने के लिए विशेष प्रयास करने की मांग कर रहे है लेकिन इस पर अभी तक कार्रवाई नही हो पाई। पिंडर नदी से उपजी ये समस्या गांव में पलायन की रफ्तार को गति दे रही है जिससे गांव में बंद मकानों की संख्या बढ़ती जा रही है।
लिंगड़ी गांव में जीवन हमेशा से पहाड़ी क्षेत्रों की मुश्किलों को साथ में लिए आगे बढ़ता आया है और आज भी इस दूरस्थ क्षेत्र में समस्याओं की कमी नही है। सड़क संचार जैसी बुनियादी सुविधाएं मिलने से ग्रामीणों को लंबे पैदल सफर से राहत मिली है लेकिन अभी भी यहां कई सुविधाओ का अभाव है। स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए ग्रामीणों को आज भी कई किलोमीटर दूर जाकर इलाज कराना मजबूरी है। कृषि पशुपालन का दायरा यहां भी अब कम हुआ है लेकिन महिलाओं का जीवन आज भी बेहद मेहनत और मुश्किलों का है।
लिंगड़ी गांव में धार्मिक आस्था को परिभाषित करते मंदिर और पूजा विधान है। समय समय पर यहां आयोजित होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में ग्रामीण जमा होते है। शहरों में निवास कर रहे लोग भले ही अपनी निजी मजबूरी के चलते कम दिनों के लिए गांव पहुंचते हो लेकिन आयोजनों के समय आज भी हर परिवार गांव पहुंचने की कोशिश जरूर करता है। अतीत से ही दूरस्थ पहाड़ों में धार्मिक आस्था लोगों को हर मुश्किल से लड़ने का सहारा देती आई है और आज भी देवी देवताओं में लोगों की यही आस्था दिखती है।
खूबसूरत लोकसंस्कृति लिंगड़ी गांव में भी नजर आती है और यहां इसके रंग अब भी नजर आते है। पहाड़ों में जीवन को संतुलित करते लोकगीत ओर लोकनृत्य हमेशा से अपनी गहरी छाप छोड़ते आये है और आधुनिक मनोरंजन के साधनों के बाद भी अतीत के यही रंग लोगों को ज्यादा पसंद आते है।
लिंगड़ी गांव में जीवन के खूबसूरत रंग मौजूद है और उम्मीद की जानी चाहिए कि ये रंग और ज्यादा चमकदार नजर आए। आपदा को लेकर सरकारें यदि जल्द से जल्द पिंडर नदी के किनारे सुरक्षा दीवार बनाये तो ग्रामीणों को राहत मिल सकती है। पहाड़ों में जीवन हमेशा अपनी जड़ों से रहने की जिद करता आया है और ये जिद हर शहर में रहने वाले प्रवासियों में भी दिख जाती है। लेकिन सवाल फिर वही बुनियादी सुविधाओं और संसाधनों का है जो सरकारों के दावों ओर वादों के बीच कहि खो जाते है।
हिमालयन हाइवेज के आज के एपिसोड में इतना ही जल्द ही एक नए एपिसोड के साथ आपसे मुलाकात होगी। आपको हमारा यह एपिसोड कैसा लगा कृपया कमेंट कर अवश्य बताए साथ ही हमारे चैनल को अवश्य सब्सक्राइब कीजियेगा
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