ज्वालामुखीय आइफेल पश्चिमी जर्मनी में एक शांत इलाका है. इस शांति से पहले, सैकड़ों-हजारों सालों तक, ज्वालामुखी यहाँ उत्पात मचाती रही. लेकिन क्या ये प्राकृतिक ताक़तें फिर से सक्रिय हो सकती हैं?
आज का आइफेल इलाका ठंडे लावा और ज्वालामुखी की राख से बना है. लेकिन सतह के नीचे गहराई में, पृथ्वी अभी भी बुदबुदा रही है. दरअसल, ऐसे कई संकेत हैं कि ज़मीन के अँदर होने वाली ये आवाज़ वास्तव में गर्म मैग्मा की है जो पृथ्वी के नीचे एक जगह से दूसरी जगह जा रही है. मध्य यूरोप में अब तक के सबसे कम उम्र के ज्वालामुखी क्षेत्र, आइफेल में यहां एक और विस्फोट का खतरा कितना बड़ा है?
इस क्षेत्र में स्थित लाख झील के तट पर एक विशेष घटना वैज्ञानिकों का ध्यान खींच रही है. यहां कार्बन डाइऑक्साइड गैस के बुलबुले उठते हैं. वे लगभग 40 किलोमीटर की गहराई में स्थित एक विशाल मैग्मा चैंबर तथाकथित "आइफेल प्लूम" से आते हैं. ये बुलबुले हमें पृथ्वी के अंदरूनी हिस्से में होने वाली प्रक्रियाओं के बारे में क्या बताते हैं? वैज्ञानिकों को यकीन है कि ज्वालामुखी किसी समय फिर से सक्रिय हो सकते हैं. लेकिन यह कब और कहां होगा? इसका यथासंभव सटीक पता लगाने के लिए, वैज्ञानिक लगातार पृथ्वी की गहराई को सुन रहे हैं.
डॉ. ब्रिगिटे क्नपमायर-एंड्रन, बेंसबर्ग भूकंप स्टेशन की प्रमुख हैं, जहाँ मापने की सुविधाओं का एक व्यापक नेटवर्क है. अल्ट्रासेंसिटिव डिवाइस हर झटके को दर्ज करते हैं, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो. 2013 में, जर्मनी में अब तक के सबसे गहरे भूकंपों ने सनसनी मचा दी थी.
प्रोफेसर क्लाउस राइषर्टर ज्वालामुखी पर शोध करते हैं. वह आपदाओं के प्रभावों का अध्ययन करते हैं. यहां तक कि अगर वर्तमान में और निकट भविष्य में विस्फोट के कोई संकेत नहीं भी हैं, तो उनका मानना है कि एक जागृत ज्वालामुखी के बारे में समय रहते ही लोगों को चेतावनी देने में सक्षम होना, प्राथमिक लक्ष्य है.
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