झारखंडी हंडिया कैसे बनाया जाता है| How to make Adivasi Tribal Drink|
जोहार दोस्तों,
जैसा कि आप सभी लोगों को पता है कि हम लोग कुछ दिनों के लिए रांची से नेतरहाट घूमने के लिए आए हुए हैं जहां पर हमलोग आप सभी लोगों को नेतरहाट के कुछ अच्छे चीजों को दिखा रहे हैं।
आज की वीडियो में हमलोग नेतरहाट के एक गांव में आए हैं और वहां के लोगों से मिलकर बहुत से चीजों को देख रहे हैं,जो कि शहर में देखने को नहीं मिलता है।
हंडिया एक आदिवासी समाज के संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है,और हर शादी और त्यौहार में बहुत ही खास माना जाता है।
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बहुत अधिक जटिल नहीं होने से इसे तैयार करने में परहेज नहीं किया जाता है। वस्तुतः सीधे शब्दों में कहा जाए तो हड़िया चावल के भात से बनता है। लेकिन इसके मूल घटक में चावल के अतिरिक्त गेहूँ और मडु़वा को भी शामिल कर लिया गया है। गेहूँ और मड़ुवा का भी भात सीझा कर समान-विधि से हड़िया बनाया जाता है। चावल में अरवा और उसना दोनों प्रकार का उपयोग हो सकता है।
लेकिन विशेष रूप से उसना चावल के भात से ही हड़िया बनाने का प्रचलन है। चावल में करैनी धान का चावल अधिक उपयुक्त माना जाता है। स्वाद के कारण किसी भी किस्म के उसना चावल से परिवारों में हड़िया बनाने का प्रचलन है।कैसे तैयार होता है हड़ियाहड़िया बनाने की मूल प्रक्रिया फर्मन्टेशन है। इस प्रक्रिया में ‘रानू’ नामक एक जड़ी को भी मिलाया जाता है। विधि के अनुसार, सर्वप्रथम चावल को भात के रूप में पका देते हैं, जिसे भात ‘सीझाना’ भी कहते हैं। इसके बाद भात को ठंडा होने देते हैं। इसे भात का ‘जुड़ाना’ कहते हैं। जब यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है तो एक बडे़-चौड़े बर्तन या डलिया में भात को उडे़ल देते हैं, जिसे भात पसारना कहा जाता है।अब इस पसरे हुए न गर्म न ठंडे भात मं रानू नामक जड़ी के पाउडर को अच्छी तरह मिला देते हैं और फिर जड़ी मिले इस पदार्थ (भात) को तसला या अन्य उपयुक्त बर्तन में रखकर गलाने (सड़ने) या कहें तो फर्मेन्टेशन के लिए छोड़ देते हैं। इसमें अभी पानी नहीं मिलाया जाता है। इस कार्य में परिवार की महिलाआें का हीं विशेष योगदान होता है। सर्वेक्षण के अनुसार जाड़े के दिनों में सिर्फ चावल (भात) और ‘रानू’ के मिश्रण को हड़िया के रूप में तैयार होने में चार से पॉंच दिन या एक-दो दिन अधिक भी समय लग सकता है। जबकि गर्मी के दिनों में दो-तीन दिन में ही हड़िया का माल तैयार हो जाता है।
कैसे सेवन करते हैं हड़ियाहड़िया का पदार्थ तैयार हो जाने के बाद अब उसमें शुद्ध और साफ पानी मिला कर धीरे-धीरे बर्तन को हिलाते हैं, जब हिलाते-हिलाते हड़िया-पदार्थ में मिलाया पानी एकरूप से सफेद हो जाता है तब उसे ग्लास में, कटोरा में, कटोरी में या अन्य प्रकार के सुविधा जनक पात्र में छननी से छानकर और ढालकर पीते हैं। हड़िया अकेले में पीया जाता है, तो समूह में बैठकर भी पीया जाता है। हित-कुटुम्ब, नाते-रिश्तेदार, दोस्त-मित्रों को भी हड़िया परोस कर स्वागत करने की परम्परा झारखण्ड के जनजातीय एवं मूलवासी परिवारों में रही है और आज भी है। सार्वजनिक समारोहां में भी हड़िया का सेवन वर्जित नहीं है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हड़िया को प्रतिष्ठापूर्वक पारम्परिक पेय के रूप में लोग सेवन करने से परहेज नहीं करते।हड़िया और परम्परासर्वेक्षण के अनुसार स्पष्ट होता है कि झारखण्ड के जनसमाज में हड़िया एक मादक पेय होते हुए भी परम्परागत और सांस्कृतिक रूप से सर्वग्राह्य एवं प्रचलित पेय पदार्थ है। यह कृषि-श्रमिकों को भी पीने के लिए दिया जाता है। इससे श्रमिकों में उत्साह और श्रम की प्रवृति प्रबल होती है। जबकि हड़िया को किसी भी प्रकार के सामाजिक-सांस्कृतिक, धार्मिक या पारिवारिक कार्यक्रमों के दौरान भी पवित्रतापूर्वक उपयोग किया जाता है। इसे न केवल कुल देवता पर चढ़ाया जाता है बल्कि अन्य देवी-देवताओं पर भी चढ़ा कर श्रद्धा अर्पित करते हैंं। शादी-ब्याह, जन्म-मरण के अवसरों पर भी हड़िया का सामूहिक सेवन वर्जित नहीं है। वस्तुतः ऐसे अवसरों पर हड़िया का सेवन कराना सामाजिक रूप से अनिवार्य माना जाता है
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NITISH & CUISINE