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फतेहपुर सीकरी: मुगलिया सल्तनत की शान I इतिहास के अनजाने पहलू

Peepul Tree World (Live History India) 4,406 lượt xem 3 years ago
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ये भारत का सबसे विशाल दरवाज़ा बुलंद दरवाज़ा है। लाल और शौक़ीन बलुआ पत्थर से निर्मित इस दरवाज़े का निर्माण तीसरे मुगल बादशाह अकबर ने गुजरात में अपनी सैन्य जीत के अवसर पर सन 1575 में किया था। बुलंद दरवाज़ा हमें शक्ति से उस गढ़ की ओर ले जाता है, जिसकी शान-शौकत दुनियाभर में मशहूर थी। आगरा से लगभग चालीस किलोमीटर दक्षिण में स्थित फतेहपुर सीकरी मुग़ल स्थापत्य के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है। लेकिन, अगर हम आपको ये बताएं, कि इसका इतिहास इसके बताये गए काल से भी पुराना है ,और इसको वीरान छोड़ने की वजह आज भी एक राज़ है?

1571 ईस्वी में निर्मित फतेहपुर सीकरी की वास्तुकला में हिन्दू और इस्लामी तत्वों का अद्भुत मिश्रण देखा जा सकता है। यहां हर इमारत यहां उन कहानियों को अपने भीतर समेटा हुआ है, जो आगे चलकर मुगलों के वैभव विलास का हिस्सा बनें। आईये, आपको इस शानदार जगह से जुड़ी कुछ अनजानी बातों से रूबरू कराते हैं:

क्या आप जानते हैं, कि फतेहपुर सीकरी का इतिहास अपने बताए काल से भी पुराना है? हाल ही में हुए पुरातत्विक उत्खनन से इस जगह को पेंटेड ग्रे वेर सभ्यता का हिस्सा बताया गया है, जिसका काल 1200 से लेकर 600 ईसा पूर्व था। साथ-ही-साथ, यहां की खोजों ने इस स्थान को शुंग साम्राज्य से भी जोड़ा है, जिनका काल 185 से लेकर 75 ईसा पूर्व था। माना जाता है, कि इस जगह का नाम सीकरी सिकरवार राजपूतों ने दिया था, जिनका शासन इस क्षेत्र में सल्तनत काल से पहले दसवीं शताब्दी ईस्वी में सक्रिय था।

दिलचस्प बात ये है, कि अकबर से पहले ही फतेहपुर सीकरी पर मुगलों की छाप पड़ चुकी थी! सन 1527 में मुग़ल बादशाह बाबर और मेवाड़ के राणा सांगा के बीच लड़ी गयी लड़ाई खनुआ में लड़ी गयी थी, जो आज राजस्थान के भरतपुर ज़िले में मौजूद है, और सीकरी से करीब पंद्रह किलोमीटर दूर है! माना जाता है, कि लड़ाई में विजयी होने के बाद, बाबर ने यहां एक बाग़ का निर्माण किया और शक्रिया अदा करने के सिलसिले में जगह का नाम 'शुकरी" रखा था!

कई लोग ये नहीं जानते, कि फतेहपुर फतेहपुर सीकरी के निर्माण के पीछे एक आध्यात्मिक कारण था! सन 1568 में राजस्थान के रणथम्बोर से विजई होकर जब अकबर आगरा की और रवाना हो रहे थे, तब उन्होंने सीकरी गाँव में अपने घर बेटे होने की चाहत से सूफी संत शेख सलीम चिश्ती से मुलाक़ात की। बादशाह की दुआ ठीक एक साल बाद क़ुबूल हुईं, जब उनको बेटा हुआ, जिसको चिश्ती के नाम पर औपचारिक रूप से सलीम और प्यार से 'शेखु' पुकारा जाता था। यही बेटा आगे चलकर चौथा मुग़ल बादशाह जहांगीर बना!

बेटे होने की ख़ुशी में अकबर से उस पहाड़ी पर फतेहपुर फतेहपुर सीकरी का निर्माण किया, जहां चिश्ती रहा करते थे। फिर आगरा से उनकी राजधानी फतेहपुर सीकरी में स्थानांतरित हुई। यहां मौजूद दरगाह अकबर के उस सूफी संत के प्रति सद्भाव का साक्षी है।

प्रायद्वीप भारत में यूरोपीय ताकतों में सबसे पहले प्रभावशाली पुर्तगाली थे, जिनका प्रभाव मुग़ल दरबार में पहली बार सन 1580 ईस्वी में देखा गया था, जब पहला ईसाई पादरियों का जत्था फतेहपुर सीकरी में दाखिल हुआ। कहा जाता है, कि अकबर और इन पादरियों के बीच हुई गुफ्तगू भारत के प्रमुख धार्मिक चर्चाओं में गिनी जाती है। इसके कारण यहां पर पादरियों ने एक छोटा-सा गिरिजाघर और एक अस्पताल का भी निर्माण किया, जो उत्तर भारत में यूरोपीय शैली में निर्मित पहला अस्पताल था!

लोकप्रिय मान्यताओं के अनुसार फतेहपुर सीकरी को पानी की कमी की वजह से वीरान छोड़ा गया था। मगर क्या यह बात सच है? सोलहवीं शताब्दी के अंत में, अकबर ने अपना गढ़ लाहौर में बसाया था, जहां से उन्होंने ना सिर्फ फारसियों और उज़्बेकों को काबू में रखा, बल्कि मुगलिया सल्तनत के प्रभाव को पंजाब के साथ-साथ काबुल से लेकर निचले सिंध तक मज़बूत किया। लगभग एक दशक से ऊपर वक़्त बिताने के बाद अकबर वापस तो आये, मगर वो आगरा में रहे और फतेहपुर सीकरी में नहीं! आज भी इसका कारण इतिहासकारों के बीच एक सक्रिय चर्चा का विषय है! फिर भी, फतेहपुर सीकरी एक व्यापार और आध्यात्मिकता का सक्रिय केंद्र रहा, जिसने अकबर के बाद कई मुग़ल बादशाहों के मेज़बानी की। अट्ठारहवीं शताब्दी में ये जाटों और फिर मराठों के क़ब्ज़े में रहा।

फतेहपुर सीकरी की अहमियत एक बार फिर सन 1803 ईस्वी में आई, जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने दूसरे आंग्ल-मराठा युद्ध के बाद आगरा को क़ब्ज़ाया, जिसके बाद अंग्रेज़ों ने इसको अपनी छावनी बनाई और यहां तक कि यूरोपीय यात्रियों के लिए खाने-पीने और ठहरने का स्थान भी बनाया। मगर इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है, कि यहां मौजूद इमारतों की मरम्मत की ज़िम्मेदारी सबसे पहले इन अंग्रेज़ों ने ही ली थी!

आज भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन फतेहपुर सीकरी भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में एक गिना जाता है, जहां सालाना तौर पर लाखों की तादाद में सैलानी आते हैं। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में दर्ज ये जगह मुग़ल शान और नगर नियोजन के महत्वपूर्ण उदाहरणों के रूप में हर पर्यटक को मंत्रमुग्ध करता है!

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