Wellman movie is based real story baburao tajne
This Short FiLm Is Based True Story Of Bapurao Tajne
From - Dist. Washim , Maharashtra
Director :- Anil Ambhore Patil
Producer :- Devendra Shrivastav
Assi. Director :- Santosh gautam
Camera :- Rahul dev, Vicky kunte
Editing :- Sainath Fatpure (Banti)
Starring :- Ashvini vawhal (vini)
Starring :- Bhaskar Dakle
Cast :- babasaheb Dakle,Tribak Dakle,Jitndra Shinde,Dhanyshawar Dakle,Diganbar bodkhe,
Santosh bodkhe,bhausaheb bodkhe
Jagannath bhople,Ankush dakle.Sunil bodkhe,Sunita dakle
Surekha dakle,Shantabai dakle,Archana dakle,Alka dakle,Shobha dakle
Nirmala dakle,Sunita dongre,Mira dakle,rambhau sonvane,Pankaj misal
Anil dabhade,Suraj ahire,Sachin ambhore,Sapna shingare,Suraj maske
Abhijeet Patil,Anu chavan,mukesh rathod
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news :- नई दिल्ली: बिहार के दशरथ मांझी या उनके अकेले पहाड़ काटकर रास्ता बना देने की कहानी आज किसी परिचय की मोहताज नहीं। पिछले साल 2015 में रिलीज हुई बाॅलीवुड फिल्म 'मांझी' ने दशरथ मांझी की जिंदगी से हर दर्शक को जोड़ दिया। आज ऐसी ही एक और कहानी सुर्खियों में है। सूखा पीडि़त महाराष्ट्र का सीना चीरकर महज 40 दिनों में पानी निकाल देने वाले इस जुनूनी दलित की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है।
बापुराव ताजणे महाराष्ट्र स्थित वाशिम जिले के कलांबेश्वर गांव में मजदूरी कर अपना व परिवार का पेट पालते हैं। दलित होने के कारण बापुराव की पत्नी को ऊंची जाति के पड़ोसियों ने जब अपने कुएं से पानी नहीं लेने दिया तो बापुराव ताजणे को बेहद तकलीफ हुई। दिल ही दिल में यह बात उन्हें चुभने लगी। उस रात उन्हें नींद नहीं आई मानो दिल में कोई टीस चुभ रही थी। सुबह-सवेरे उठकर वह बाहर निकले और खुद ही कुआं खोदना शुरू कर दिया।
अचानक यह सब देख सभी सकते में पड़ गए। पड़ोसी ही नहीं, परिजन भी उनका मजाक उड़ाने लगे। लोगों को उनका यह जुनून पागलपन सा लगा। सही भी था, इतने पथरीले इलाके में भला कुआं खोदकर पानी निकालने की बात... किसे यकीन होगा! वह भी तब जब उस इलाके में पहले से ही आसपास के तीन कुएं और एक बोरवेल सूख चुके हों।
लेकिन कहते हैं न, जिद और जुनून हो तो कठिन से कठिन काम भी मुश्किल नहीं रह जाता। बापुराव रोजाना 8 घंटे की मजदूरी के बाद करीब 6 घंटे का समय कुआं खोदने के लिए देते। महज 40 दिनों में बापुराव ने बगैर किसी की मदद के अकेले ही कुआं खोदकर पानी निकाल दिया।
उन्होंने कभी किसी की बात का जवाब मुंह से नहीं दिया, लेकिन उनके काम ने सबका मुंह हमेशा के बंद कर दिया। खास यह है कि अमूमन एक कुआं खोदने में चार-पांच लोगों की जरूरत पड़ती है, लेकिन कुआं खोदने का कोई अनुभव न होने के बावजूद बापुराव ने अकेले अपने दम पर यह मुश्किल काम आसान कर दिखाया।
यह उनकी ऊंची सोच और बड़प्पन ही तो है कि आज बापुराव ऊंची जाति के उन पड़ोसियों का नाम भी बताने को राजी नहीं, जिन्होंने उस रोज उनकी पत्नी को पानी देने से इनकार कर दिया था। वह कहते हैं, "मैं गांव में किसी भी तरह का खून-खराबा या लड़ाई-झगड़ा नहीं चाहता। मुझे ऐसा लगता है कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया होगा क्योंकि हम दलित हैं। हां, उस दिन मैं बहुत दुखी था, जिस दिन यह घटना हुई थी, लेकिन अब उनके लिए मेरे मन में कोई द्वेष नहीं है।"
पुराने दिनों को याद करते हुए बापूराव आगे कहते हैं, "पत्नी को पानी न दिए जाने के बाद मैंने किसी से कुछ न मांगने की कसम खाई और मालेगांव जाकर कुआं खोदने के औजार ले आया। मैंने खुदाई चालू कर दी। खुदाई शुरू करने से पहले मैंने भगवान से प्रार्थना की। आज ऊपरवाले का शुक्रगुजार हूं कि मुझे सफलता मिली।"