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Jagadguru Aarti_80's in Mangarh _Shree Maharajjji

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#jagadgurukripalujimaharaj #mangarh #aarti #guru जयति जगद्गुरु गुरुवर की, गावो मिलि आरती रसिकवर की। गुरुपद -नख-मणि- चन्द्रिका प्रकाश, जाके उर बसे ताके मोह तम नाश। जाके माथ नाथ तव हाथ कर वास, ताते होय माया मोह सब ही निरास, पावे गति मति रति राधावर की, गावो मिलि आरती रसिकवर की ॥ 1॥ अरे मन मूढ़! छाँडु नारी नर हाथ, गुरु बिनु ब्रह्म श्यामहूँ न देंगे साथ। कोमल कृपालु बड़े कृपासिंधु नाथ, पाके इन्हें आज तू अनाथ सनाथ, इन्हीं के आधीन कृपा गिरिधर की, गावो मिलि आरती रसिकवर की ॥ 2 ॥ भक्तियोग - रस- अवतार अभिराम, करें निगमागम समन्वय ललाम । श्यामा श्याम नाम, रूप, लीला, गुण , धाम बाँटि रहे प्रेम निष्काम बिनु दाम । हो रही सफल काया नारी नर की, गावो मिलि आरती रसिकवर की ॥ 3 ॥ लली लाल लीला का सलोना सुविलास, छाया दिव्य दृष्टि बिच प्रेम का प्रकाश । वैसा ही विनोद वही मंजु मृदु हास, करें बस बरबस उच्च अट्टहास । झूमि चलें चाल वही नटवर की, गावो मिलि आरती रसिकवर की ॥ 4 ॥ अर्थ - निवेदन है कि सभी साधक वृन्द सामूहिक रूप पूर्वक रसिकों में सर्वश्रेष्ठ जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज आरती गाओ। श्री मद् सद्गुरु सरकार की सदा जय जयकार हो। आपके चरण-कमलों की नख मणियाँ अनन्तानन्त दिव्य ज्योति से प्रदीप्त हैं अतः जो जीवात्मा इन्हें अपने हृदय में धारण कर लेता है उसका मोह रूपी अन्धकार सदा को समाप्त हो जाता है। जिसके सिर पर आप अपना वरद हस्त रख देते हैं उसकी माय निवृत्ति हो जाती है, और वह सद्गुरु कृपा प्राप्त जीव श्रीकृष्ण की गति, बुद्धि एवं दिव्य प्रेमानन्द को प्राप्त कर सदा सदा को प्राप्त कर सदा से धन्य हो जाता है । अतः सभी साधक जन एक स्वर से प्रेमोन्मत्त होकर ऐसे रसिक शेखर गुरुदेव की आरती गाओ। हे मूर्ख मन! तू सांसारिक सम्बन्धियों के आश्रय को छोड़ दे। अनादिकाल से अनाथ की भाँति चौरासी लाख योनियों में भटक रहा है आज ही इन गुरुदेव को अपना सर्वस्व मानकर इनकी शरणागति ग्रहण कर सनाथ बन जा इन गुरुदेव के बिना श्रीकृष्ण भी तेरा साथ नहीं देंगे। ये गुरुदेव अतिशयातिशय कोमल, उदार एवं कृपा के अगाध समुद्र हैं और सबसे महत्त्वपूर्व बात तो यह है कि श्रीकृष्ण की कृपा भी इन्हीं के अधीन है- गोपी प्रेम के मूर्तिमान रसावतार हैं। साथ ही सभी शास्त्र का समन्वय बड़े ही मार्मिक एवं हृदयग्राही ढंग से करने में पारंगत हैं । आप श्यामा-श्याम के नाम, रूप, लीला, गुण धाम की मधुरिम से सब को सराबोर कर देते हैं। अतः आप लोक कल्याणार्थ निष्काम गोपी प्रेम अर्थात् मोक्षपर्यन्त की कामना से रहित एवं श्रीकृष्ण सुखैकतात्पर्यमयी यी भक्ति की अमूल्य निधि को बिन किसी मूल्य के वितरित कर रहे हैं। जिसे प्राप्त कर असंख्य व्यक्ति अपने मानव देह को कृतार्थ कर रहे हैं। अतः हे भक्तजनों ! ऐसे रसिक शिरोमणि की आरती का गान करो । आप लीला विग्रह श्री राधा-माधव के साकार स्वरूप होने के कारण उन्हीं युगल सरकार की लीला माधुरी से संयुक्त हैं एवं वही दिव्य प्रेमानन्द आपकी दृष्टि में छलकता है । अपरिमेय दिव्य प्रेम सिन्धु में अवगाहन करने के कारण आपका हास विलास भी विमल, रससिक्त एवं उच्च मधुर अट्टहास के रूप में प्रकट होता है। उन्हीं नटवर नागर की प्रेमोन्मत्त, मदमत्त चाल से आप चल हे। प्रिय भक्तों! ऐसे रसिक शेखर गुरुदेव की आरती को भावमय होकर गाओ। आरती माधुरी जगदगुरु आरती

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