Katha 31
Ghar me Barkat Kaise aayengi Kudrati taur par
सौभाग्यशाली
गुरुमुख सजन मंडली इसी प्रकार सन्मुख विराजमान
श्री श्री 108 श्री हजूर सतगुरु देव दाता दीन दयाल
महाराज जी के पावन श्री दर्शनों को अपने
हृदय मंदिर में बसाते हुए और अपनी मुख रसना
को पवित्र करने के लिए एक दफा बड़े प्रेम
सहित खुल करके बोलो
जयकारा बोल मेरे श्री गुरु महाराज की
जय
श्री आनंदपुर धाम की पुण्य धरा पर खुशियां ही खुशियां छाई
है , विशाल दर्शन हाल में पावन श्री दर्शनों
की सबको लाखों लाख बधाई है
गुरुमुखों
महापुरुष जो
हमें नित्य ही पावन श्री दर्शन देते हैं
हमारी झोलियां इस नाम और भक्ति के सच्चे
धन से मालो माल करते हुए हमें नित ही
खुशियां और नित ही आनंद से जो भरपूर कर
रहे हैं इसके लिए मैं अपनी ओर से और आप सब
गुरुमुख की ओर से श्री चरण कमलों में कोटन
कोट बार वंदन करता हूं
बोल जय बोल मेरे श्री गुरु
महाराज की
जय
महापुरुषों का इस धरा धाम
पर अवतरण ही केवल केवल हम जीवों को सुखी
बनाने के लिए ही हुआ करता
है
जैसे कि प्रेमी वर्णन भी करते हैं
की आए धरा पर सुख
बरसाने संतों के सिरताज
लो परलोक के सच्चे
साथी श्री परमहंस
अवतार
बोल मेरे श्री गुरु महाराज की जय
भक्ति व मुक्ति का सच्चा यह दरबार बनाया
है
खुशियों से सबकी झोलियां भर दी
जो भी चरण शरण में आया है
महापुरुषों के चरणों में जो भी जीव आ
जाते हैं, उसे यह नाम और भक्ति की सच्ची
दौलत देकर के सच्ची खुशियों से और सच्चे
आनंद से भरपूर कर देते हैं जैसे कि इस समय
भी हम सब खुशियों से भरपूर हो रहे हैं,
क्योंकि सत्पुरुष
के चरणों में आने से जीव सहज में ही यह
सच्ची खुशियों से भरपूर हो जाते हैं उनके
सब दुख दर्द गम जो है दूर हो जाते हैं
कहते भी है की यह सुख जो है विरले विरले भाग्यशाली
हम जैसे गुरुमुख को ही नसीब होता है जो की
सत पुरुषों की चरण शरण में बैठ कर के
उनकी शुभ आशीर्वाद प्राप्त करके गुरुमुख प्रेमी इस नाम और भक्ति की लगन दिल में
लगाते हैं, तो सहज में ही गुरुमुख के सब
दुख दर्द गम जो है दूर हो जाते हैं और वह
खुशियों से भरपूर हो जाते हैं, उनका जीवन जो है फिर खुशियों बरा
व्यतीत होता है , जैसे कहते भी है कि यह मन
नित ही खुशिया मांगता , नित खुशियां उसके पास और ना
दिल में चाह कोई केवल नाम भक्ति की प्यास
कि उस दिल के अंदर फिर नित ही खुशियां है
नित ही आनंद है जिस दिल के अंदर मालिक के
नाम की मालिक की भक्ति की लगन लग जाती है
और यह समझ यह सोच सत पुरुषों के चरणों में
आकर के ही जीव को पता चलता है
नहीं तो आम सारा संसार जो है इस चीज से
भूला हुआ
है जैसे कि हमारे हृदय सम्राट श्री श्री
108 श्री तृतीय पाश महाराज जी के जीवन में
भी एक प्रसंग आता
है कि हमारे श्री सतगुरु देव दाता दीनदयाल
महाराज जी जब अभी साधु वेश में थे तो एक
स्थान से दूसरे स्थान पर कहीं कृपा फरमा
रहे थे तो गर्मी का मौसम था एक पेड़ की
छाया के नीचे थोड़े समय के लिए
रुके तो दूर थोड़ी दूर ही कुछ एक
स्त्रियां पानी भरने के लिए आई हुई थी
उनमें से एक वृद्ध स्त्री आप जी के पावन
दर्शन करते ही निहाल हो गई और वह श्री
चन्नों में विनय करने लगी कि महाराज जी
मेरा घर यहां से नजदीक ही है मैं आपके लिए
कुछ भोजन ले आऊं ?
तब आप जी ने उससे कहा कि नहीं हमें
जरूरत नहीं है तो उसने बार-बार विनय की कि चलो महाराज
जी गर्मी का मौसम है आपके लिए थोड़ी छास
ले आती हूं तो उसकी विनय को स्वीकार करते
हुए आपने फरमाया कि ठीक है ले
आओ तो जब वह घर गई तो अपने घर परिवार में
कार्य व्यवहार में व्यस्त हो गई तो वह भूल
गई कि मैं संतों से कुछ वायदा करके आई हूं
विनय करके आई
हूं , थोड़े देर बाद उसे याद आया तो वह फौरन
उसी समय ही छाज का
उसने गिलास भरा और श्री चरणों में उपस्थित
हुई और श्री चरणों में विनय करने लगी कि
महाराज जी हम गृहस्ती लोग है घर परिवार
में जाकर के मैं भूल गई कि आपको मैं छास
के लिए विनय करके गई थी तब श्री सतगुरु
देव महाराज जी ने असीम कृपा करते हुए वचन
फरमाए कि इसी प्रकार की यह जीवात्मा
भी इस संसार में आकर के यह भूल जाती है कि
मैं इस संसार में किस लिए आया हूं
मैं क्या कर रहा हूं और मुझे क्या करना चाहिए
पदार्थ एकत्रित करने के लिए या रोजी रोटी
के लिए ही केवल इस संसार में आने का मकसद
नहीं था , इस मालिक के नाम और भजन की
करके अपनी आत्मा को उस परम पिता परमात्मा
के साथ मिलाना ही सही मायनों में इस मानव
जन्म की विशेषता है
इसलिए महापुरुष हमें
हर समय अपने पावन वचनों के द्वारा यही
सच्ची रोशनी बश्ते हैं
कि गुरुमुख जान का
चाहे कहीं पर भी रहे लेकिन दो घंटे भजन
अभ्यास अवश्य
करें जिससे कि गुरुमुख का यह लोक भी सवर
जाए और परलोक भी सवर जाए
जिसने यह कार्य
जान लिया उसने समझो कि सब कुछ जान लिया
जिनने एक को जानिया सो जानो सब जान जिनने
एक ना जान समझ सब अनजान
जिसने आपने इस कार्य को जान लिया उसने समझो कि सब कुछ
जान लिया जिसने इसको नहीं जाना उसने समझो
कि कुछ भी नहीं जाना बले ही संसार का
कितना बड़ा रुतबा हासिल कर लिया हो इसीलिए
ही महापुरुष हमें यही हर समय अपने पावन
वचनों के द्वारा सच्ची रोशनी बाश्ते हैं कि
गुरमुख जन चाहे संसार में रहते हैं या
कहीं भी रहते हैं दोनों समय श्री आरती
पूजा के समय श्री आरती पूजा का लाभ उठाएं
सेवा के समय सेवा का लाभ उठाएं सत्संग के
समय सत्संग का लाभ उठाएं और भजन के समय
भजन का लाभ उठाएं, दो घंटे भजन अभ्यास करना
हर एक गुरुमुख के लिए महापुरुषों ने जरूरी
फरमाया है
साथ में यह कंसेशन भी दे दी कि
कोई इसे दो बार में करे या चार बार में
करे लेकिन इस नियम का अवश्य पालन करें फिर
महापुरुषों ने शुभ आशीर्वाद दे दिया कि
फिर गुरुमुख का यह लोक भी सवर जाएगा परलोक
भी सवर जाएगा और महापुरुषों की प्रसन्नता
और उनके शुभ आशीर्वाद को भी हमेशा प्राप्त