गुरुमुखों
बड़े ध्यान से इन पंक्तियों को श्रवण कीजियेगा
जो गुरु अर्जन देव जी महाराज कह रहे हैं
टहल करो त एक की जाते वृथा न कोई
की एक उस परमात्मा को छोड़कर किसी और की चाकरी मत कर
बड़े ध्यान से सुनना इन पंक्ति को ज्ञान भरा पड़ा है
की .. टहल करो तो एक की जाते वृथा ना होए
जिसकी सेवा करके जिसका स्मरण करके एक सेकंड भी एक बार जपा भी व्यर्थ नहीं जाता
उसका नाम जप और जप भी कैसे
की तन मन मुख माहि बसे
मन में जप तन से जप मुख से जप हृदय में जप
फिर अगर तेरी ये अवस्था हो गई तूने इस प्रकार से जप
लिया तू जो चाहेगा सृष्टि तेरे हिसाब से चलेगी
लख चौरासी मेदनी ,...सब सेव करंडा
पर यहां पर साथ में पर लगा दिया है
किंतु परंतु होगा कैसे
जब एक से जुड़ेगा
कैसे तेरे मन में तेरे मुख में तेरे हृदय में तेरे तन में सिमरन चलेगा
कैसे ??
कोई ये सोचे कि तन में कैसे सिमरन चलता है
चलता है
यहां पर एक पहुंचे हुए महात्माजी
के जीवन की घटना याद आ गई इस पॉइंट से
एक बार महत्मजी की सेहत ठीक नही थी
बुखार हो गया था
डॉक्टर आया तबीयत खराब है
महत्माजी ने मना किया कि डॉक्टर नहीं चाहिए पर
प्रेमी ले आए
डॉक्टर ने स्टेथॉस्कोप लेकर आया
जैसे ही लगाया महात्माजी को
तो नाम सुमिरन की आवाज सुना दी कानों में
उसकी तो सुरत जुड़ गई वो भूल गया मैं कहा हु क्योंकि वो आवाज कोई कॉमन आवाज थोड़ा थी
उसको हिलाया तो महात्माजी ने फरमाया की बाहर लेकर जाओ इसे
पर्दा डाल दिया
फिर जो दादा जी पास में खड़े थे वो सब समझ गए इसने धनि सुनी है ये जो तन में चल रही है
वाणी कहती है ये झूठ नहीं है
की हो गुरुमुख रोम रोम हर ध्यावे
जो गुरुमुख हो जाते जो संत की पदवी को प्राप्त हो जाते
उनके एक एक बाल में से
रोम रोम में से नाम जाप की आवाज आती है
तन मन मुख नाम बस जो चाहो सो होए
फिर सब कुछ तेरे हिसाब से होगा पर कैसे होगा पर...
टहल महल ताको मिले जाको साद कृपाल ..
की...ये कृपा उसके ऊपर होती है जिस पर श्री गुरु महाराज जी कृपा करते
बिना पूर्ण गुरु के परमात्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती
मंत्री को मिलना है पहले पीए से मिलना पड़ेगा
प्रधानमंत्री से मिलना है बीच में कोई मंत्री चाहिए मिलाने के लिए
सीधा आप नहीं पहुंच सकते
सृष्टि के मालिक को मिलना है बीच में संत चाहिए, पूर्ण गुरु चाहिए
जिसकी अप्रोच हो जो पहुच चुका हो
संत सेहजो बाई कहती है
तुम हर सेती राते संतो नि पुरख बताते
की .. हे संतो तुम तो पहुंच चुके हो निभा चुके हो
मुझे भी पहुंचा दो और मेरी भी पहचान करा दो उससे
परम पिता परमात्म से
टहल महल ताको मिले जा को साध कृपाल
साधु संगत तो बसे जो आपन होए दयाल
अब यहां पर दूसरी बात कह दी यहां पर कहा
है परमात्मा को मिलना है तो संत मिला सकता है और यहां पर लिखा संत को मिलना है तो
परमात्मा के आगे अरदास कर परमात्मा संत मिला देगा
एक दूसरे को बढ़ई दी है
श्री गुरु महाराज जी ने अपने संतों को कितनी बढ़आई दी है कि मैं संतों से मिला दूंगा संत मुझसे
अब यहां पर कई लोग कहते हैं की आज कल संत होते ही
नहीं है
इसका प्रूफ है कि होते हैं
नकली नोट तब बिकता है मार्केट में जब असली हो
नहीं तो नकली लोट नहीं चलेगा
असली है तो नकली चल रहा है
अगर इतने पाखंडी दिख रहे हैं तो असली भी है
बस मांग उस परमात्मा से करनी पड़ेगी कि हमे मिला दे
श्री गुरु अर्जन देव जी महाराज कहते हैं अगर तू संतो
पर कुर्बान हो जाएगा , संतो की आज्ञा में रहेगा संतो की सेवा में लग जाएगा संतो के बताए हुए रास्ते पर चलने
लगेगा तेरे जन्मो जन्मांतर के पाप मिट जाएंगे
तेरे ऐसे पाप किए हुए जो तुझे याद भी नहीं वो भी मिट जाएंगे
ऐसा क्यों है की संतो की संगत में पाप मिट जाते
ऐसा क्यों है कि संतो की संगत से श्री गुरु महाराज जी परमपिता परमात्मा मिल जाते है
संत क्या करते हैं क्या करते हैं संत उनका एक ही काम है
तरीके हजारों होंगे पर उनका मकसद एक ही होता है
एक..... उस प्रभु परमात्मा से मेल करवाना
नाम का जाप करवा के.
तो गुरुमुखों
आप स्वय अनुभव करें की हम कितने भाग्यशाली है की हमे पूर्ण संत सतगुरु महापुरषों की चरण शरण प्राप्त है
वाणी भी कहती है कि ऐसे रसिक बैरागी संतों का मिलना ऐसे पहुंचे हुए संतो का मिलना
तभी प्राप्त होता है जब पुण्य का सूरज शिखर पर चढ़ा हो ..
महापुरषों के वचन सूरज शिखर पर हो पुण्य का इतने पुण्य हो इंसान के फिर जाकर ऐसे पूर्ण महापुरुष मिलते हैं.. ऐसे संतो की चरण शरण प्राप्त होती है
और पुण्य बनाने का तरीका है नाम का जाप
नाम दान वो दात है के महापुरषों के वचन है के संत खुद आएंगे आपको मिलने
आपको ढूंढने नहीं जाना पड़ेगा
महापुरुषों के वचन है के कुछ ऐसी रूहों की पुकार होती है हृदय से श्री गुरु महाराज जी संतो को खुद भेजते है उनके पास
के जाओ उनका उद्धार करो
एक महापुरष ने कहा भी है की
मैंने ढूंढ ढूंढ कर देख लिया सारी सृष्टि में
बिना नाम के सुख नहीं है
पर जो संतो की संगत करते हैं और पूरी लगन से पांच नियम निभाते है और श्री आज्ञा के दरयरे में रहते है
उनकी रक्षा श्री गुरु महाराज जी इस लोक में भी करते है और परलोक में भी करते है
वो गुरमुख यहां पर तो सुखी रहते ही है जमदूत का दुख भी उन्हें नहीं सता सकता
इसमें दूसरा कोई विचार ही नहीं है दूसरी कोई बात ही नहीं है कोई शंका ही नहीं कोई डाउट ही नहीं है की हरि और
हरि का जन एक हो जाते हैं नाम के जाप से..
जैसे समुद्र में से लहर उठी समुद्र में समा गई अब अलग करके दिखाओ उसको
प्रेमियों आप पूरा इतिहास देख लो एक ही मकसद होता है महापुरुषों का कोई नाम जप ले , पांच नियम करले बस...
तो उसकी रक्षा श्री गुरु महाराज जी इस लोक में भी करते है और परलोक में भी ...