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Katha 65 | Shri Guru Maharaj Ji Ki Takat | Dil Ko Chu Jaane Wali Katha | SSDN |

Durlabh Katha SSDN 35,141 lượt xem 4 months ago
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Katha 65
Gurumukhon
श्री गुरु महाराज जी के पावन वचन है कि
कि जैसे इंसान को चलने के लिए दो पाव है पंछी को उड़ाने के लिए दो पर है
इस जीवात्मा को भगवान से
मिलने के लिए भी 2 साधन है
एक सतगुरु दरबार की सेवा है
सतगुरु दरबार की पूजा है और एक मालिक का भजन सुमिरन है
के इंसान सद्गुरु दरबार की सेवा करें पूजा करें
तो जिससे इंसान का मन निर्मल होता है
साफ होता है और
फिर इंसान मलिक का भजन सुमिरन करें
वह मालिक को पा जाता है
मलिक को याद करे तो मालिक से मिल जाता है



ऐसे ही
एक पुत्र ने अपनी धर्मात्मा पिता की निष्काम भाव से सेवा की
उसकी सेवा से प्रसन्न होकर उसके पिता ने उसको आशीर्वाद दिया
और उसे आशीर्वाद को परखने के लिए उसने निश्चय कर लिया
कि मैं कोई काम करूंगा
और उसने क्या सोचा कि मैं लौंग का व्यापार करता हूं
और लॉन्ग खरीद भी लिए और दोस्तों से बातचीत की
तो उसके दोस्तों ने पूछा भाई तू इतनी लॉन्ग खरीद रहा है
इसको कहां जाकर बचेगा
तो वह कहने लगा मैं तो अरब देश के अंदर जाकर भेचुगा
उसके दोस्त हैरान हो गए कि जहां से लॉन्ग आते हैं वहा बेचने चला है
उसके दोस्त ने उसको बहुत रोका लेकिन वह नहीं माना
कि मेरे पिता का मुझे आशीर्वाद है मुझे सफलता जरूर मिलेगी



पूछा भी कि व्यापारी कैसे आया है तो सेवादारों ने बताया कि यह लॉन्ग बेचने आया है
तो राजा साहब ने उसे अपने पास बुलाया और कहने लगे
की भाई प्रेमी तू यहां लॉन्ग बेचने आया है
यहां तो चारों तरफ लॉन्ग ही लॉन्ग है
तुझे तो यहां बहुत घाटा होगा

कहने लगा कि राजा साहब मुझे मेरे पिता ने आशीर्वाद दिया था

उसने हाथ डाला मिट्टी में और कहने लगा मुझे मेरे पिता ने आशीर्वाद दिया है कि तु मिट्टी में भी हाथ डालेगा तो वह भी सोना होने हो जाएगी

और उसी समय क्या हुआ कि उसके हाथ से वह अंगूठी राजा साहब की निकल आई

राजा हैरान हो गया कि क्या कमाल का यह पितृ भक्त है
कि इसके पिता की एक वचन से
वात्सव में रेत के अंदर से मेरी अंगूठी मिलगई
राजा ने उसके मुंह मांगी कीमत पर उसके लॉन्ग खरीद लिए
और इतनी विशाल राशि उसको दी और साथ में सेवादार भी उसको दिए और कहा कि इसको सुरक्षित इसके घर तक छोड़ कर आओ

तो गुरमुखों
एक संसारी पिता के आशीर्वाद मैं इतनी ताकत है
तो सतगुरु कौन है
संसार के जितने भी रिश्तेनाते हैं

माता-पिता इष्ट देव देश का राजा

सद्गुरु का स्थान उन सब से ऊपर है
वह त्रिलोकी के शहंशाह है

तो ऐसे सतगुरु का जब हम आशीर्वाद ले लेंगे
तो फिर कोई कारण ही नहीं कि कहीं से सुख प्राप्त न हो
सब और सुख ही सुख बरसेगा
अगर कहीं कमी है तो हमारी अपनी है
हम सतगुरु की प्रसन्नता को प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं

कल भी हमारे परम आराध्य देव
श्री हजूर सतगुरु देव महाराज जी ने
कितनी प्रसन्नता के साथ
हम सबको ढेर सारे आशीर्वाद दिए
कि हम चाहते हैं कि हमारे गुरमुख खुश हो
निहाल हो
तो हम सब गुरमुखों का भी यह कर्तव्य है
कि हम सदगुरुदेव महाराज जी की प्रसन्नता को प्राप्त करने के लिए हमेशा तत्पर रहे
क्योंकि सद्गुरु की दी हुई दात को संसार की कोई भी शक्ति मेट नहीं सकती

अब वह 70 उठो के ऊपर लॉन्ग भरकर
उसे अरब देश को चल पड़ा जहां से लॉन्ग आते थे

अब अरब में तो रेगिस्तान ही रेगिस्तानहै
तो रेगिस्तान के रास्ते जा रहा था
तो जब नगर के द्वारा तक पहुंचने वाला था तो क्या देखा है की विशाल सेना
रेगिस्तान को शानने में लगी हुई है

रेगिस्तान की रेत को शान रहे हैं
हैरान हो गया और डर भी गया कि इतने सारे सैनिक
लेकिन हौसला करके पूछ लिया कि भाई क्या माजरा है
तो उन्होंने बताया कि राजा साहब की अंगूठी यहां से गुजरते समय गिर पड़ी है
तो उसे रेत में सब तलाश कर रहे हैं

अब वह अपने रास्ते आगे बड़ा तो सामने देखा है कि सामने राजा साहब विराजमान थे

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