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Katha 72 | Apne Saare Papon Ko Dho Lo | SSDN | Shri Guru Maharaj Katha |

Durlabh Katha SSDN 15,876 6 days ago
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KATHA 72 गुरुमुखों एक कोई व्यक्ति था जिसका एक नियम था हर साल गंगा नदी के घाट पर जाना और स्नान करके वापस आ जाना संध्या पूर्व वो वहां पहुंच जाता था और रात्रि को वहीं घाट के किनारे सो जाता था सुबह 4 बजे उठ कर के वो गंगा का स्नान करता था और उसके बाद करीब 5 बजे अपने घर वापस आ जाता था एक समय के अंदर जब व स्नान करने गया तो स्नान के बाद बादल में आकाश में कुछ बदली थी हल्का हल्का अंधेरा भी था जब घर वापस आने लगा तो कहते रास्ता भूल गया जिस रास्ते पर व वापस आ रहा था संत महापुरुष यहां रोज स्नान करते हैं यह बड़ा ही पवित्र जल है इसलिए पवित्र जल में जब स्नान करते हैं हमारी कालिक उतर जाती है हम यहां से सफेद होकर के वापस जाती है तो वो व्यक्ति सोचने लगा कि मैं भी कितना मूर्ख हूं जो संतों पर संशय कर रहा हूं कि जो गंगा के पास रह कर के भी इनको गंगा का पता नहीं और यह तीनों नदियां इन संतों के सरोवर में स्नान करती हैं वाकई संतों की बड़ी महान महिमा है उसी वक्त उल्टे पहर संतों की गुटिया पर आया हाथ जोड़ के बेनती करी प्रभु मैं बड़ी भूल कर बैठा आपके ऊपर मैंने संशय किया मैंने आज आपकी महिमा को जाना कि जिन नदियों के ऊपर लोग स्नान करते हैं वो नदियां तो संत महापुरुषों के चरणों की दासी है वो उनके घाट में आकर स्नान करती हैं प्रभु मुझे क्षमा करना तो संतों ने फरमाया कि प्रेमी सत्संग की बड़ी महान महिमा है महापुरुषों के चरणों के अंदर जो भी आता है उसको सच्चा भक्ति का फल मिलता है तीर्थ जाए एक फल संत मिले फल चार उसी रास्ते पर एक संतों की कुटिया थी आश्रम था उसने द्वार पर पढ़ा कि संतों की कुटिया उसने सोचा में रास्ता भूल गया हूं इन्हीं संतों को मैं रास्ता पूछ लेता हूं उनका द्वार खटखटाया संतो ने दरवाजा खोला आओ प्रेमी आओ बैठो कहने लगा महाराज जी मैं गंगा का स्नान करने आया था वापस घर जा रहा था रास्ता भूल गया हूं तो कृपया मुझे अपने घर का रास्ता बता दीजिए तो संतों ने कहा हमें तो पता नहीं तेरा घर कहां है हम तेरे को दिशाएं बता देते हैं कि उत्तर दक्षिण पूर्व और पश्चिम तुम्हें दिशाएं बता देते हैं जिधर तुमने जाना है चले जाओ अब बेचारा सोचने लग पड़ा कि कहां जाऊं उसे समझ नहीं आ रहा था कि किधर से जाऊं तो फिर बेनती करता है कि महाराज जी मुझे आप गंगा के घाट का रास्ता बता दो फिर वहां में पहुंचकर वहीं से अपने घर चला जाऊंगा तो संतों ने कहा प्रेमी कौन सी गंगा कौन सा घाट किस की बात कर रहे हो कहने लगा महाराज जी अभी तो आपके नजदीक ही है गंगा नदी जहां पर दुनिया स्नान करने आती है मैं भी वही हर साल स्नान करने आता हूं मुझे वहां का रास्ता बता दो तो संतों ने कहा प्रेमी हमें तो गंगा के घाट का रास्ता पता ही नहीं है अब वो और भी परेशान हो गया मन में सोचने लगा यह कैसे संत है कि जो गंगा के घाट के नजदीक रहकर इनको गंगा का पता ही नहीं है चलो मैं चलता हूं कहीं ना कहीं रास्ता तो मिल ही जाएगा अब संतों की कुटिया के सामने एक सरोवर था संतों का जहां संत नित प्रति स्नान करते थे जैसे वो व्यक्ति आगे बढ़ा तीन गवे काले रंग की उस सरोवर की तरफ बढ़ रही थी उनको देखकर हैरान हो गया कि गवे और काले रंग की वो उनके आगे खड़ा हो गया हाथ जोड़ के लगता है यह कोई देवियां है पूछने लगा देवियों आप कौन हो और आपका रंग यह काला कैसे तो कहने लगी.. हम तीनों बहने हैं गंगा जमुना और सरस्वती हमारे घाट के ऊपर पापी लोग आकर स्नान करते हैं तो हमारा रंग काला पड़ जाता है यह संतों का सरोवर है हम नित प्रति सरोवर में स्नान कर आते हैं क्योंकि सतगुरु मिले अनेक फल कह कबीर विचार परम संत कबीर साहिब जी फरमाते हैं कि महापुरुषों के चरणों का इतना महान फल है कि जो इस लोक के अंदर भी ऐसा फल किसी को नहीं मिलता जो हमें गुरमुख महापुरुषों ने हमें श्री अनंतपुर धाम भक्ति का सच्चा दरबार दिया है त्रिलोकी से न्यारा हमारे श्री परम हंस महाराज का यह सच्चा दरबार जहां पर गुरमुख जन श्री आरती पूजा भजन सिमरण सत्संग सेवा दर्शन ध्यान का लाभ कमाते हैं तो हमारा भी फर्ज है कि इन्हीं महापुरुषों के चरणों में अपना विश्वास अपना निश्चय रखते हुए इनकी आज्ञा और हुकम में चलते हुए भक्ति का सच्चा लाभ कमाए और अपने मानुष जन्म को सफल करें इसलिए गुरुमुखों संतों के वचन भी है कि सतगुरु सा दाता नहीं.. तीनों लोक मंझार जो बखे सत नाम धन भक्ति अमोलक सार हमारे श्री श्री 108 श्री परम हंसों ने भक्ति नाम और सेवा का यह अकट खजाना श्री अनंतपुर धाम हम गुरमुख के लिए बना दिया है इस दुनिया से निराला ये तीरथ धाम त्रिलोकी के अंदर सबसे श्रेष्ट भक्ति का सुंदर दरबार महापुरुषों ने रचाया है कहते हैं संत सहजोबाई जी के वचन है 68 तीर्थ गुरु चरण पर भी होत अखंड सहजो ऐसा धाम नहीं सकल अंड ब्रह्मांड दुनिया में कहते हैं 6 तीर्थ है कोई एक तीर्थों पर जाएगा तो कितना उसका समय लगेगा कितनी शरीर की तकलीफें उसे बर्दाश्त करनी पड़ेगी लेकिन महापुरुषों ने इस बात का निर्णय कर दिया कि एक गुरु चरण में 68 तीर्थों का फल है और यह फल एक ही जगह मिलता है वह हमारे श्री परमहंस दयाल महाराज जी के श्री चरण कमलो में बैठकर जो गुरुमुख जन अपने नेत्रों के सम्मुख श्री हजर हजूर महापुरुषों के दर्शन दीदार कर रहे हैं उन 6८ तीर्थों का फल यहां श्री अनंतपुर धाम में गुरमुख को प्राप्त हो रहा है

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