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समाज के बीच रहकर भी इंसान कैसे अकेला होकर अपने आप से ही जूझता रहता है,मोहन राकेश जी के लेखन में हमेशा उभर है।राजहंस के प्रतीकात्मक स्वरूप को लिए मानव मन का अंतर्द्वंद समाया है ,नाटक लहरों के राजहंस में।अपने आप मे ये एक शानदार नाटक कृति है।