ललिता त्रिपुरा सुंदरी: दिव्य कथा और महिमा
हिंदू धर्म में, माँ ललिता त्रिपुरा सुंदरी को अद्वितीय और परम देवी माना जाता है। वे श्रीविद्या परंपरा की प्रमुख देवी हैं और उनकी आराधना तांत्रिक, वैदिक और आगमिक ग्रंथों में विशद रूप से वर्णित है। वे त्रिपुरा अर्थात तीनों लोकों—भूत, भविष्य और वर्तमान—की स्वामिनी हैं। उनका स्वरूप सौंदर्य, शक्ति और करुणा से परिपूर्ण है। इस कथा में हम माँ ललिता त्रिपुरा सुंदरी की महिमा, उनके प्राकट्य की कथा और उनके द्वारा किए गए अद्भुत कार्यों को विस्तार से जानेंगे।
माँ ललिता त्रिपुरा सुंदरी का प्राकट्य
असंख्य युग पहले, जब पृथ्वी और स्वर्ग संकट में थे, तब माँ ललिता त्रिपुरा सुंदरी का प्राकट्य हुआ। इस कथा का वर्णन देवीभागवत, ब्रह्मांड पुराण और ललिता सहस्रनाम स्तोत्र में मिलता है।
भंडासुर का जन्म और अत्याचार
बहुत समय पहले, भंडासुर नामक एक असुर ने कठोर तपस्या की और ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि उसे कोई पुरुष नहीं मार सकेगा। वरदान प्राप्त करने के बाद, भंडासुर ने देवताओं पर आक्रमण करना प्रारंभ कर दिया। उसने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया और वहां के सभी देवताओं को अपना दास बना लिया।
देवताओं की प्रार्थना और माँ का अवतरण
भंडासुर के अत्याचारों से पीड़ित होकर, भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा समेत सभी देवताओं ने आदि पराशक्ति की आराधना की। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर, माँ ललिता त्रिपुरा सुंदरी प्रकट हुईं।
माँ के प्रकट होते ही समस्त ब्रह्मांड दिव्य प्रकाश से भर गया। वे सिंहासन पर विराजमान, चंद्रमा के समान कांतिवान, एवं लाल वस्त्रों से सुसज्जित थीं। उनके हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण थे। वे महाशक्ति की प्रतीक थीं और उनके रूप की शोभा अपार थी।
ललिता देवी का युद्ध और भंडासुर वध
माँ ललिता ने श्रीनगर नामक दिव्य नगर की स्थापना की और अपने परमभक्त राजा इंद्रकिल को वहां का अधिपति बनाया। उन्होंने चतुर्बुज, महापार्श्व, दंडिनी, मणिवेग और सन्नहता जैसी शक्तियों के साथ युद्धभूमि में प्रवेश किया।
भंडासुर ने अपनी विशाल सेना के साथ युद्ध किया, लेकिन कोई भी शक्ति माँ के सामने टिक नहीं सकी। अंततः माँ ललिता ने अपने महाकाली और महात्रिपुरसुंदरी स्वरूप में आकर भंडासुर का वध किया।
माँ की लीलाएँ और महिमा
श्रीचक्र और श्रीविद्या उपासना
माँ ललिता का पूजन श्रीचक्र में किया जाता है। श्रीचक्र, ब्रह्मांड का दिव्य ज्यामितीय स्वरूप है, जो सृष्टि के निर्माण और संहार का प्रतीक है। श्रीविद्या साधना के माध्यम से भक्त माँ की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का स्वरूप
माँ ललिता त्रिपुरा सुंदरी त्रिगुणात्मक शक्ति हैं।
• महाकाली : वे तमोगुण की स्वामिनी हैं और कालचक्र को नियंत्रित करती हैं।
• महालक्ष्मी : वे रजोगुण की देवी हैं और ऐश्वर्य एवं समृद्धि प्रदान करती हैं।
• महासरस्वती : वे सतोगुण की देवी हैं और ज्ञान, विद्या एवं बुद्धि प्रदान करती हैं।
माँ ललिता की स्तुति और उपासना
माँ ललिता की स्तुति ललिता सहस्रनाम के माध्यम से की जाती है। इसमें माँ के हजार नामों का वर्णन है, जो उनके विभिन्न स्वरूपों और शक्तियों का परिचय देते हैं।
लाभ और कृपा
माँ ललिता की उपासना करने से :
• आध्यात्मिक उन्नति होती है।
• भय, कष्ट और दुखों का नाश होता है।
• ऐश्वर्य, सुख और समृद्धि प्राप्त होती है।
• भौतिक एवं पारलौकिक सुखों की प्राप्ति होती है।
उपसंहार
माँ ललिता त्रिपुरा सुंदरी, आदि पराशक्ति का परम रूप हैं। उनकी आराधना से मनुष्य अपने जीवन के समस्त कष्टों से मुक्त हो सकता है और परम आनंद की प्राप्ति कर सकता है। माँ का स्मरण मात्र ही समस्त दुःखों का नाश कर देता है।