Conveying a song written about #Delhi #pollution
रुक जाऊं इन बहारों में,
कुछ और देर मैं।
शहरों की दुनिया में
अब न जाना चाहूं मैं।
उस दुनिया की हवा
लगे बोझिल-सी मुझे।
हैं हर तरफ धुआं-सा,
सांस ले न पाऊं मैं।
जिम्मेदारी और ज़रूरतें
मुझे अब तन्हा छोड़ दो।
कुछ देर अपने साथ
अब रहना चाहूं मैं।
उस दुनिया की हवा
लगे बोझिल-सी मुझे।
हैं हर तरफ धुआं-सा,
सांस ले न पाऊं मैं।
चाहतों के पीछे
मेरे पैर थक गए।
कुछ पल तो मिले सुकून,
अब सोना चाहूं मैं।
उस दुनिया की हवा
लगे बोझिल-सी मुझे।
हैं हर तरफ धुआं-सा,
सांस ले न पाऊं मैं।
तितलियां कुछ भी हो अब,
न जगाना तुम मुझे।
तोड़ना न ख्वाब मेरे,
जो देख रहा हूं मैं।
उस दुनिया की हवा
लगे बोझिल-सी मुझे।
हैं हर तरफ धुआं-सा,
सांस ले न पाऊं मैं।
तोड़ना न ख्वाब मेरे,
जो देख रहा हूं मैं।