Maha Mrityunjay Mantra महा मृत्युंजय मंत्र
★ ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ' ★
महा मृत्युंजय मन्त्र का अक्षरशः अर्थ
त्र्यंबकम् = त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक), तीनों कालों में हमारी रक्षा करने वाले भगवान को अथवा अम्बक शब्द का अर्थ पिता भी होता है। तीनो लोक के पिता के अर्थ में भी ईश्वर के लिए त्र्यम्बकम् शब्द का प्रयोग हो सकता है।
यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्धेय
सुगंधिम = मीठी महक वाला, सुगन्धित (कर्मकारक)
पुष्टिः = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम् = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली
उर्वारुकम् = ककड़ी (कर्मकारक)
इव = जैसे, इस तरह
बन्धनात् = तना (लौकी का); ("तने से" पंचम विभक्ति - वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो सन्धि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)
मृत्योः = * मृत्योः = मृत्यु से
मुक्षीय = हमें स्वतन्त्र करें, मुक्ति दें
मा = नहीं वंचित होएँ
अमृतात् = अमरता, मोक्ष के आनन्द से
~ इस महामन्त्र से लाभ निम्न है -
धन प्राप्त होता है
गंभीर रोगों के उपचार में लाभ होता है
जो आप सोच के जाप करते हैं वह कार्य सफल होता है
परिवार मे सुख सम्रद्बि रहती है
आप जीवन मे आगे बढते जाते है
इस महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करने से जीवन में आने वाली विपत्तियाँ दूर होती हैं
~ जप करने की विधि -
सुबह और सायं काल में अपेक्षाकृत एकान्त स्थान में बैठकर आँखों को बन्द करके इस मन्त्र का जाप (ग्यारह बार) करने से मन को शान्ति मिलती है और मृत्यु का भय दूर हो जाता है। आयु भी बढ़ती है।