भण्डासुर वध की कथा
भण्डासुर का वध देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी द्वारा किया गया था। यह कथा मुख्य रूप से ललिता सहस्रनाम स्तोत्र और ललिता महात्म्य में वर्णित है।
कथा संक्षेप में:
त्रेतायुग में जब भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था, तब उनकी पत्नी रति ने शिव से विनती की कि उनके पति को पुनः जीवन मिले। शिव ने कहा कि जब श्रीविद्या उपासना के द्वारा देवी ललिता का आवाहन किया जाएगा, तब कामदेव का पुनर्जन्म होगा।
कुछ समय बाद, देवी ललिता का प्राकट्य हुआ, और उन्होंने शिव से विवाह किया। इसी समय, चतुर्मुख ब्रह्मा ने यज्ञ किया, जिससे भण्डासुर नामक राक्षस उत्पन्न हुआ। भण्डासुर को यह वरदान प्राप्त था कि वह केवल देवी के हाथों मारा जाएगा।
भण्डासुर का आतंक:
भण्डासुर अत्यंत शक्तिशाली और दैत्यराज था। उसने देवताओं पर विजय प्राप्त कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। उसने सभी यज्ञों और वेदों के अध्ययन पर रोक लगा दी। इससे ब्रह्मांड में अराजकता फैल गई।
देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी का प्राकट्य:
देवताओं ने भगवान शिव और देवी पार्वती की आराधना की। उनकी प्रार्थना से ललिता त्रिपुरसुंदरी प्रकट हुईं। देवी ने चिदग्निकुंड संभूता (अग्निकुंड से उत्पन्न) के रूप में जन्म लिया।
देवी ने एक विशाल सेना बनाई, जिसमें
दण्डिनी (दंडनायिका) देवी – उनकी सेनापति,
मंत्रिणी देवी (शक्ति की मंत्री) – रणनीतिकार,
अष्ट मातृकाएँ और साठ योगिनियाँ – युद्ध में सहायक बनीं।
युद्ध और भण्डासुर का वध:
भण्डासुर और देवी ललिता के बीच घोर युद्ध हुआ। इस युद्ध में देवी ने अपने महापाशुपतास्त्र, कुलेश्वरी शक्ति, और अन्य दिव्य अस्त्रों का प्रयोग किया।
भण्डासुर ने अपने तीन पुत्रों—शत्रुंजय, विषंग और विषुकर—को युद्ध में भेजा, लेकिन देवी ललिता ने सभी का वध कर दिया। अंततः देवी ने कामेश्वर अस्त्र का प्रयोग किया, जिससे भण्डासुर का अंत हो गया।
फलस्वरूप:
भण्डासुर के वध के बाद धर्म की पुनः स्थापना हुई, देवताओं को उनका स्थान वापस मिला, और ब्रह्मांड में शांति स्थापित हुई।
कथा का महत्व:
यह कथा दर्शाती है कि अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः शक्ति (देवी) की कृपा से नष्ट होता है। यह कथा देवी की परम शक्ति, करुणा और धर्म स्थापना को दर्शाती है।
अगर आप इस कथा को और विस्तार से जानना चाहते हैं तो ललिता सहस्रनाम स्तोत्र, ललिता त्रिपुरसुंदरी महात्म्य, और ब्रह्मांड पुराण में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है।