माया का ग्रन्थ | Maya ka Granth | Amargranth Sahib by Sant Rampal Ji Maharaj
ब्रह्म जोगिनी जालिम दूती, सूर नर मुनि जन खाय बिगूती। दोनूं दीन चले दे धाही, षट दर्शन की ठौर न पाई।।1।।
पंडित पकड़ि चौपट लीन्हें, काजी कै शिर बोझे दीन्हें। कुतब गौस सब गलत गुजारी, मारे मुल्ला बंग पुकारी।।2।।
पीर पैगम्बर राहि चलाये, गुरजौं मारि त्रिगुण डहकाये। जालिम जोगनि ऐसा कीन्हा, मुहंमद का सब मजहब छीना।।3।।
नेम नमाज करैं थे रोजा, जिनके कहीं न पाये खोजा। मारे बिरक्त ब्रह्म आचारी, धाम पुजाये शिर धरि खारी।।4।।
जिन शिर जटा बहुत थी लम्बी, मारे नागा मुनियर बंबी। चुंडित मुंडत सबै सिंघारे, जो धूनी पांच लगावत हारे।।5।।
ऊध्र्व मुखी मारे बहु मौनी, भवसागर आये फिर जूंनी। मारे बनखण्डी निरबानी, शिर धरि शीश दुवाये पानी।।6।।
ज्ञानी गुणी मुनी बहु मोहे, दौंह पाटौं बिच मीहीं झोये। मारे बिरक्त ब्रह्म ज्ञानी, बहुरि परे हैं चारौं खानी।।7।।
ऊदासी मारे निर्मोही, पकड़ि चौपटै धोवटि धोई। उनमुन रहते रखते काया, जिन कूं धक्के दीन्हें माया।।8।।
त्रिकाली करते अस्नाना, ते नर कीन्हें शूकर श्वाना। जो नर अंग लगावत छारा, ते आनें त्रिगुण ब्यवहारा।।9।।
मारे च्यारौं बेद बकंता, जो नर ठाराह पुराण कथंता। जिनके कानौं मुद्रा भारी, ते जोगनि कीन्हें घरबारी।।10।।
सींगी नाद राखते फरुवा, ते जोगनि कूं कीन्हें भडु.वा। शुन्य मंडल में रखते ताली, जिन कूं जोगनि ल्याई जाली।।11।।
नखी निराशा रहते जोगी, ते नर कीन्हें पकड़ि संजोगी। जिन चौरासी आसन कीन्हें, ते नर पकड़ि फैंखडै़ दीन्हें।।12।।
दूती दुर्मति नकटी दारी, मारे जोगी ब्रह्म खिलारी। जो बज्र कछौटी रखते देहा, जिनके शिर पर डारी खेहा।।13।।
जती सती सब गलत किये हैं, रहते सहतै सबै लिये हैं, मारे शेख भेष बैरागी, सूते भेष जोगनी जागी।।14।।
मारे मुनियर गलदे फांसी, जो गीता पढि आये काशी। अंधे बहरे राह चलाये, गलत किये सो बहुरि न आये।।15।।
इन्द्री जीत रीति करि डारे, जिनके मौंहडें कीन्हे कारे। चुंडित मुंडित गुफा धारी, जिन कूं जोगनि लागी प्यारी।।16।।
नागा नग्न रहैं बन मांही, सो दोजिख की राह चलांही। बन बसती के सब ही मारे, धर्मराय की नगरी डारे।।17।।
गये रसातल राह न पाये, जम की जाली जीव बंधाये। पंथी पंथ न पहुचैंं कोऊ, दुर्लभ देश दूर घर भेऊ।।18।।
मारे भेष बिबेक भुलानें, सबै जोगिनी सेवक ठांनें। चौदह लोक पडे़ जम जाला, दुर्मति जोगिनि रूप बिशाला।।19।।
तीन लोक जिन चुनि चुनि खाये, चौदह तबक सबै डहकाये, ब्रह्मंड इकीसौं शोर सराबा, मुगदर मार गुरजि बहुराबा।।20।।
कौंम छतीस रीति सब दुनिया, जोगनि छत्रपती बड़ हनियां। अनाथ जीव की कौंन चलावै, योद्धा भूप लिये बड़दावै।।21।।
होते दुर्योधन से राजा, जिस घर घुरते अनगिन बाजा। होते बीर इकोतर भाई, ग्यारह क्षूहनि की ठुकराई।।22।।
चौसठ जोगनि बावन बीरा, जिनके खप्पर भरे न थीरा। पंडौं डोबे पकरि हिमालै, अठारह क्षूहनि खाई कालै।।23।।
चकवै छत्रपति बहुसाजा, जिनके उदय अस्त बिच राजा। ब्रह्म जोगिनी सब डहकाये, जिनके गाम ठाम नहीं पाये।।24।।
हिरनाकुश थे राम सरीखा, जिन अपना नाम चलाया टीका। वैसे जमजौंरा नें लूटे, उद्र विनाश किये घट फूटे।।25।।
मथुरापुरी राज थे कंसा, जिन के कहीं न पाये बंसा। सहंòाबाह गाह ज्यूं डोबे, फरश्यां मारि रक्त तन झोबे।।26।।
जरासंध बहु जोर जमाये, पकड़ि टांग तन चीर बगाये। बालि काल कूं दिया झपेटा, चानौरा से मारे फेटा।।27।।
रावण छत्रपती थे राजा, सुरनर मुनिजन जिस घर साजा। योधा जुलमी बहुबिधि आकी, कोटि तेतीस बंधि थे जाकी।।28।।
कुंभकर्ण से होते बीरा, सवा लाख नाती संगि थीरा। एक लख पूत दूत संग भारी, सात समुद्र लंका का धारी।।29।।
अटपट किये लंक जदि लूटी, दश खप्पर रावण के फूटी। कृृष्ण गुरु दुर्बासा लूटे, मनसा भंवर कुचौं पर छूटे।।30।।
शृंगी ऋषि कूं सार चबाये, नारद पूत बहत्तर जाये। कामदेव दग दे बहु गाता, पाराऋषि पुत्री संगराता।।31।।
उद्दालक मुनि ऐसा कीन्हा, जिन जोगनि संग संगम कीन्हा। रामचंद्र होते अवतारी, जिनकी दूत्र ले गया नारी।।32।।
दुर्मति दूती बहुत बढाई, सुर असुरन की राड़ि मंडाई। जिन इन्द्रपुरी के असतल लूटे, गुरजौं मारि रसातल कूटे ।।33।।
गुरु मछंदर लूटे लोई, रस कुस पीया डारी छोई। कच्छ देश में गोरख हेरे, हम संग सिद्धा लीजैं फेरे।।34।।
गोरख कहै सुनौंरी दूती, हम योगी निर्गुण अबधूती। हम योगी जुगता ब्रह्मज्ञानी, भजु ब्रह्म अलख निर्बानी।।35।।
गुरुवा की तो छार उडाई, तुम चेला किस रहो सहाई। दगधौं गात धातु कूं सोखूं, नौलह घाटी पारा रोकूं।।36।।
उलटा बिन्दु चलाऊं पारा, हम को मिले पूर्ण करतारा। यज्ञ रची जदि पंडौं राजा, नौ नाथौं नहीं नादू बाज्या।।37।।
चौरासी सिद्ध रिद्धि सब मोहे, पूरण ब्रह्म ध्यान नहीं जोहे। कोटि तेतीस यज्ञ कै मांही, सुरनर मुनिजन गिनती नांहीं।।38।।
छप्पन कोटि जहां थे जादौं। जिनसैं नांही बाजे नादौं। कोटिक बकता बेद उचारी, ना भई यज्ञ संपूरण सारी।।39।। ...
______________
अधिक जानकारी के लिए विज़िट करें: https://jagatgururampalji.org
________________________________________
संत रामपाल जी महाराज से नाम दीक्षा प्राप्त करने के लिए या अपने नजदीकी नामदीक्षा केंद्र का पता करने के लिए हमे +91 82228 80541 नंबर पर कॉल करें |
________________________________________
For more videos Follow Us On Social Media
Facebook : https://facebook.com/SatlokAshram
Twitter : https://twitter.com/satlokchannel
Youtube : https://youtube.com/satlokashram
Instagram : https://www.instagram.com/satlokashram001/
Website : http://supremegod.org
Website SA NEWS : https://sanews.in
Watch Interviews:- https://www.youtube.com/c/SATrueStoryOfficial