हिन्दी साहित्य के दैदीप्यमान आत्मकथाकार डॉ. हरिवंशराय 'बच्चन' जी ने अपने जीवन चरित को क्या भूलूँ क्या याद करूँ में, नीड़ का निर्माण फिर', 'बसेरे से दूर, एवं 'दशद्वार से सोपान तक में यथार्थ चित्रण किया है।
क्या भूलूँ क्या याद करूँ में उन्होंने अपने जन्म से लेकर अपनी पत्नी श्यामा की असाध्य बीमारी तक के अनुभवों का यथार्थ चित्रण किया है।
नीड़ का निर्माण फिर में बच्चन जी के युवाकाल के आरम्भिक कठोर संघर्ष के उपरान्त जीवन एवं साहित्य में स्वयं को पुनः स्थापित करने की कहानी का वर्णन है।
बसेरे से दूर में उन्होंने अपनी जीवन की उस अवधि को प्रस्तुत किया है। जब बच्चन जी ने अपने देश ,नगर, घर, परिवार से दूर रहकर केम्ब्रिज में कवि ईट्स पर शोध कर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की।
दशद्वार से सोपान तक में अपने बच्चों की उन्नति, विदेश यात्राओं का यथार्थमयी चित्रण किया है।
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