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जुब्बल के धार गांव का ये गीत है !
धौलटा एक जवान हृष्ट–पुष्ट युवक था व राजा जुब्बल का सिलदार भी ! उसे सौटा खानदान की लड़की मौगनू से प्यार हो जाता है व् वो उसे ब्याहने की इजाज़त किसी बुज़ुर्ग से मांगता है ! अब उन दोनों की शादी हो जाती है व् वे दोनों ख़ुशी ख़ुशी अपना वैवाहिक जीवन व्यतीत करते है ! शादी के कुच्छ वर्ष बीत जाने पर उन दोनों के घर बेटे का जन्म नहीं होता जिस बात से भौल्कू ज्यादा दुखी रहता है ! अपनी ‘सिल्दारी’ को बिना किसी वंशज के चलते ख़त्म होता देख वो धार की ठारी यानी ज़ागा माता के सामने रोते हुए कहता है के मेरी तुझमे इतनी आस्था है फिर भी मेरी अर्धांगिनी मौग्नू से बेटा क्यों नहीं हो रहा ! हे मां अगर ऐसा हो जाता तो जूब लेकर मेरे दाइ भाइ मेरे घर आते और मैं बधाइ व खुशियां बांटता ! धार की लड़कियों को मैं लाठे के ढाठू देता व देवता संटोपिया को बकरे की बलि भी देता ! अपने गाँव की विवाहित बेटियों व् भांजो को गुड़ की भेली यानी लगभग 5 किलो का एक बड़ा सा ढेला देता. ये सभी बातें उस ज़माने के भोले भाले परिवेश को दरशाती हैं ! अब यहाँ कबिलेगौर है कि उस ज़माने में अगर पहली बिवी से बेटा नहीं होता था तो दुसरी तिसरी चौथी शादियां तक की जाती थीं ! और कोशिश की जाती के पहली बीवी की बहन से ही शादी की जाए ताकि दोनों सौतनो में ठीक बने व् घर की स्थिति भी अच्छी रहे !तो हालात का मारा सिलदार फैसला लेता है के वो दूसरी शादी करेगा पर पहले उसे मौग्नू को मनाना पड़ेगा ! तो वो मौग्नू से कहता है के उसने उसकी छोटी बहन गैरी से विवाह करने का निर्णय लिया है ! मुझे गैरी से दूसरी शादी कर लेने दे जिससे मेरा वंश खत्म न हो ! अब सिलदार ने हर झूठा सच्चा प्रयास किया जिससे अब मौग्नु और ज़्यादा चिढ़ जाती है व सीधे तौर पे कह देती है सौतन का होना बिलकुल वैसा है जैसा सर पे आप जलती अंगेठी रख दो तो मैं ऐसा नहीं होने दूँगी ! इस मनाने को समझ सिलदार कहता है के हम बेटियों की तरफ से पूरी तरह संपन्न हैं किन्तु वंश बढ़ाने के लिए बेटा भी ज़रूरी है तो उसकी प्राप्ति के लिए बड़े कदम या कष्ट झेलने पड़ेंगे ! अब आखिर में हार कर मौग्नू मान जाती है व् चूल्हे के सहारे बैठ के रोते हुए विलाप करती है !अब सिलदार नाच खेलकर धार की जागा माता के समीप के खलिहान पहुँच जाता है जहाँ उसे गैरी मिलती है व् वो उसे छल–सच से मनाने की कोशिश करता है ! इसपर गैरी दो टूक कहती है के इस बात पे मैं कैसे राज़ी हो सकती हूँ ! इसपर भौल्कू उसे आश्वस्त करता है के ये सब मौग्नु की ही रज़ामंदी से हो रहा है ! गैरी पूछती है के क्या सिलदार शादी का ताम झाम कर भी पाएगा जिसके जवाब में सिलदार कहता है के वो फ़िक्र न करे |अंततः शादी हो भी जाती है ! इस सब प्रकरण की खबर राजा जुब्बल तक पहुँच जाती है | ज़माने में राजा-ठाकुर अपनी रियासत की किसी भी मनचाही स्त्री युवती को भोग विलास व् महल काम काज क सम्बन्ध में अपने हरम में रखवा देते थे ! तो फरमान जारी किया गया के भौल्कू को राजा ने चार दिनों के लिए अपने महल बुलाया है ! अब राजा जुब्बल अपनी पगड़ी चीर के कहता है के गैरी के बदले वो सिलदार को जुब्बल की शिली-पराली इलाके की वज़ारत से भी नवज़ेगा ! इसपर भौल्कू कहता है आपका ये निर्णय सही नहीं है अब राजा क्रोध से कहता है मैं राजा हूँ और जो मेरी आज्ञा का पालन नहीं करेगा उसे सरे बाज़ार दण्डित किया जायेगा ! अपने राजा के आदेश का उल्लंघन भौल्कू ना कर सका और ये कहते हुए गैरी को सौंपने को तैयार हो गया के आपको कौन उलट के जवाब दे सकता है खैर अगर कोई ऐसा करता भी है तो मैं खुद उसका मुंह,हाथ-लात काट के आपके समक्ष रख दूंगा ! अब सिर झुकाके भौल्कू धार वापिस पहुँचता है और मौग्नु पूछती है के राजा ने क्या कहा !
इसपर दुखी सिलदार कहता है के राजा जुब्बल चांदी का तबीत है , उन्होंने गैरी को सरीत बनाने का फैसला लिया है ! ये सुन कर मौग्नु दिल ही दिल बड़ी खुश होती है और सोचती है के कहां खुद की ख़ुशी से गैरी को सौत बना कर लाइ थी और अब कहां उसे राजा के हरम में रहना पड़ेगा और मेरी महत्ता इस घर पर बनी रहेगी ! हालांकि मैंने बुजुर्गों से इसके आगे की कड़ियाँ जोड़ने का भी आग्रह किया तो उसका निचोड़ ये निकला के अंततः भी सिलदार को बेटा नहीं हुआ