लघुकथा- पापा जी
कहानी- ओम प्रकाश मिश्रा
पटकथा एवं संवाद- अनिल गुप्ता
निर्माता- संजीव कोठियाला
निर्देशक- नागेन्द्र
माता-पिता अपनी पूरी ज़िन्दगी की कमाई अपने बच्चों के भविष्य के सुनहरे सपनों को पूरा करने के लिए लगा देते हैं | अपने बुढ़ापे की परवाह किये बिना वे अपने बच्चों के सपनों को पूरा करते हैं| लेकिन वही बच्चे जब अपने बूढ़े माँ-बाप को घर का बोझ समझने लगे तो रिश्तों के साथ-साथ भावनाओं की भी आहूति दे दी जाती है | एक बूढ़े पिता का ठंढ़ के दिनों में घर के बरामदे में सोना, सुबह सिर्फ एक कप चाय बहू को बनाकर देने के लिए कहना, डाइंग रुम में बेटे-बहू और पोते के साथ बैठकर टीवी देखना क्या ये उनका हक नहीं है...बुढ़ापे की छड़ी माँ-बाप के लिए उनके बच्चे ही होते हैं | ओम प्रकाश मिश्रा की कहानी ऐसे ही एक बूढ़े पिता के आंसू और कपकपाती ज़ुबान से निकले दर्द को बयां करती है |
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