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|| जय चक्रधारी ||
आइये बात करते हैं, एक और अनसुलझे पहलु पर |
"धातु - कांसा "
समाज में आज हर घर में जगह बनाली है, स्टील और एल्युमीनियम के बर्तनो ने - लोग अपनी संस्कृति के प्रति इतने लापरवाह हो चुके हैं, के हर भारत की वैज्ञानिक वास्तु को अपनी दृष्टि से ओझल कर देते हैं | एल्युमीनियम और स्टील रोगो का भण्डार है, ना जाने नव युग है कब समझेगा | जिस घर में जाओ, वह स्टील या एल्युमीनियम से या हड्डियों के चूरे से बने चाय के कपो से स्वागत कर लोग इठलाते हैं, के उनकी तारीफ करो के आप कितना अच्छा काम कर रहे हैं | उनको बोल दें - के यह नकली बर्तन फेंक दो - तो किसी भी व्यक्ति को मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है |
कांसा - एक योग है, जिसमे वंग और ताम्र का संयोग करवाया जाता है | जिसका अनुपात ही वस्तुओ की योग्यता बदल देता हैं - जैसे - बर्तन हेतु - ७८:२२ का अनुपात, घुँघरू हेतु १:३ का अनुपात, बन्दूक की गोली हेतु - १००:१०:२ ताम्र,वंग,नाग |
खैर मूल बात हमारी है आज की - भोजन यदि कांसी में रख परोसा जाए, जो भोजन की योग्यता समाप्त नहीं होती, साथ ही उन उर्जाओ का संचार भोजन के माध्यम से होता है जिससे - नेत्र रोग में आराम मिले, कृमि रोग में आराम मिले, यहाँ तक की चर्म रोग में भी लाभदायक है |
अब भारत का विज्ञान इतना तीव्र सटीक है - के भोजन के पात्र कैसे हो, इनपर भी मानव कल्याण देखता है | इससे बढ़कर सूक्ष्मता क्या हो सकती भला ?
भोजन बनाने का भी एक पूरा विधान है - आयुर्वेद भोजन बनाने हेतु - मिट्टी और कलाई किये हुए पीतल पात्रो पर ही बल देता है |
कांसे के बर्तनो का महत्त्व इतना प्रबल है - के यदि बेटी के दहेज़ में - कांसे का बर्तन भेंट में न दिए जाए तो दहेज़ अधूरा ही माना जाता है |
आज बाजार में जो कारीगर हैं - जो बनाते हैं, उनसे एक ही प्रार्थना है - के लोगों को मिलावटी सामन न देकर शुद्ध चीज़ उपलब्ध करवाओ ताकि भारत का कल्याण हो सके | क्युकी नकली कांसा - सीसे और ताम्बे के योग से बना दिया जाता है, जिसकी पहचान आम आदमी नहीं कर पाता | इस बेईमानी के कारण यहाँ का नागरिक, जानकारी न होने के कारण, समझने लगता है के गड़बड़ बेचने वाले में नहीं बल्कि - भारतीय अध्यात्म में है | बस यही हमारी कमी है | जिस दिन इस गड्ढे को पाट दिया जायेगा, यहाँ के हर नागरिक का आनंद और ऊँचा होगा |
|| ॐ का झंडा ऊँचा रहे ||