“अपने हित से पहले, समाज और देश के हित को देखना एक विवेक युक्त सच्चे नागरिक का धर्म होता है”। ये सोच थी महान शख्सियत ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की जिनकी बात आज हम विशेष में करने जा रहे है.... उन्नीसवीं शताब्दी के बंगाल के प्रसिद्ध दार्शनिक, शिक्षाविद, समाज सुधारक, लेखक और परोपकारी व्यक्ति के तौर पर इतिहास के पन्नों पर उनका नाम दर्ज है। ईश्वर चंद्र विद्यासागर के बारे में बचपन में आपने किताबों में जरूर पढ़ा होगा। भारत के सभी प्राइमरी विद्यालयो के पाठ्यक्रम में पढ़ाई के दौरान ईश्वरचंद्र विद्यासागर के बारे में बताया जाता है। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह यही है कि उनके आदर्शों का प्रभाव बचपन से ही बच्चों पर पड़े। पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं की आवाज़ थे ईश्वर चंद्र विद्यासागर... जो वाकई चाहते थे कि महिलाओं का जीवन बेहतर बने... वो घरो से बाहर निकलें. स्कूल जाकर पढ़ें-लिखें। उन दिनों देशभर में महिलाओं का जीवन बहुत खराब था। खासकर अगर कोई महिला विधवा हो जाती थी तो उसका जीवन खासा मुश्किल हो जाता था... महिलाओं के इस दर्द को उन्होने समझा और उनके अथक प्रयासों के बाद साल 1856 में विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित हुआ। ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने अपने इकलौते पुत्र का विवाह एक विधवा से करवारकर समाज में शानदार उदाहरण पेश किया। और ये संदेश दिया कि किसी भी नई शुरूआत को अपने घर से ही शुरू किये जाने की जरूरत है। आज विशेष के इस अंक में बात करेंगे ईश्वर चंद्र विद्यासागर के जीवन के बारें में, उनके आदर्शों के बारे में और जानेंगे कैसे उन्होने अपना जीवन समाज के हित में समर्पित कर दिये...
Anchor – Ghanshyam Upadhyay
Producer – Rajeev Kumar, Ritu Kumar, Abhilasha Pathak
Production – Akash Popli
Reporter - Bharat Singh Diwakar
Graphics - Nirdesh, Girish, Mayank
Video Editor - Saif Khan, Mukhtar Ali, Dalip Kumar