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Sakhi ! Main Biki Aaju Binu Daam | Kripaluji Maharaj Bhajan | Prem Ras Madira-Milan Madhuri

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Written and Composed by Jagadguru Shri Kripaluji Maharaj Prem Ras Madira- Milan Madhuri Sankirtan Madhuri Part-3, सखी ! मैं बिकी आजु बिनु दाम । कियो न मोल-तोल कछु मोते, लियो मोल घनश्याम । करि तन, मन, अरु प्रान निछावर, भइ जग सों बेकाम । अब सोइ नाम-रूप-गुन-लीला, सुमिरत आठो याम । भुक्ति-मुक्ति तजि पियत प्रेम-रस, कान्तभाव निष्काम । जाको चहत 'कृपालु' पिया बस, सोइ सुहागिनि बाम ।। भावार्थ-(एक मोपीका प्यारे श्यामसुन्दरसे प्रथम-मिलन एवं उसका अपनी सखीसे कहना।) अरी सखी ! आज मैं तो बिना मोल के ही बिक गई। उस प्यारे श्यामसुन्दर ने बिना कुछ मोल-तोल अर्थात् बात-चीत किये ही मुझे मोल ले लिया, अर्थात् सदा के लिए अपनी बना लिया। मैं भी तन-मन, प्राण आदि सर्वस्व देकर संसार से सदा के लिए पृथक् हो गई । अरी सखी ! अब मैं श्यामसुन्दर के नाम, रूप, गुण, लीला का निरन्तर ही स्मरण कर रही हुँ । संसार के सुख एवं मोक्ष आदि के सुख, सभी को छोड़कर कान्तभावयुक्त निष्काम-प्रेम का ही निरंतर पान कर रही हूँ। "कृपालु' कुछ लम्बी साँसें भरते हुए कहते हैं कि जिसको पिया चाहता है वही सुहागिनी स्त्री हो सकती है अर्थात् मुझ अभागिनी के भाग्य में ऐसा विधाताने अभीतक विधान ही नहीं रचा।

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