ध्यान ही समय के अन्तराल में सहज रूप से एकाग्रता (समाधि)में बदल जाता है। ध्यान करते समय मन में आने वाले बाह्य विचारों के प्रति सर्वथा उदासीन होकर ध्यान करना ही उचित तरीका है। अवांछित विचारों को दूर करने के लिए मानसिक द्वन्द्व बहुधा असफल हो जाता है।
-Babu Ji Maharaj