शुकदेव जी क़ी परम पावन कथा //shukdev ji ki param paavan katha //
भगवान शिव, पार्वती को अमर कथा सुना रहे थे। पार्वती जी को कथा सुनते-सुनते नींद आ गयी और उनकी जगह पर वहां बैठे एक शुक, ने हुंकारी भरना प्रारम्भ कर दिया। जब भगवान शिव को यह बात ज्ञात हुई, तब वह शुक को मारने के लिये भागे और उनके पीछे अपना त्रिशूल छोण दिया । शुक जी जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागते रहे,भागते-भागते वह व्यास जी के आश्रम में पहुंचे और सूक्ष्मरूप बनाकर, उनकी पत्नी के मुख में घुस गये । शुकदेव जी मुख मार्ग से पहुंचकर व्यास जी की पत्नी के गर्भाशय में स्थापित हो गए। ऐसा कहा जाता है कि, ये बारह वर्ष तक गर्भ से बाहर ही नहीं निकले। जब भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं आकर इन्हें आश्वासन दिया कि, बाहर निकलने पर तुम्हारे ऊपर माया का प्रभाव नहीं पणेगा।तभी ये गर्भ से बाहर निकले और व्यासजी के पुत्र कहलाये। गर्भ में ही इन्होने वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का सम्यक ज्ञान प्राप्त कर लिया था।
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