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Tujhe Suraj Kahu Ya Chanda | Episode-325 | Nishant Shahir & Suppo actors | Stage Perform

Sim Sim Eye 384,167 4 years ago
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भारतीय जीवन प्रणाली के कई ऐतिहासिक संदर्भो में लोक कलाओ का वर्णन किया गया हैं. जिसमे से आज भी कई लोककलाएँ प्रचारित और प्रसारित हैं. लोक कलाओ पे लिखी अनेक पुस्तकों में स्पस्ट रूप से ये उल्लेख किया गया हैं, की मनोरंजन हेतु ही लोक कलाओ का उगम हुआ. भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही विभिन्न धर्म जाती और भाषाए अस्तित्व में हैं, इसी कारन वे अपनी अपनी जीवन शैली के आधार पर मनोरंजन हेतु लोककलाओं का निर्माण करते चले गए. अलग अलग प्रान्तों में अपनी पहचान लिए ये लोककलाएँ विकसित होती चली गयी. अपने उगम से लेकर आज तक भारतीय समाज में ये लोककलाएँ आज भी उतनी ही प्रभावशाली और आकर्षक हैं. ऐसी ही एक लोककला मध्यप्रदेश के सीमाई भागो से विदर्भ में विकसित और प्रसारित होती चली गयी. “खड़ीगंमत” ‘खड़ी’ ये शब्द हिंदी और ‘गंमत’ ये शब्द मराठी से लिया गया हैं. मराठी और हिंदी भाषा का ये अनोखा संगम खड़ीगंमत में ही देखने को मिलता हैं. महाराष्ट्र प्रान्त के विदर्भ पट्टे में जन्मी पलीबढ़ी खड़ीगंमत आज अपने योवन पर हैं. वैसे विदर्भ में अनेको लोककलाएँ अस्तित्व में हैं. किन्तु खड़ीगंमत अपने अनोखे आकर्षण एवम प्रस्तुतिकरण को लेकर समस्त कला प्रेमियों को आकर्षित करती हैं. विशेषतः खड़ीगंमत में मरठी भाषा के साथ हिंदी भाषा का भी प्रयोग किया जाता हैं. प्रसिद्ध और प्रचलित खड़ीगंमत का स्वरुप अनोखा हैं. जिसमे मनोरंजन की भरपूरता के साथ ही प्रबोधन का कार्य इसे अनूठा और सशक्त बनता हैं. लोक कलाओं की बात की जाये तो इसमे अलग अलग विशेषताएँ दिखाई पड़ती हैं. किन्तु इनकी तुलना में खड़ीगंमत ही सबसे अधिक प्रभावित करती हैं. इस तरह की ऐतिहासिक लोक कलाओं में कला पारखी और शोधकर्ताओं ने अनेक शोधकार्य किये हैं. किन्तु एक शोध के दौरान मुझे ऐसा लगा की खड़ीगंमत पर किया हुआ शोधकार्य पूर्ण होते हुए भी अपूर्ण हैं. विदर्भ की अन्य लोककलाओं की तुलना में ‘खड़ीगंमत’ पर और शोधकार्य होना अनिवार्य हैं. शोधकार्य के आधार पर यदि देखा जाए तो ‘खड़ीगंमत’ के सभी पात्र बेजोड़ और बेमिसाल हैं. खड़ीगंमत अपने उगम से लेकर आज तक प्रस्तुतीकरण को लेकर अपने पुराने परिवेश में ही नज़र आती हैं. आज की स्थिति में थोडा बहोत बदलाव ज़रूर नज़र आता हैं. मेरे विचार से इसके हर पात्रो पे शोधकार्य किया जा सकता हैं. सबकी अलग अलग भूमिका अलग अलग महत्व हैं. ‘शाहिर’ एक तरह से खड़ीगंमत का मुख्य अभिनेता हैं, जिसकी गायकी और काव्य का दमदार प्रस्तुतीकरण, श्रोताओ को मुग्ध करता हैं. और नारी रूपी पुरुष ‘नाच्या’ अपनी लुभावनी अदाओं और नृत्य से दर्शको को आकर्षित और उत्तेजित करता हैं. ढोलकी वादक, तुन-तुना वादक, ताड़ वादक, क्लैरिओनेट वादक, गमत्या खड़ीगंमत के सह अभिनेता हैं. ये सभी पात्र एक मंच पर एक साथ सभी उपस्तिथ रहते हैं. न कोई मंच के पीछे, अगल-बगल ना सामने होता हैं. खड़े होकर सम्पूर्ण रात किया जाने वाला प्रस्तुतीकरण हैं ‘खड़ीगंमत’. इसमें शाहिर की गायकी पर पूरी रात नाचता थिरकता ‘नाच्या’, खड़ीगंमत को अपनी अदा और नाच के दमखम से, अलग पहचान दिलाता हैं. जितना योगदान इनका उतना ही योगदान अन्य कलाकार एवम वादकों का होता हैं. नौ, सात, ग्यारा, के आसपास इनकी संख्या होती हैं. मनोरंजन की चाशनी के साथ प्रबोधन का प्रसाद भी. राजनैतिक, ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक, समता बन्धूत्वता, भ्रूण हत्या, अँध-विस्वास, दहेज़ प्रथा, दारूबंदी, स्त्री मुक्ति, साक्षरता जैसे अनेक सामाजिक विषयो पर खुलकर व्यंग किया जाता हैं. हास्य व्यंग मनोरंजन और कटाक्ष से भरपूर ‘खड़ीगंमत’. खड़ीगंमत दो स्वरुप में प्रस्तुत की जाती हैं, १) एकल, २) दुय्यम. इसमे नृत्य, गायन, संगीत और नाट्य अभिनय का अनोखा संगम खुलकर दिखाई पड़ता हैं.किन्तु खड़ीगंमत आज अपनी दयनीय स्थिति में जिवीत हैं. खड़ीगंमत पर ऐतिहासिक शोधकार्य करना इसका अर्थ, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और विदर्भ के जिल्हो में विकसित इस लोककला से जुडी हिंदी मराठी दोनों भाषा मिश्रीत लोककलाओं के सांथ सांथ इनकी ऐतिहासिक एवम संस्कृति पर शोधकार्य करना है

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