Bhajan by Dharmendra Singh Sonu
जय श्री राम
धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः । तस्माद्धर्मं त्यजेन्नैव मा नो धर्मो हतोऽवधीत्॥
जो पुरूष धर्म का नाश करता है, उसी का नाश धर्म कर देता है, और जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म भी रक्षा करता है । इसलिए मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले, इस भय से धर्म का हनन अर्थात् त्याग कभी न करना चाहिए ।’’
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