Satguru Vaani (सतगुरू वाणी)
जीव सगुण की भक्ति करता है उसने जिस मंत्र की साधना की है || उस को अनुभव होता है || निर्गुण भक्ति मे वो अपने इष्ट को निर्गुण स्वरूप मे देखता है || और केवल्य भक्ति मे जीव सास और उसास मे "राम" शब्द की विधि रटकर स्थूल शरीर से केवल्य शरीर मे पोहच जाता है और अमरलोक, सतलोक,नुडी लोक मे जाने को ही जीवित मोक्ष का अनुभव समझते है और संतो ने सुरु मे जो भक्ति की है उस ने यह कहा है मोक्ष का अनुभव होने से जीव सत्य को माननेगा ||
🪷 सत्य -यह तीन भक्ति जीव ने संसार मे बनाये है यह सब मन की व्यवस्था है मोक्ष का कोई अनुभव नहीं होता है और जो हो रहा है वो मन को हो रहा है || आत्मा को कोई मोक्ष के अनुभव की आवश्यकता नहीं पडती है क्युकी आत्मा ही सर्व व्यापक है
आत्मा ही परमात्मा है||