आठ चक्रों और नवद्वारों से युक्त, अपने आनन्द स्वरूप वालों की, किसी से युद्ध के द्वारा विजय न की जाने वाली (अयोध्या) पुरी है । उसमें तेज स्वरूप कोश सुख स्वरूप है, जो ज्योति से ढका हुआ है। (अथर्ववेद १०/२/३१)
वशिष्ट संहिता अध्याय ८७,१६०
अयोध्या नगरी नित्या सच्चिदानंद।
यस्यांश अंशेंन वैकुंठा गोकलोकादी प्रतिष्ठत:।।
शिव संहिता पंचम पटल , अध्याय २०
अयोध्या नंदिनी सत्यनामा साकेत इत्यपी।
कौशला राजधानी च ब्रह्मपुरा अपराजिता।।१५४
अष्टचक्र नव द्वारा नगरी धर्म संपदाम।
दृष्टयव्यम ज्ञान नेत्रेन ध्यातव्य सरयूस्तथा।।१५५
धर्म ग्रंथों से यह क्लियर है कि इस अयोध्या धाम की स्थिति गोलोक के मध्य में है (पद्म पुराण,शुकदेव तथा शिव संहिता आदि)
यहां श्री कृष्ण ही राम परब्रह्म रूप ते निवास करते हैं।
श्री श्री ब्रह्म संहिता में
_"ईश्वर: परम: कृष्ण: सच्चिदानन्द: विग्रह:,_ _अनादिरादि गोविन्द: सर्व कारण कारणम:।"_ (ब्रह्म संहिता ५.१)
गोलोक धाम में माया और काल आदि की कोइ गति नहीं है।
श्री मद्भागवत गीता में श्री कृष्ण चन्द्र जी ने संकेत दिए। सद ग्रंथों से यही मोक्ष स्थान सिद्ध होता है।।
जय श्री हरि ।।