सदगुरू कबीर की भाषा में और वास्तव में,ये चलते –फिरते प्राणी और मानव ही सच्चे ईश्वर हैं, अतएव जाति, संप्रदाय और मजहब की दीवार को तोड़कर सबके साथ अगाध स्नेह करना ही ईश्वर पूजा है, और सदाचार ही सच्चा धर्म–पालन है।
सदगुरु ने कहा कि जिस परमात्मा, मोक्ष, निर्वाण, ब्रह्म, राम को हम पाना चाहते हैं वह मनुष्य के अपने आत्माराम से कुछ अलग वस्तु नहीं है। वासनाओं को छोड़कर निज चेतन स्वरूप में स्थित होना परम तत्व को पाना है। निज स्वरूप की परख हुए बिना यह दशा नहीं मिलती। साहेब ने कहा है–
जो तू चाहे मुझको, छाड़ सकल की आश।
मुझ ही ऐसा होय रहो,सब सुख तेरे पास।।