Sanskrit Pathshala (Dr. Avdhesh Vidyalankar)
सर्वेभ्यो नमः।
न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति।। श्रीमद्भगवद्गीता 4.38।।
अर्थ - इस लोक में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला, निसंदेह, कुछ भी नहीं है। योग में संसिद्ध पुरुष स्वयं ही उसे (उचित) काल में आत्मा में प्राप्त करता है।।
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डॉ० अवधेश विद्यालङ्कार
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