मंत्र तंत्र यंत्र चैनल में आप सभी का स्वागत है आज मैं आप सभी के लिए कार्य सिद्धि कारक गोरक्षनाथ जी का महामंत्र लेकर आया हूं
इस मंत्र को सिद्ध करने की विधि इस प्रकार है
गुरु-पुष्य, रवि-पुष्य, अमृत-सिद्धि-योग,सर्वार्त-सिद्धि-योग या दिपावली की रात्रि से आरम्भ कर तैंतीस या छत्तीस हजार जाप का अनुष्ठान करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है।
इस को सिद्ध करने पर केवल इक्कीस बार जपने से राज्य भय, अग्नि भय, सर्प, चोर आदि का भय दूर हो जाता है । भूत-प्रेत बाधा शान्त होती है ।
मोर-पंख से झाड़ा देने पर वात, पित्त, कफ-सम्बन्धी व्याधियों का उपचार होता है ।
मकान, गोदाम, दुकान घर में भूत आदि का उपद्रव हो तो दस हजार जप तथा दस हजार गुग्गुल की गोलियों से हवन किया जाये, तो भूत-प्रेत का भय मिट जाता है ।
राक्षस उपद्रव हो, तो ग्यारह हजार जप व गुग्गुल से हवन करें ।
इस मंत्र का प्रतिदिन १०८ बार जप सुनने से चोर, बैरी व सारे उपद्रव नाश हो जाते हैं तथा अकाल मृत्यु नहीं होती तथा साधक पूर्णायु को प्राप्त होता है ।
आग लगने पर इक्कीस बार पानी को अभिमंत्रित कर छींटने से आग शान्त होती है ।
मोर-पंख से इस मंत्र द्वारा झाड़े तो शारीरिक नाड़ी रोग व श्वेत कोढ़ दूर हो जाता है ।
सात बार जल अभिमंत्रित कर पिलाने से पेट की पीड़ा शान्त होती है ।
पशुओं के रोग हो जाने पर मंत्र को कान में पढ़ने पर या अभिमंत्रित जल पिलाने से रोग दूर हो जाता है । यदि घंटी अभिमंत्रित कर पशु के गले में बाँध दी जाए, तो प्राणि उस घंटी की नाद सुनता है तथा निरोग रहता है ।
ऐसे ही कई अनगिनत लाभ है इस मंत्र के
यह मंत्र में आप सभी के लिए 108 बार जाप करके दे रहा हूं इस महाशक्तिशाली मंत्र को प्रतिदिन सुने
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मंत्र:-
ॐ गों गोरक्षनाथ महासिद्धः,
सर्व-व्याधि विनाशकः ।
विस्फोटकं भयं प्राप्ते,
रक्ष रक्ष महाबल ।। १।।
यत्र त्वं तिष्ठते देव,
लिखितोऽक्षर पंक्तिभिः ।
रोगास्तत्र प्रणश्यन्ति,
वातपित्त कफोद्भवाः ।। २।।
तत्र राजभयं नास्ति,
यान्ति कर्णे जपाः क्षयम् ।
शाकिनी भूत वैताला,
राक्षसा प्रभवन्ति न ।। ३।।
नाऽकाले मरणं तस्य,
न च सर्पेण दश्यते ।
अग्नि चौर भयं नास्ति,
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं गों ।। ४।।
ॐ घण्टाकर्णो नमोऽस्तु ते ॐ ठः ठः ठः स्वाहा ।।