🔹 स्वर्ग लोक और सतलोक में अंतर
श्रीमद्देवी भागवत पुराण के तीसरे स्कन्ध के पृष्ठ 123 के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी नाशवान हैं यानी देवताओं का स्वर्गलोक भी नाशवान है।
जबकि संत गरीबदास जी महाराज ने मोक्ष स्थान सतलोक के विषय में कहा है:
ना कोई भिक्षुक दान दे, ना कोई हार व्यवहार।
ना कोई जन्मे मरे, ऐसा देश हमार।।
🔹 सतलोक Vs स्वर्ग
हम सभी जानते हैं यह लोक नश्वर है यानी जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु अवश्य होगी और यह चक्र स्वर्गलोक से लेकर ब्रह्मलोक तक चलता है।
जबकि सतलोक, वह मोक्ष स्थान है जहाँ जन्म मृत्यु का दुःख नहीं है। बल्कि वहाँ सुख ही सुख है। इसलिए संतों ने मोक्ष स्थान सतलोक को सुख सागर कहा है। संत गरीबदास जी ने इस बारे में कहा है:
जहां संखों लहर मेहर की उपजैं, कहर जहां नहीं कोई।
दासगरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।।
🔹सतलोक Vs स्वर्ग
मोक्ष वह स्थान है जहाँ जन्म, मृत्यु और वृद्धावस्था का दुःख नहीं होता।
गीता अध्याय 8 श्लोक 16 के अनुसार, स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक में गए प्राणियों का भी पुनर्जन्म होता है।
वहीं, गीता अध्याय 18 श्लोक 62 के अनुसार, मोक्ष का स्थान सतलोक है जहाँ कोई कष्ट नहीं है बल्कि वहाँ परम शांति है।
🔹सतलोक Vs स्वर्ग
स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक सहित काल ब्रह्म के 21 ब्रह्मांडों में शांति व सुख का नामोनिशान नहीं है। त्रिगुणी माया से उत्पन्न काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, राग-द्वेष, हर्ष-शोक, लाभ-हानि, मान-बड़ाई रूपी अवगुण हर जीव को इन लोकों में परेशान किए हुए हैं। जबकि सतलोक में केवल एक रस परम शांति व सुख है। जब तक हम सतलोक में नहीं जाएंगे तब तक हम परमशांति, सुख व मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकते। जिससे स्पष्ट है कि सतलोक ही मोक्ष स्थान है।
🔹मोक्ष स्थान सतलोक
मोक्ष स्थान वह स्थान है जहाँ अजर-अमर स्थिति होती है और जहाँ जाने के बाद प्राणी का जन्म-मृत्यु का चक्र समाप्त हो जाता है।
धर्म शास्त्रों के अनुसार, स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक नाशवान हैं जबकि सतलोक (सनातन परम धाम) अविनाशी लोक है। क्योंकि सतलोक में जाने के बाद साधक को लौटकर संसार में वापस नहीं आना पड़ता। इसलिए मोक्ष स्थान सतलोक है।
🔹 सतलोक Vs स्वर्ग
सतलोक वह मोक्ष स्थान है जहां जन्म-मृत्यु, वृद्धावस्था या अन्य दुख व पीड़ा नहीं होती, जो इसे स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक से श्रेष्ठ बनाता है।
स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक के देवता और 21 ब्रह्मांड का स्वामी काल ब्रह्म भी नाशवान हैं।
🔹सतलोक में आत्मा को पूर्ण मोक्ष प्राप्त होता है, जो स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक में असंभव है। स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक की आत्माएं जन्म और मृत्यु के चक्र में बंधी रहती हैं, जबकि सतलोक में आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है।
🔹सतलोक Vs स्वर्ग
सतलोक जाने के बाद आत्मा का पूर्ण मोक्ष हो जाता है जिससे आत्मा को 84 लाख योनियों का कष्ट नहीं उठाना पड़ता। जबकि स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक में जाने के बाद आत्मा को कर्मों के आधार पर स्वर्ग, नरक, 84 लाख योनियों का कष्ट भोगने के बाद पुनः पृथ्वी पर जन्म-मृत्यु के चक्र में आना पड़ता है।
🔹सतलोक Vs स्वर्ग
मोक्ष वह स्थान है जहाँ जन्म, मृत्यु और वृद्धावस्था का दुःख नहीं होता।
गीता अध्याय 8 श्लोक 16 के अनुसार, स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक में गए प्राणियों का भी पुनर्जन्म होता है।
वहीं, गीता अध्याय 18 श्लोक 62 के अनुसार, मोक्ष का स्थान सतलोक है जहाँ कोई कष्ट नहीं है बल्कि वहाँ परम शांति है।
🔹सतलोक Vs स्वर्ग
गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा है कि ब्रह्मलोक तक सभी लोक और उनमें गए हुए प्राणी पुनरावृत्ति यानी जन्म-मृत्यु के चक्र में हैं। अर्थात ब्रह्मलोक और स्वर्गलोक तक गए प्राणियों का मोक्ष नहीं होता।
जबकि गीता अध्याय 18 श्लोक 62 और अध्याय 15 श्लोक 4 में सनातन परम धाम यानी सतलोक का वर्णन किया गया है, जहाँ जाने के बाद लौटकर संसार में नहीं आना पड़ता, यानी पूर्ण मोक्ष प्राप्त हो जाता है। इसलिए मोक्ष स्थान सतलोक है।
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