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What Is Panch Kosh ? पंचकोश क्या है ? Types of Panch Kosh। पंच कोष के प्रकार। Koshas Of Existence |

Vimal Vani 74,574 4 years ago
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important topics - 1. panch kosh 2. What is panch kosh 3. Panch kosh kya hai 4. Type of panch kosh 5 Panch kosh k prakar 6 Anandmay kosh 7. Pranamay kosh 8. Manomay kosh 9. Vigyanmay kosh 10. Annamay kosh 11. Kosh kya hai 12. Panch kosh aur uske prakar 13. Panch kosh and its types 14. पंच कोशः Vimal vani Vivekanand vimal #panchkosh #Anandmaykosh #annamaykosh #pranmaykosh, #manomaykosh #pranmaykosh #vimalvani #vivekanandvimal ये 5 कोशः या परत है - 1 अन्नयमय कोशः जिसे हम अंग्रेजी में physical body कह सकते हैं। दूसरा प्राणमय कोशःया etheric body तीसरा मनोमयः कोश या astral body चौथा विज्ञानमय कोश या mental body और पांचवा आनंदमय कोश या causal bodyH चलिए दोस्तों अब मैं एक-एक कर इन पांचों कोशो का विश्लेषण करता हूं और आप को समझाने की कोशिश समझाने की कोशिश करता हूं कि वास्तव में यह कोष क्या है 1। अन्नमय कोश दोस्तों अन्नमय का अर्थ होता है अन्न से युक्त। यानी जो कुछ भी इस संसार मे भोजन से युक्त है। वह अन्न मय कोशः का ही हिस्सा है। जैसे हमारा शरीर भी भोजन से ही बना है तो यह अन्नयमय कोश का ही हिस्सा है। भोजन इस प्रकृति के स्थूल जगत का एक हिस्सा है इसलिए यह सम्पूर्ण स्थूल जगत, ग्रह-नक्षत्र, तारे और हमारी यह पृथ्वी भी अन्नयमय है। ययानी जिसे भी हम खुली आँखों से देख सकते हैं, वह सब अन्नयमय कोशः के अंतर्गत आता है। दोस्तों, यह प्रथम कोश है जहाँ आत्मा एक शरीर रूपी चोला पहन कर स्वयं को अभिव्यक्त करती है। और हम माया और अज्ञान में फंस कर शरीर को ही सबकुछ मान लेते हैं, जबकि यह तो केवल भोजन का एक संग्रह या ढेर है, जिसे हमने खाना खा कर तैयार किया है। यह आत्मा की वह परत है जिसे हम नंगी आँखों से देख सकते हैं। इससे अंदर के कोषों को हम नंगी आंखों से नहीं देख सकते। जो आत्मा इस शरीर को ही सब कुछ मानकर भोग-विलास में निरंतर रहती है वही तमोगुणी कहलाती है। इसलिए दोस्तों इस स्थूल शरीर या आत्मा के बाहरी परत से बढ़कर भी कुछ है, जिसे हम नहीं समझ पाते। वह है - प्राणमय कोश - यानी पंच कोषों में दूसरा दोस्तों इसे हम एक प्रकार का 'चार्जर' कह सकते हैं जिसके द्वारा अन्नमय कोश की आंतरिक क्षमताओं में शक्ति व्यय होते रहने पर उन्हें खोखला नहीं होने देती। बल्कि बैटरी को डिस्चार्ज होने के पूर्व ही उसे चार्ज कर देती है। दोस्तों , प्राणतत्व को चेतन ऊर्जा यानी लाइफ एनर्जी कहा गया है। ताप, प्रकाश, चुम्बकत्व, विद्यत शब्द आदि ऊर्जा के अलग अलग रूप हैं। इस विश्वब्रह्माण्ड में मैटर यानी पदार्थ की तरह ही सचेतन प्राण ऊर्जा भी भरी पड़ी है। साँसों के द्वारा इसी शक्ति का प्राणाकर्षण करके हम उसे प्राप्त करते हैं। प्राणायाम की विभिन्न प्रक्रियों के द्वारा हम अधिक मात्रा में प्राणों का अवशोषण कर सकते हैं। चेहरे पर चमक, आँखों में तेज, मन में उमंग, स्वभाव में साहस एवं प्रवृत्तियों में पराक्रम इसी विद्युत्प्रवाह का उपयुक्त मात्रा में होना है। इसे ही प्रतिभा अथवा तेजस् कहते हैं। स्वास लेने से हमारे अन्नमय कोश से जो स्पंदन बाहर की तरफ़ जाता है उससे हमारे चारों तरफ़ तरंगों का एक क्रम बन जाता है, यही हमारा प्राणमय कोश होता है, शरीर के इर्दगिर्द फैला हुआ यह विद्युत् प्रकाश तेजोवलय कहलाता है। जो नंगी आंखों से तो नहीं देखा जा सकता लेकिन आधुनिक विज्ञान के कुछ तकनीकों से जरिये इसे देखा जा सकता है। विज्ञान की भाषा मे इसे aura भी कहा जाता है। मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ मनुष्य पूर्ण साँस लेता है जिससे उसका प्राणमय कोश उत्तम अवस्था में रहता है साथ ही प्राणायम के सतत प्रयोग से प्राणमय कोश को स्वस्थ रखा जा सकता है। 3. मनोमय कोश दोस्तों हमारे अस्तित्व में अन्न और प्राण के अलावा जो तीसरी चीज है वह है मन । मन के अंदर ही हमारी सारी कल्पनाऐं, विचारणाऐं, इच्छाएँ, आदि उत्पन्न होती है। मनोमय कोश पूरी विचारसत्ता का क्षेत्र है। इसमें मन के तीन रूपों चेतन यानी conscious, अचेतन यानी sub conscious एवं उच्च चेतन यानी super conscious तीनों ही परतों का समावेश है। इसमें मन, बुद्धि और चित्त तीनों का संगम है। मन कल्पना करता है। बुद्धि विवेचना करती और निर्णय पर पहुँचाती है। चित्त में अभ्यास के आधार पर वे आदतें बनती हैं, जिन्हें संस्कार भी कहा जाता है। इन तीनों का मिला हुआ स्वरूप ही मनोमय कोश है। 4. विज्ञानमय कोश दोस्तों विज्ञानमय कोश को समझ पाना इतना आसान नहीं। यह अन्तर्ज्ञान या सहज ज्ञान से बना है। आम मनुष्य को इसका बहुत कम आभास होता है। जब हम मन से पार हो जाते तभी वास्तव में हम अंतर्ज्ञान या वास्तविक ज्ञान को महसूस कर पाते हैं।इसलिए इसका अनुभव महान योगी जन ही वास्तविक तौर पर कर पाते हैं। जो मनुष्य पूरी समग्रता से समझ बूझ कर विज्ञानमय कोश का उचित ढंग से इस्तेमाल करता है और असत्य, भ्रम, मोह, आसक्ति आदि से पूरी तरह दूर रहकर हमेशा ध्यान आदि योगक्रियाओं का अभ्यास किया करता है, उसको उचित-अनुचित का निर्णय करने वाली विवेक युक्त बुद्धि अर्थात अंतर्ज्ञान बड़ी आसानी से प्राप्त हो जाती है। यही वह शक्ति है जिससे योगी जन भूत भविष्य वर्तमान को देख पाते हैं, या वो ज्ञानी बन पाते हैं। आनंदमयः कोश दोस्तों पूर्वके चारों शरीर की बाधा से जब आत्मा मुक्त होती है तो अंततः वह वहां पहुचती है जहां केवल आनंद रह जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ भी नही। हमारे प्राचीन मनीषियों ने इस कोश को हृदयाकाश , कारण शरीर , आदि नामों से भी पुकारा है ।

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