Why after working in the film with Amitabh Bachchan This actress said goodbye to acting Why her death was made a mystery
Why after working in the film with Amitabh Bachchan This actress said goodbye to acting Why her death was made a mystery
हालाँकि, अपनी प्रतिभा के बावजूद, खूबसूरत अभिनेत्री कभी भी अपनी समकालीन मधुबाला और सुरैया की तरह बड़ी लीगों में जगह नहीं बना सकीं। उन्होंने अपना एकमात्र पुरस्कार, नवकेतन की काला पानी (1958) के लिए सहायक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री की फिल्मफेयर ट्रॉफी जीती। इसके बाद उनके फिल्मों में काम करने की संख्या काफी धीमी हो गई। उनकी आखिरी फिल्म भूमिका नास्तिक (1983) में अमिताभ बच्चन की मां के रूप में थी।मेहबूब खान की बहन में नलिनी जयवंत को शीर्षक किरदार के रूप में दिखाया गया था, लेकिन फिल्म उनके पुराने भाई अमर के बारे में थी, जिसे शेख मुख्तार ने निभाया था, जो अपनी बहन बीना के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील हो जाता है। कई लोगों ने टिप्पणी की कि उन्हें यह कहानी परेशान करने वाली लगी, जो अक्सर अनाचार पर आधारित होती है क्योंकि अमर अपनी बहन को उस पर निर्भर रखने की साजिश रचता है और जिस आदमी से वह प्यार करती है, उससे शादी करने की उसकी इच्छा का समर्थन नहीं करता है। एक युवा लड़की के रूप में, जयवंत ने सामाजिक नाटक में अपना दबदबा कायम रखा और लगातार कई फिल्में साइन कीं।मेश सहगल द्वारा निर्देशित जासूसी थ्रिलर, समाधि, में नलिनी जयवंत को अभिनेत्री कुलदीप कौर के साथ उनके सबसे लोकप्रिय नंबरों में से एक, 'ओ गोर गोर, बांके चोर' में दिखाया गया था। सी. रामचन्द्र द्वारा रचित इस गीत में दो अभिनेत्रियाँ थीं, । नलिनी जयवंत का किरदार लिली वास्तव में अंग्रेजों के लिए एक जासूस है और उसे अपने प्यार सुरेश (अशोक कुमार) को धोखा देना है जो सुभाष चंद्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना में है। उसने लिली की नैतिक दुविधा को दृढ़ता से संभाला और कलाकारों की टोली में खड़ी हो गई जिसमें श्याम और डेविड भी शामिल थे।एक वैश्या किशोरी की भूमिका निभाते हुए, जिसके पास हत्या के झूठे आरोपी एक निर्दोष व्यक्ति को छुड़ाने की कुंजी है, नलिनी जयवंत ने परवरिश (1958) में ललिता पवार और साधना (1958) में लीला चिटनिस को पछाड़कर सहायक भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार जीता। . उन्होंने देव आनंद (जिन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार भी जीता) और मधुबाला के साथ नवकेतन फिल्म में गिरी हुई महिला की भूमिका निभाई, जो एक उचित आर्क के साथ एक पूर्ण चरित्र में बदल गई। राज खोसला द्वारा निर्देशित, काला पानी उनके करियर की आखिरी हिट फिल्मों में से एक थी क्योंकि इसके बाद उन्होंने कम फिल्मों में अभिनय करना शुरू कर दिया।क़रीब 18 साल बाद एक बार फिर से वो साल 1983 में प्रदर्शित हुई फ़िल्म ‘नास्तिक’ में नायक अमिताभ बच्चन की मां की भूमिका में नज़र आयीं। यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि साल 1954 में आई नास्तिक नाम की फिल्म में भी नलिनी ने काम किया था। उस फिल्म में नलिनी लीड एक्ट्रेस थी जबकी इस फिल्म में नलिनी ने मां का किरदार निभाया था। अमिताभ बच्चन वाली नास्तिक के बाद नलिनी ने खुद को हमेशा के लिए एक्टिंग से दूर कर लिया। नलिनी ने कहा था, - वो फिल्म मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी। मुझे मेरी भूमिका जैसी सुनाई गई थी वैसा फिल्म में कुछ भी नहीं था। मैं इस तरह से काम नहीं कर सकती। इसिलिए मैंने खुद को फिल्मों से पूरी तरह दूर रखना ही बेहतर समझा।
साल 1983 में बनी फ़िल्म ‘नास्तिक’ को छोड़ दिया जाए तो साल 1941 से 1965 के 25 सालों के अपने करियर में नलिनी ने 60 फ़िल्मों में नायिका की भूमिका निभायी। इनमें से साल 1946 में बनी फ़िल्म ‘फिर भी अपना है’ को 1951 में ‘भाई का प्यार’ के नाम से दोबारा प्रदर्शित किया गया था। अशोक कुमार और अजीत के साथ नलिनी जयवंत की जोड़ी ख़ूब जमी। इन दोनों ही अभिनेताओं के साथ नलिनी ने 10-10 फ़िल्मों में काम किया। फ़िल्म ‘निर्दोष’ और ‘नंदकिशोर’ हिंदी के साथ-साथ मराठी भाषा में भी बनी थीं तो नलिनी ने एक गुजराती फ़िल्म ‘वारसदार’ में भी काम किया जो वर्ष 1948 में रिलीज हुई थी। इसके अलावा उन्होंने 9 फ़िल्मों में कुल मिलाकर 39 गीत भी गाए।
साल 2001 में प्रभुदयाल के गुज़रने के बाद नलिनी जयवंत अपने विशाल बंगले में बिल्कुल अकेली रहती थीं। पास ही में उनके भाई का बेटा और उसका परिवार रहता था जो नलिनी जी की देखभाल करता था। हालांकि मशहूर अभिनेत्री नूतन उनके बेटे मोहनीष बहल, बहन तनूजा और उनकी बेटियां काजोल व तनीषा आदि नलिनी जयवंत की करीबी रिश्तेदार थीं, लेकिन उनमें से कोई उनके बुढ़ापे में उनके यहां देखा नहीं गया। 18 फ़रवरी 1926 को जन्मीं नलिनी जयवंत का देहांत क़रीब 85 साल की उम्र में 22 दिसंबर 2010 को हुआ, तो भी बहुत कम फिल्मी सितारे उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए। मृत्यु के बाद होने वाले तमाम पारंपरिक अनुष्ठान उनके भतीजे द्वारा उनके घर से किये गये। नलिनी जी के निधन के फ़ौरन बाद उनके बंगले पर लटके ताले को देखकर मीडिया में खलबली मच गयी और बिना सच्चाई जाने नलिनी के निधन को ‘रहस्यमय मौत’ क़रार दे दिया गया। मतलब यह कि जो रहस्य था ही नहीं, उसपर ही सस्पेंस बना दिया गया और मीडिया की भेंड़चाल में इसे कभी सुधारा भी नहीं गया, क्योंकि उनके यहां कोई प्रवक्ता जैसा नहीं था। बहरहाल, इतनी मशहूर अभिनेत्री का यूँ खामोशी से चले जाना भी बॉलीवुड की उस कड़वी हकीकत को बयान करता है जिसमें कहा जाता है कि यहाँ सिर्फ चढ़ते सूरज को सलाम किया जाता है।
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DHEERAJ BHARDWAJ JEE (DRAMA SERIES INDIAN),
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