विश्व के परम आश्चर्य
गीजा का पिरामिड
चीन की महान दीवार
जॉर्डन में पेट्रा
इटली के रोम में स्थित कोलोसियम
यूकातन मेक्सिको का चिचेन इत्जा
पेरू के क्युसको रिजन में स्थित माचू पिचू
भारत के आगरा में ताजमहल
ब्राजील के रियो डी जेनेरो में स्थित इशु की विशाल प्रतिमा
पीसा की झुकी हुई मीनार
अमेरिका के न्यूयार्क में स्थित स्टेच्यु ऑफ़ लिबर्टी
इन सब के निर्माण के पीछे कई कारण थे समाज, सुरक्षा, भक्ति, भव्यता, युद्ध, प्रदर्शन, मोक्ष, प्रेम आदि !
इतिहास के कितने भी पन्ने पलट लीजिए आपको ऐसी कोई प्रतिमा या संरचना नहीं मिलेगी जो एक पुत्र ने अपनी मां के लिए बनवाया हो। हालांकि 12 जून को हम मातृ दिवस के रूप में जरूर मनाते हैं। लेकिन सोचने वाली बात है कि जिस मां ने हमें जन्म दिया या यूं कहा जाए कि जिस मां ने संपूर्ण मानवता को सृजित किया उसके लिए सिर्फ एक दिन। पूरे विश्व में क्या कोई मां का पुत्र कभी इस योग्य हुआ ही नहीं कि उसने संपूर्ण मानव जाति को यह बताने के लिए की मां का स्थान सर्वोच्च है, किसी भौतिक अस्तित्व की रचना की हो।
आप कहीं भी घूम आइए लेकिन मां और पुत्र के प्रेम का जो वर्णन आपको भारत में मिलेगा वह पूरे विश्व में कहीं नहीं है। सिर्फ एक माँ का मान रखने के लिए जब राम ने 14 वर्ष का वनवास भोगा तब पूरा विश्व उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम कहने लगा। कृष्ण ने माता यशोदा के साथ वात्सल्य की लीलाएं की और उनको अपने मुंह में संपूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन कराएं ऐसा वृत्तांत आपको सिर्फ भारत की भूमि में ही प्राप्त होगा।
आवश्यक नहीं है कि हर दृष्टान्त आपको इतिहास में ही मिल जाए इसीलिए वर्तमान को हमेशा नए व्यक्तित्वयों का सृजन करना पड़ता है ताकि जो अब तक नहीं हुआ वह अब हो सके।
भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित ऐतिहासिक जनपद प्रतापगढ़ के घंटाघर से 13.5 किलोमीटर दूर चमरोधा नदी से कुछ दूरी पर स्थित है एक छोटा सा गांव- चंदीपुर।
जहां पर स्थित है वह मंदिर जो एक पुत्र ने अपनी मां की स्मृतियों को जीवंत रखने के लिए स्थापित किया है।
मां दुर्गा भक्ति धाम चंदीपुर प्रतापगढ़।
कई दशक पहले गोरखपुर से चंदी व मोहन मिश्र अवध के इस क्षेत्र में जब पधारे तब स्थानीय लोगों ने उन्हें बताया की पास से गुजरने वाली मोक्षदा के किनारे जिसमें वर्ष के १२ मास जलधारा प्रवाहित रहती है तुलसीदास के गुरु नरहरि दास का आश्रम हुआ करता था। वर्तमान में इस जगह का नाम इसीलिए नरहरपुर है। सिर्फ इतना ही नहीं वन गमन के समय प्रभु श्री राम ने इसी चरोधा नदी में स्नान करने के उपरान्त आगे के लिए प्रस्थान किया था। उस काल में यह पूरा क्षेत्र विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटी एवं आयुर्वेदिक वनस्पतियों से आच्छादित था। वृक्षों के पत्ते, जड़, छाल आदि में चर्म रोगों को विलोप करने की क्षमता थी इसलिए जो भी इसमें स्नान करता था उसके शरीर के चर्म रोग स्वत: नष्ट हो जाते थे। इसी गुण के कारण इस नदी का नाम पड़ गया - चमरोधा !
ऐसी पवित्र भूमि पर कौन वास नहीं करना चाहेगा?
चंदी और मोहन दोनों ही इस जगह पर सुख पूर्वक जीवन यापन करने लगे।
समय व्यतीत होता गया और चंदी मिश्रा की तीसरी पीढ़ी में तीन भाइयों के साथ रामदयाल मिश्रा का जन्म हुआ।
जिनकी शादी प्रतापगढ़ के ही एक अन्य गांव गौरा की रहने वाली फूल कली देवी से संपन्न हुआ।
जो माता दुर्गा की अनन्य उपासक थी।
परिस्थितियां बदली और माता फूल कली, पति राम दयाल के साथ महानगर मुम्बई में आ बसी। मुम्बई के व्यस्त जीवन में चार बच्चो के पालन-पोषण के उत्तरदायित्व के पश्चात भी मां दुर्गा के प्रति उनकी आस्था कम नहीं हुई।
ज्येष्ठ पुत्र अरूण पर अपनी माँ का बहुत गहरा प्रभाव था। देवी दुर्गा के प्रति मां की यह आस्था उनके भीतर उस भाव को केंद्रित कर रही थी जो भविष्य में चंदीपुर गांव के साथ ही मां और पुत्र के बीच स्नेह को भौतिक स्वरूप में जग विदित करने वाली थी।
नियति ने वही किया जो तय था। 8 दिसंबर दिन गुरुवार सन 2005 में माता फूल कली पंच तत्वों में विभक्त हो कर शून्य में विलीन हो गई।
जलती हुई लपट को देखकर अरुण जी को आभास हुआ
संसार की दो सबसे बडी करूणता है
बिना मां के घर और घर बिना मां
मंदिर तैयार होने से कुछ दिन पहले एक रात भयानक वर्षा और कड़कड़ाती हुई बिजली की गर्जना से गहन निद्रा में लीन अरुण जी के स्वप्न में माता दुर्गा अपने भव्य रूप में प्रकट होकर बोली-
हे पुत्र, जिस मंदिर में तुम मुझे प्रतिस्थापित करने जा रहे हो वहां पर मैं तुम्हारी जननी फूल कली की कृपा से ही विराजने वाली हूं इसलिए सबसे पहले मुख्य द्वार के ठीक सामने उनकी प्रतिमा स्थापित करना अनिवार्य है।
19 मार्च 2010 को मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा के समय ऐसा लग रहा था जैसे मां दुर्गा माता फूलकली के साथ स्वयं विराजने आ रही हों। पूरा क्षेत्र मां दुर्गा भक्ति धाम चन्दीपुर जयजयकार के स्वर से प्रकम्पित हो उठा। नव दिन के नवरात्रि में देश के कोने-कोने से कलाकार, नेता, गायक व भक्त स्वतः ही पहुचने लगे और तब हिन्दुस्तान पेपर ने लिखा- अब तीर्थ हो गया चन्दीपुर धाम।
तब से हर साल का यह क्रम बढता गया। आज हजारों भक्त चन्दीपुर धाम आकर भक्ति व श्रद्धा के वातावरण में स्वयं को भूलकर माता दुर्गा की आराधना में लीन हो जाते हैं।
मां दुर्गा भक्ति धाम चन्दीपुर प्रतापगढ।
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