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पं. रामकिंकर जी उपाध्याय : उपासना का स्वरूप (भाग-३) Pt Ramkinkar Ji Upadhyay : Upasna Ka Swaroop-3

Awadhesh Kumar Pandey 35,309 lượt xem 2 years ago
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"उपासना का स्वरूप" प्रवचनमाला के इस तीसरे और अंतिम क्रम में यह स्पष्ट किया गया है कि जीव ने अपनी सारी ममता अपने शरीर के संबंधों में केंद्रित कर ली है और इस प्रकार वह संसार के नातों और विषयों में ही उलझा है । पर ईश्वर के साथ जो उसका शाश्वत संबंध है, उसे वह मोह और देहाभिमान के वशीभूत होकर भूला हुआ है । इसीलिए जब हम संसार के रिश्ते नातों को महत्व न देकर अकारण कृपा करने वाले उस ईश्वर के साथ अपने सच्चे नाते को अपना लेंगे तभी हमारी उपासना पूरी होगी और हम उसके समीप पहुंच सकेंगे।
ईश्वर तो सभी के हृदय में विराजमान है, अतः एक दृष्टि से देखें तो सारे प्राणी एक समान हैं । लेकिन जो सच्ची उपासना करके ईश्वर के समीप पहुंच पाता है, उसे भगवान अपने ह्रदय में स्थान देते हैं । बस यही अंतर है, उपासक और अन्य प्राणियों में ।
एक और मीठी बात यह है कि उपासना शब्द का सीधा संबंध सगुण उपासना से है । क्योंकि निर्गुण उपासना की परिसमाप्ति तो ईश्वर में ही लीन हो जाने में है और निर्गुण मार्ग की यही मान्यता है कि जीव और ईश्वर में कोई भेद नहीं है । लेकिन सगुण उपासक ईश्वर से सामीप्य तो चाहता है, पर ईश्वर में लीन नहीं होना चाहता। यही उपासना का तात्विक स्वरूप या रहस्य है, यही उपासना का रस है ।

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