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जय गंगा मैया कथा | भार्गव शुक्राचार्य की कथा

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भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन दो भगवान!

Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here - https://youtu.be/j7EQePGkak0

Watch the Short story ''Bhargav Shukracharya Ki Katha' now!

Watch all Ramanand Sagar's Jai Ganga Maiya full episodes here - http://bit.ly/JaiGangaMaiya

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एक समय जब असुर देवताओं में युद्ध चल रहा था तो असुर देवताओं से छिपते हुए ऋषि भृगु के आश्रम में शरण लेते हैं। देवता असुरों का पीछा करते हुए आश्रम पर पहुँच जाते हैं। ऋषि भृगु की पत्नी देवताओं को असुरों को सौंपने से मना कर देती हैं क्योंकि वो उनके शरणार्थी हैं। ब्रह्म देव वहाँ आकर गुरु माँ से कहते है की उन्हें असुरों को शरण नहीं देनी चाहिए जिस पर गुरु माँ उन्हें कहती है की यह आश्रम सभी के लिए खुला है यहाँ पर कोई भी आश्रय ले सकता है। और असुरों ने हमसे आश्रय माँगा है और अब वो यहाँ पर सुरक्षित रहेंगे। देवताओं के जाने के बाद गुरु माँ ऋषि भृगु से इस पर वार्ता करती हैं। ऋषि भृगु गुरु माँ की बात से सहमत होते हैं। असुर ब्रह्म देव की बात से चिंतित हो जाते हैं और उनके द्वारा गुरु माँ को असुरों के ख़िलाफ़ भड़काने की बात पर ब्रह्म देव को खाने के लिए निकल पड़ते हैं। जैसे ही असुर ब्रह्म देव को खाने पहुँचते हैं तो देवता उन्हें रोक देते हैं और फिर से उनमें युद्ध शुरू हो जाता है। असुर जब हारने लगते हैं तो असुर वहाँ से भाग कर ऋषि भृगु के आश्रम में आ जाते हैं। देवता उनके पीछे आश्रम में नहीं घुस पाते। शुक्राचार्य ब्रह्म देव की तपस्या करते हैं और उनसे तपस्या पूर्ण होने पर ब्रह्म देव से आशीर्वाद पाकर अपनी माता से मिलने ऋषि भृगु के आश्रम में आते हैं। शुक्राचार्य आश्रम में राक्षसों को देख कर हैरान हो जाते हैं। गुरु माँ से मिलने के बाद शुक्राचार्य अपनी माता से राक्षसों के आश्रम में होने का कारण पूछते हैं तो गुरु मैं उसे सब कुछ बता देती हैं। तभी वहाँ इंद्र देव आ जाते हैं जो गुरु माँ को कहते हैं की उन्होंने राक्षसों को आश्रम में शरण देकर अच्छा नहीं किया है। गुरु शुक्राचार्य इंद्र देव की बात सुन क्रोधित हो जाते हैं और इंद्र द्वारा अपनी माता के अपमान के बदले श्राप देने लगते हैं तो गुरु माँ शुक्राचार्य रोक देती हैं। इंद्र देव वहाँ से चले जाते हैं और ब्रह्मा जी को लेकर श्री हरी के पास जाते हैं और उनसे कहते हैं की आप ही कोई निवारण करे वो दुराचारी राक्षसों को भृगु जी के आश्रम से निकलें। श्री हरी गुरु माँ के सामने प्रकट होते हैं और उन्हें राक्षसों को आश्रम में शरण ना देने के लिए कहते हैं। देवताओं ने श्री हरी से प्रार्थना की उनकी इस समस्या का समाधान करना होगा। यदि दैत्यों का वध नहीं हुआ तो देवताओं का क्या होगा। देवताओं के अनुरोध पर श्री हरी अपने सुदर्शन को राक्षसों को मारने के लिए भेज देते हैं। सुदर्शन चक्र को आता देख राक्षस गुरु माँ से अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। गुरु माँ सुदर्शन चक्र को आदेश देती हैं की मैं ऋषि भृगु की पत्नी दिव्य आदेश देती हूँ की वापस चले जाए। सुदर्शन चक्र रुक जाता है और श्री हरी वहाँ प्रकट हो जाते हैं और गुरु माँ को कहते हैं की आपको ऐसा नहीं करना चाहिए तो गुरु माँ श्री हरी से कहती हैं की मैंने राक्षसों को अपनी शरण प्रदान की है इसलिए मेरे जीते जी ऐसा नहीं हो सकता। श्री हरी गुरु माँ को मोक्ष प्रदान करते हैं और उनके मारने के बाद सुदर्शन चक्र सभी राक्षसों को मार देते हैं। उन सभी राक्षसों में से एक राक्षस बच कर शुक्राचार्य के पास आता है और उन्हें कहते है की श्री हरी ने आपकी माता को मार दिया है। शुक्राचार्य क्रोधित हो कर अपने पिता भृगु को श्री हरी को दंड देने के लिए कहते हैं लेकिन उसके पिता इस बात का यक़ीन नहीं करते। शुक्राचार्य ने श्री हरी को अपनी माता की मृत्यु का कारण मान कर उन्हें अपना शत्रु मान लेता है। ऋषि भृगु शुक्राचार्य को समझाने की कोशिश करते हैं लेकिन वह उनकी कोई भी बात नहीं मानता। ऋषि भृगु भगवान हरी से अपने पुत्र की गलती को माफ़ करने को कहते हैं। शुक्राचार्य अपनी माता का देह संस्कार करने के बाद प्रतिज्ञा लेता है की वह श्री हरी को इसका दंड देने के लिए विष्णु को जैसे ही श्राप देने लगते हैं तो वहाँ गंगा मैया प्रकट हो कर उसे रोकती हैं। गंगा मैया उसे अपना पुत्र कहती हैं तो शुक्राचार्य उन्हें माता मानने से मना कर देता है। गंगा मैया उसे बार बार समझाती है लेकिन वह नहीं मानता। शुक्राचार्य श्री हरी को श्राप दे देते हैं और उन्हें कहते हैं की आज के बाद वह उनका परम शत्रु है। शुक्राचार्य सौगंध लेता है की वह अब देवताओं के लोक को नष्ट कर देगा। शुक्राचार्य अपने तप से असुरों को प्रकट करता है और देवलोक पर आक्रमण करने के लिए भेज देता है। गंगा मैया उसे देख कर दोबारा समझाने के लिए आती हैं। शुक्राचार्य जब देवताओं पर आक्रमण करने के लिए अपनी दिव्य शक्ति से राक्षसों का आह्वान कर रहे थे तो गंगा मैया ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन शुक्राचार्य नहीं माना। देवताओं के दुश्मन असुरों ने शुक्राचार्य से आकर विनती की के वो असुरों के गुरु बन जाए जो शुक्राचार्य स्वीकार लेते हैं। शुक्राचार्य असुरों को देवताओं पर आक्रमण करने के लिए कहते हैं। शुक्राचार्य के आशीर्वाद से सभी असुर सुरक्षित हो जाते हैं और इंद्र देव और अन्य देवता उनका कुछ भी नहीं बिगड़ पाते। शुक्राचार्य ने असुरों को आदेश दिया की देवताओं को सृष्टि का निर्माण करने से भी रोक दे। देवता महादेव के पास अपनी रक्षा के लिए गुहार लगाने जाते हैं।

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