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ऐसा प्यार, ऐसा पागलपन! || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2024)

शास्त्रज्ञान 17,998 lượt xem 3 weeks ago
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वीडियो जानकारी: 04.09.24, संत सरिता, गोवा

ऐसा प्यार, ऐसा पागलपन! || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2024)

📋 Video Chapters:
0:00 - Intro
0:36 - जीवन की राह का चुनाव
2:27 - नवजात शिशु पर प्रकृति और समाज का प्रभाव
8:21 - जीवन के दो आम केंद्र
12:22 - संत कबीर के दोहे की व्याख्या
17:24 - राम या समाज
21:02 - इज़्जत की भूख
25:44 - अध्यात्म में 'विक्षिप्त' होने का अर्थ
30:17 - राम ही एकमात्र स्वामी
37:36 - सत्यम शिवम सुंदरम
46:10 - देह का रिश्ता बनाम आत्मा का रिश्ता
56:51 - संस्कारों मे लिप्तता
1:02:27 - उम्मीदों का भ्रम
1:05:39 - नरकपुर बनाम अमरपुर
1:08:26 - समापन

प्रसंग:

~ हम किस केंद्र के साथ पैदा होते हैं? राम केंद्र और आम केंद्र क्या है?
~ संस्कार और शिक्षा वास्तव में क्यों होना चाहिए?
~ कब समझे कि जिंदगी सही दिशा जा रही है?
~ कब समझे कि मूर्खता अभी सर चढ़के बोल रही है?
~ दुनिया तुम्हें पागल कहे, तो कोई दिक्कत नहीं, बशर्ते तुम्हारा पागलपन सच्चाई के लिए हो, मुक्ति के लिए हो; तब उसे अपमान की तरह नहीं, सम्मान की तरह लेना।
~ कौन हमसे प्यार करता है, यह मत जानो, यह जानो कि उसकी प्यार करने की औकात है या नहीं।

विवरण:
आचार्य प्रशांत ने जीवन के दो केंद्रों के बारे में गहन विचार प्रस्तुत किए हैं: एक प्राकृतिक केंद्र, जो हमारे शारीरिक और सामाजिक अस्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है, और दूसरा आध्यात्मिक केंद्र, जो आत्मा और सच्चाई की ओर इंगित करता है। आचार्य जी ने बताया कि व्यक्ति को इन दोनों केंद्रों में से एक को चुनना पड़ता है, क्योंकि दोनों केंद्रों पर एक साथ रहना संभव नहीं है।

उन्होंने यह भी बताया कि समाज और शिक्षा हमें एक निश्चित तरीके से जीने के लिए प्रेरित करते हैं, लेकिन असली पहचान और आत्मज्ञान केवल आध्यात्मिक केंद्र के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है। आचार्य जी ने यह स्पष्ट किया कि जो लोग केवल बाहरी दिखावे और सामाजिक मान्यताओं के अनुसार जीते हैं, वे अपने असली मर्म को नहीं जान पाते।

उन्होंने संत कबीर के उद्धरणों का भी उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने बताया कि सच्चा ज्ञान और आत्मा की पहचान केवल तब संभव है जब हम अपने भीतर की गहराइयों में जाएं और अपने अस्तित्व के वास्तविक अर्थ को समझें।

भजन:
जो मैं बौरा तो राम तोरा
लोग मरम का जाने मोरा।

मैं बौरी मेरे राम भरतार
ता कारण रचि करो स्यंगार।

माला तिलक पहरि मन माना
लोगनि राम खिलौना जाना।

थोड़ी भगति बहुत अहंकारा
ऐसे भगता मिलै अपारा।

लोग कहें कबीर बौराना
कबीर का मरम राम जाना।

~ कबीर साहब


संगीत: मिलिंद दाते
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References:

उसे ज़िंदगी और ज़िंदगी के बीच
कम से कम फ़ासला
रखते हुए जीना था
यही वजह थी कि वह
एक की निगाह में हीरा आदमी था
तो दूसरी निगाह में
कमीना था
https://www.hindwi.org/kavita/rajakmal-chaudhari-ke-liye-dhumil-kavita

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