"पति वियोग में उदास उर्मिला को माण्डवी खुशी की समाचार देती है कि उसकी विरह की घड़ियाँ खत्म होने वाली है। आर्य भरत, राम लक्ष्मण और सीता को वापस लाने वन जा रहे हैं। अयोध्या की तमाम प्रजा भी उनके साथ जाती है। तीनों माताएं, गुरू वशिष्ठ मंत्रीगण और सेना साथ में है। मार्ग में श्रंगवेरपुर पड़ता है। यह राम के मित्र निषादराज गुह का राज्य है। एक प्रहरी निषादराज को सूचना देता है कि भरत सेना लेकर चित्रकूट जा रहे हैं। निषादराज को भ्रम होता है कि भरत राम को सदैव के लिये अपने रास्ते से हटाने के प्रयोजन से उनपर आक्रमण करने जा रहे हैं। वो युद्ध का नगाड़ा बजाकर भरत को गंगा किनारे ही घेर लेने का ऐलान कर देते हैं। तभी गाँव के पुरोहित निषादराज को भरत से मिलकर वास्तविकता जान लेने का परामर्श देते हैं। निषादराज अपनी सेना को झाड़ियों के पीछे सचेत कर भरत से मिलने जाते हैं। सुमन्त भरत को निषादराज और राम की मित्रता के बारे में बताते हैं। भरत से मिलकर निषादराज की आशंका गलत साबित होती है। वे भरत को बताते हैं कि राम और सीता घास के बिछौने पर सोये थे और नंगे पाँव चित्रकूट की तरफ गये हैं। दुखी होकर भरत खुद भी आगे की यात्रा नंगे पाँव पैदल करने का निर्णय लेते हैं। आगे बढ़ते हुए भरत भारद्वाज मुनि के आश्रम तक पहुँचते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं। यात्रा जारी रखते हुए भरत सेना के साथ चित्रकूट की धरती पर पहुँचते हैं। कोल और भील लक्ष्मण को सूर्य पताकाओं को लेकर आगे बढ़ती सेना के बारे में सूचित करते हैं। लक्ष्मण वन में लकड़ियाँ काटना छोड़ वापस पर्णकुटी पहुँचते हैं और राम से कहते हैं कि भरत सेना लेकर उनपर आक्रमण करने आ रहा है। लक्ष्मण किसी सम्भावित आक्रमण का सामना करने के लिये धनुष बाण उठा लेते हैं और भरत का वध करने की घोषणा करते हैं। तभी बिजली कौंधने के साथ आकाशवाणी होती है कि लक्ष्मण को उचित अनुचित के बीच का अन्तर कर लेने के बाद ही कोई प्रण करना चाहिये। राम भी लक्ष्मण को अधीर होने से रोकते हैं। इस बीच भरत कुटिया में पहुँचते हैं और बड़े भाई राम के चरणों में गिर जाते हैं। राम उन्हें उठाकर हृदय से लगाते हैं। यह दृश्य देखकर लक्ष्मण आत्मग्लानि से भर उठते हैं और भरत के प्रति उठे अपने गलत विचारों के लिये उनसे क्षमा माँगते हैं। शत्रुघ्न भी वहाँ आ पहुँचते हैं। चारों भाईयों का आपस में मिलाप होता है।
रामायण एक भारतीय टेलीविजन श्रृंखला है जो इसी नाम के प्राचीन भारतीय संस्कृत महाकाव्य पर आधारित है। यह श्रृंखला मूल रूप से 1987 और 1988 के बीच दूरदर्शन पर प्रसारित हुई थी। इस श्रृंखला के निर्माण, लेखन और निर्देशन का श्रेय श्री रामानंद सागर को जाता है। यह श्रृंखला मुख्य रूप से वाल्मीकि रचित 'रामायण' और तुलसीदास रचित 'रामचरितमानस' पर आधारित है।
इस धारावाहिक को रिकॉर्ड 82 प्रतिशत दर्शकों ने देखा था, जो किसी भी भारतीय टेलीविजन श्रृंखला के लिए एक कीर्तिमान है।
निर्माता और निर्देशक - रामानंद सागर
सहयोगी निर्देशक - आनंद सागर, मोती सागर
कार्यकारी निर्माता - सुभाष सागर, प्रेम सागर
मुख्य तकनीकी सलाहकार - ज्योति सागर
पटकथा और संवाद - रामानंद सागर
संगीत - रविंद्र जैन
शीर्षक गीत - जयदेव
अनुसंधान और अनुकूलन - फनी मजूमदार, विष्णु मेहरोत्रा
संपादक - सुभाष सहगल
कैमरामैन - अजीत नाइक
प्रकाश - राम मडिक्कर
साउंड रिकॉर्डिस्ट - श्रीपाद, ई रुद्र
वीडियो रिकॉर्डिस्ट - शरद मुक्न्नवार
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