छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिला आलोर, फरसगांव स्थित एक ऎसा दरबार है। पंचायत की दांयी दिशा में अत्यंत ही मनोरम पर्वत श्रृंखला है। इस पर्वत श्रृंखला के बीचोंबीच धरातल से 100 मी. की ऊंचाई पर प्राचीनकाल की मां लिंगेश्वरी देवी की प्रतिमा विधमान है। आलोर मंदिर का दरवाजा साल में एक ही बार खुलता है। लिंगेश्वरी माता के मंदिर का दरवाजा खुलते ही पांच व्यक्ति रेत पर अंकित निशान देखकर भविष्य में घटने वाली घटनाओं की जानकारी देते हैं। रेत पर यदि बिल्ली के पंजे के निशान हों तो अकाल और घो़डे के खुर के चिह्न हो तो उसे युद्ध या कलह का प्रतीक माना जाता है। पीढि़यों से चली आ रही इस विशेष परंपरा और लोगों की मान्यता के कारण भाद्रपद माह में एक दिन शिवलिंग की पूजा होती है। लिंगेश्वरी माता का द्वार साल में एक बार ही खुलता है।सूर्य उदय के साथ ही दर्शन प्रारंभ होकर सूर्यास्त तक मां की प्रतिमा का दर्षन कर श्रद्धालुगण हर्श विभोर होते है।
पहली मान्यता -कहा जाता है आलोर मंदिर ज्यादातर नि:संतान दंपति संतान की कामना से आते हैं। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति नियमानुसार खीरा चढ़ाते हैं। चढ़ाए हुए खीरे को नाखून से फ़ाडकर शिवलिंग के समक्ष ही (क़डवा भाग सहित) खाकर गुफा से बाहर निकलना होता है। यह प्राकृतिक शिवालय पूरे प्रदेश में आस्था और श्रद्धा का केंद्र है।
दूसरी मान्यता -स्थानीय लोगों का कहना है कि पूजा के बाद आलोर मंदिर की सतह (चट्टान) पर रेत बिछाकर उसे बंद किया जाता है। इस वर्ष रेत पर बिल्ली पदचिह्न अंकित मिला हैं। निशान देखकर भविष्य में घटने वाली घटनाओं का अनुमान लगाया गया है की चोरी लूट पाट अधिक होगा।