भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन दो भगवान!
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ऋषि गर्ग श्री कृष्ण को अपना शिष्य बना लेते हैं और उनको ब्रह्मचर्य का ज्ञान देते हैं। श्री कृष्ण और बलराम को ब्राह्मण जीवन प्रारम्भ हो जाता है। श्री कृष्ण और बलराम भिक्षा माँगने के लिए निकल पड़ते हैं। श्री कृष्ण और बलराम दोनों महर्षि संदीपनि के आश्रम में पहुँचते हैं और उन्हें प्रणाम करते हुए अपना परिचय देते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं की हमें शिक्षा दीक्षा दें। तो ऋषि उन्हें दीक्षा देने के लिए तैयार हो जाते हैं। गुरु माँ उनके रहने का प्रबंध करती हैं। श्री कृष्ण और बलराम का गुरु माँ सुश्रुसाजी सुदामा के साथ उनकी कुटिया में एक साथ रहने का प्रबंध कर देती हैं। सुदामा श्री कृष्ण और बलराम का अपनी कुटिया में स्वागत करता है और उनकी सेवा करते है। महर्षि संदीपनि ने श्री कृष्ण और बलराम को अस्त्र शस्त्र की शिक्षा और चारों वेदों का ज्ञान दिया। उन्होंने दोनों भाइयों को संगीत का भी ज्ञान प्रदान किया। ऋषि संदीपनि श्री कृष्ण और बलराम को योग का ज्ञान देते हैं और कुंडलिनी जागृत करने की विधि का भी ज्ञान देते हैं। शिक्षा लेने के बाद श्री कृष्ण और बलराम सुदामा के पास अपनी कुटिया में बैठ कर बातें करते हैं। ऋषि संदीपनि श्री कृष्ण और बलराम को ध्यान विद्या का ज्ञान देते हैं। श्री कृष्ण और बलराम को ऋषि संदीपनि विदेय यात्रा की विधि सिखाते हैं और उन्हें उसी विधि के द्वारा बद्रीनाथ के दर्शन कराने ले जाते हैं। बद्रीनाथ से वापस लौटते हुए उन्हें रस्ते में ऋषि गर्ग मिल जाते हैं। जब ऋषि गर्ग श्री कृष्ण और बलराम को नमन करते हैं जिसे देख ऋषि संदीपनि हैरान हो जाते हैं और जब उन्हें ऋषि गर्ग उन्हें बताते हैं की श्री कृष्ण स्वयं श्री नारायण हैं तो ऋषि संदीपनि खुद को धन्य मानते हुए श्री कृष्ण को नमन करते हैं। श्री कृष्ण ऋषि संदीपनि को विष्णु रूप में दर्शन देते हैं। श्री कृष्ण और बलराम सुदामा को उसकी माँ से मिलने की बात बताते हैं और माखन देते हैं। ऋषि संदीपनि रात्रि में विदेय यात्रा में हुए विष्णु रूप की बात याद आती है परंतु समझ नहीं पाते हैं क्योंकि भगवान विष्णु ऋषि संदीपनि की स्मृति से उस पल को हटा देते हैं। जब ऋषि संदीपनि इस बारे में गुरु माँ से बात कर ही रहे थे तो वहाँ श्री कृष्ण और बलराम आ जाते हैं और उनसे अपनी विद्या देने की गुरु दक्षिणा माँगने की बात करते हैं। गुरु दक्षिणा के रूप में ऋषि संदीपनि श्री कृष्ण और बलराम से कहते हैं की मेरे द्वारा दी गयी विद्या और शक्तियों का अच्छे कार्यों में ही इस्तेमाल करोगे। इसके पश्चात श्री कृष्ण और बलराम गुरु माँ से गुरु दक्षिणा माँगने को कहते हैं और जब गुरु माँ उन्हें कहती हैं की उनका बहुत समय पहले उनका पुत्र मर गया था क्या तुम उसे वापस ला सकते हो। गुरु माँ दुखी होते हुए श्री कृष्ण से उनके वचन से मुक्त कर देती हैं क्योंकि कोई भी इस वचन को पूरा नहीं कर सकता। श्री कृष्ण, ऋषि संदीपनि और गुरु माँ को उनके पुत्र पुनर्दत्त से मिलवाने का वचन देते हैं। श्री कृष्ण समुद्र किनारे जाते हैं जहां वह स्नान करते हुए डूब जाता है। श्री कृष्ण समुद्र राज से पुनर्दत्त को वापस माँगते हैं तो समुद्र राज उन्हें समुद्र में एक पाँचजन्य नाम का राक्षस है पुनर्दत्त ज़रूर उसी के पास होगा। श्री कृष्ण और बलराम पाँचजन्य राक्षस के पास समुद्र की गहरायी में जाते हैं। श्री कृष्ण और बलराम समुद्र में पुनर्दत्त को खोजने के लिए जाते हैं और वहाँ श्री कृष्ण पाँचजन्य नाम के राक्षस से युध करके उसे मार देते हैं। पाँचजन्य जिस शंख में छुपा बैठा था श्री कृष्ण उसे अपने साथ ले जाते हैं और उसे पाँचजन्य शंख का नाम देते हैं। श्री कृष्ण पुनर्दत्त को खोजने के लिए यमराज के पास जाते हैं। यमलोक के द्वारपाल उन्हें अंदर जाने से रोक लेते हैं। जिस पर श्री कृष्ण उन्हें समझाते हैं लेकिन द्वारपाल उन्हें नहीं जाने देते तो श्री कृष्ण अपने पंज्जनय शंख से शंखनाद करते हैं जिसे सुन यमराज उन पर यमदंड से प्रहार करते हैं जो श्री कृष्ण से टकरा कर वापस चला जाता है जिसे देख यमराज समझ जाते हैं की द्वार पर ज़रूर को आम मनुष्य नहीं बल्कि कोई देवता हैं। यमराज स्वयं बाहर जाते हैं और श्री कृष्ण को वहाँ पाकर उनसे क्षमा माँगता हैं। श्री कृष्ण यमराज से पुनर्दत्त को वापस माँगते हैं तो वो उन्हें पुनर्दत्त वापस कर देते हैं। श्री कृष्ण और बलराम पुनर्दत्त को वापस ऋषि संदीपनि के आश्रम में ले जाते हैं। ऋषि संदीपनि और गुरु माँ पुनर्दत्त को वापस पाकर बहुत खुश होते हैं। गुरु माँ श्री कृष्ण को आशीर्वाद के साथ धन्यवाद करती हैं। श्री कृष्ण और बलराम ऋषि संदीपनि और गुरु माँ से विदा लेकर वापस मथुरा लौट जाते हैं।
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