जय माता दी, हमारे कार्यक्रम दर्शन में आपका तिलक परिवार की ओर से हार्दिक अभिनन्दन. भक्तों समय एक बहुत ही बलवान कालचक्र है जिसका सामना देवताओं एवं असुरों सभी को करना पड़ा. इसी तरह जब इस कलयुग में कुछ दुष्ट आक्रमणकारियों ने हमारे देवालयों को अशुद्ध करना प्रारम्भ किया तो भगवान् के विग्रहो को एक-स्थान से दूसरे स्थान पर प्रस्थापित करना पड़ा, पर उस समय मे कहीं -कहीं ऐसी भी घटनाएं हुईं जहाँ देवता अशुद्धि के कारण स्वयं ही स्थान छोड़कर अन्यत्र चले गए, क्योंकि वो इस कालचक्र के प्रभाव से भली भांति अवगत हैं, भक्तो आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के दर्शन करवाने जा रहें हैं जहाँ माँ शक्ति ने स्वयं स्थान परिवर्तन किया था। तो आइये दर्शन करते हैं उन्ही आदि शक्ति "माँ भुवनेश्वरी सिद्ध पीठ" के ।
मंदिर के बारे में:
भक्तो "माँ भुवनेश्वरी सिद्धपीठ" उत्तराखंड में पौढ़ी गढ़वाल के बिलखेत में सतपुली कस्बे से लगभग ८ किलोमीटर दूर सांगुड़ा गाँव में नारद गंगा की गोद में स्थित एक सुंदर प्राचीन मंदिर है। ये माँ के सिद्ध पीठो में से एक है। यहाँ माँ भुवनेश्वरी की कृपा से भक्तो की समस्त कामनाओ की सिद्धि होती है। माँ भुवनेश्वरी शक्तिवाद की दस महाविद्या देवियों में से चौथी और महादेवी के सर्वोच्च पहलुओं में से एक हैं, देवी भागवत में इन्हे आदि पराशक्ति के रूप में माना गया है।
मंदिर का इतिहास:
भक्तों, लोक श्रुतियों के अनुसार पूर्व समय में जब आक्रमणकारियों ने पूजास्थलों को अपवित्र और खंडित किया तो पांच देवियों ने वीर भैरव के साथ केदारखंड यानि गढ़वाल की ओर प्रस्थान किया था. ये पांच देवियां थीं - माँ आदि शक्ति भुवनेश्वरी, माँ ज्वालपा, माँ बाल सुंदरी,माँ बाल कुंवारी, और माँ राजराजेश्वरी. यात्रा करते हुए पांचो देवी नजीबाबाद पहुंची, उस समय नजीबाबाद बड़ी मंडी थी समस्त गढ़वाल वासी अपनी आवश्यकता का सामान यहीं से खरीदा करते थे, पौढ़ी जनपद स्थित सैनार के नेगी बंधू भी सामान खरीदने यहाँ आये हुए थे. और अपने भक्तों पर कृपा करने के लिए माँ भुवनेश्वरी मातृलिंग पिंडी रूप धारण कर एक नमक की बोरी में प्रविष्ट हो गयी, नेगी वो बोरी लेकर गाँव सांगुड़ा आये तथा विश्राम किया, वापस से बोरी उठाने पर बोरी उठाने में असमर्थ हुए तो उन्होंने उसमे राखी पिंडी को साधारण पत्थर समझकर उसको बोरी से निकालकर बाहर फेंक दिया तथा अपने गाँव की ओर चले गए. रात्रि में माँ ने नेगी को स्वपन में दर्शन देकर अपनी उस पिंडी स्वरुप के बारे में अवगत कराते हुए आदेश दिया की मेरी पिंडी की स्थापना सांगुड़ा में उसी स्थान पर की जाये, नैथाना गाँव के श्री नेत्रमणि नैथानी को भी माँ ने स्वपन्न में यही आदेश दिया। तब विधि-विधान के साथ मंत्रौच्चार सहित माँ की पिंडी की स्थापना 21 मार्च 1757 में सांगुड़ा में की गई। भक्तों, जिस गाँव के लोगो ने माँ के मंदिर के लिए भूमि दान की वो माँ का ससुराल माना जाता है तथा जिस गाँव के लोग माँ की पिंडी को यहाँ लेकर आये उसे माँ का मायका माना जाता है। भक्तों, उस समय स्थापित यह प्राचीन मंदिर आज भी स्थित है, फिर बहुत समय पश्चात मंदिर का जीर्णोद्धार 1981 और 1993 में किया गया था, पर गर्भ गृह आज भी पूर्व-वत ही है। इस सिद्ध पीठ मंदिर के उचित प्रबंधन के लिए 1991 में एक समिति की स्थापना की गयी थी जिसके तत्वाधान में जीर्णोद्धार के अतिरिक्त इस क्षेत्र के सौन्दर्यीकरण के लिए योजनाएं चलाई जा रही हैं।
मंदिर में मुख्य पूजा:
मंदिर के गर्भ ग्रह में विराजित आदि शक्ति माँ भुवनेश्वरी के पिंडी रूप दर्शन कर भक्त भाव विभोर हो उठते हैं. तथा अपने सभी कष्टों को माँ के समक्ष रखकर उनकी सभी कामनाओं की पूर्ती की माँ से प्रार्थना करते हैं. मंदिर का गर्भग्रह बहुत ही सुंदर है जिसकी दीवारों पर कुछ देवी देवताओं के चित्र तथा माँ भुवनेश्वरी को समर्पित पवित्र मंत्र को अंकित किया गया है.
मंदिर में अन्य देव मूर्तियां:
भक्तों, माँ भुवनेश्वरी के साथ ही मंदिर में अन्य देवी देवताओ की उपासना भी होती है, मंदिर में भोलेनाथ महादेव स-परिवार विराजित हैं. नागदेवता, नरसिंह भगवान, काली माँ, और भैरव नाथ की प्रतिमाएं भी मंदिर परिसर में स्थित हैं, भक्त जन इन सभी देवी - देवताओ की पूजा भी भक्ति -भाव से करते हैं।
मंदिर परिसर:
भक्तों, नारद गंगा की गोद में बसा "माँ भुवनेश्वरी सिद्ध पीठ" बहुत ही सुन्दर मंदिर है, चारों ओर पहाड़ियों से घिरे हुए इस मंदिर का दृश्य बहुत ही सुन्दर और मनमोहक है मंदिर में प्रवेश के लिए सीढियाँ चढ़कर जाना पड़ता है, जहाँ सीढ़ियों के पास ही बहुत से घंटे बंधे हुए हैं. माँ के गर्भ गृह के बाहर दीवार पर माँ का एक बीज मंत्र अंकित है, भक्तजन इस मंत्र का जाप करते हुए मंदिर की परिक्रमा करते हैं. मंदिर परिसर बहुत ही सुन्दर और विशाल है, यहाँ भक्तो के लिए संकीर्तन करने का बहुत सुन्दर स्थान बना है , भक्तो मंदिर की शोभा दर्शनीय है, मंदिर परिसर में ही यात्रियों के लिए धर्मशाला की व्यवस्था भी है, मंदिर का प्रांगण इतना विशाल है की यात्रियों के वाहन पार्किंग की भी यहाँ अच्छी व्यवस्था है। मंदिर की ओर से ही जिज्ञासु साधको और विद्यार्थियों को कर्म कांड और शास्त्रों की शिक्षा भी यहाँ दी जाती है। भक्तो कहा जाता है कि जो भक्तजन माँ भुवनेश्वरी की श्रद्धा और भक्ति से पूजा आराधना करते हैं, माता की कृपा से उनके समस्त कार्यो की सिद्धि अवश्य होती है।
Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
श्रेय:
लेखक: याचना अवस्थी
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