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ऋषियों ने शिव का लिंग क्यों काट दिया|लिंग पर जलाभिषेक कैसे शुरू हुआ

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ऋषियों ने शिव का लिंग क्यों काट दिया|लिंग पर जलाभिषेक कैसे शुरू हुआ
शिव पुराण से दारूवन की कथा का वर्णन

दारूवन नाम का एक उपवन था, जिसमें भृगु ऋषि का आश्रम था। उसमें बहुत से शिवभक्त, तपस्वीजन ऋषि लोग भृगु ऋषि के साथ निवास करते थे। एक दिन वे लोग यज्ञ के लिए समिधायें लेने वन में गए हुए थे। उनकी अनुपस्थिति में शंकर जी वहाँ गये। तब क्या हुआ देखिये-

एतस्मिन्नतरे साक्षात् शंकरों नीललोहितः । विरूपं च समाधाय परीक्षार्थ समागतः॥९॥ दिगम्बरोति तेजस्वी भूति भूषण विभूतिषतः। सचेष्टां सकदक्षां च हस्तेलिंग विधारयन्॥१०॥ मनसा च प्रियं तेषां कर्तु वै वनवासिनाम । जगाम तद्वनं प्रीत्या भक्त प्रोतोहरः स्वयम् ॥११॥
तदृष्ट्वाऋषिपल्यस्ताः परंत्राससुपागताः विह्वला। विस्मिताश्चान्यास्समाजम्मुस्तथा पुनः ।॥१२॥

आलिलिंगस्तथाचान्याः करैर्धृत्वा तथा परः। परस्परन्तु संघर्षात्संमग्नास्ताः स्त्रियस्तदा।।१३॥

(शिव पुराण)

अर्थ-इसी समय में साक्षात् नीललोहित शंकर जी विकट रूप धारण किये उनकी परीक्षा के निमित्त वहाँ गये।।९।।
वे साक्षात् दिगम्बर (सर्वथा नंगे) अति तेजस्वी, विभूति रमाये हुए, कामियों के समान (दुष्ट) चेष्टा करते हुए, हाथ में लिंग धारण किये हुये थे ।।१०।।
भक्तों से प्रसन्न होकर उन वनवासियों की मन में भलाई करने के लिए प्रसन्नता से वहाँ गये।।११।।
उनको इस (नग्न) अवस्था में देखकर ऋषि पत्नियाँ बड़ी परेशान हुईं, व्याकुल हो गईं, कई विस्मित होकर वहाँ आ गईं।।१२।।
और हाथों से पकड़ कर उनसे परस्पर आलिंगन करने लगीं। इस प्रकार आलिंगन करने से वे स्त्रियाँ बड़ी प्रसन्न हुईं।।१३।।
एतस्मिनेव समये ऋषिवर्य्याः समागमन्। विरूद्धं तं च ते दृष्टवा दुःखिता क्रोध मूर्छिताः ॥१४॥

तदा दुःखमनुप्राप्तः कोयं कोयं तथा ब्रूवन। समस्ता ऋषयस्ते व शिवमाया विमोहिता ॥१५॥

यदा व नोक्तवान् किंचित्सोवधूतो दिगम्बरः। उचुस्तं पुरूर्षा भीम तदा ते परमर्षयः ॥१६॥

त्वया विरूद्धं क्रियते वेदमार्ग विलोपियत्। ततस्तवदीयं तलिंल्लगं पततां पृथ्वीतले ॥१७।।

(शिव पुराण)

इसी अवसर पर वे सभी श्रेष्ठ ऋषिवर भी वन से लौट कर वापिस आ गए, और वहां इस विरूद्ध कार्य को देखकर वे बड़े दुःखी हुए, तथा क्रोध से बेचैन हो गए।।१४।।

उस समय दुःखित हुए शिव की माया से मोहित ऋषि आपस में बोले यह कौन है?।।१५।।

पर वह नंगा अवधूत शिव कुछ न बोला, तो वे परम ऋषि उस भयंकर पुरूष से कहने लगे।।१६।।

तुम यह देव मार्ग को लोप करने वाला विरूद्ध कार्य करते हो इसलिए तुम्हारा यह लिंग कट कर भूमि पर गिर पड़े।।१७।।
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