अब मैं तीसरा कदम कहां रखू राजा बलि | राजा बलि की कथा | भगवान विष्णु वामन अवतार | Vishnu Puran EP 46
महर्षि कश्यप ने ऋषियों के द्वारा उनका यज्ञोपित संस्कार करवाया वहा से भगवान वामन बलि की यज्ञ शालाकी ओर चले। उनके तेज से प्रभावित होकर महाराज बलि के सभी ऋत्विज उनके स्वागत में खड़े हो गये। महाराज बलि ने सिंहासन पर बैठाकर भगवान वामन का पाद प्रक्षालन किया और चरणोदक लिया। बलि ने कहा- भगवन आपके आगमन से में आज मैं कृतार्थ हो गया और मेरा कुल धन्य हो गया। आप जो भी चाहें, मुझसे नि:संकोच माँग लें। भगवान वामन के बलि के कुल एवं दानशीलता की प्रशंसा करते हुए उनमें मात्र तीन पद की भुमि की याचना की। बलि के बलि के बार बार और माँगने के आग्रह के बाद भी उन्होंने कुछ भी माँगना स्वीकार नही किया। बलि जब भूमि दान संकल्प देने चले, तब शुक्राचार्य उन्हें स्मझाते हुए कहा- ये वामन रूप में साक्षात भगवान विष्णु हैं। तीन पद के बहाने तुम्हारा सर्वस्य ले लेंगे इसपर बलि बोले- गुरूदेव सम्पूर्ण यज्ञ तो भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए होते हैं। यदि वो स्वयं दान लेने के लिए मेरे यज्ञ में उपस्थित हैं तो यह परम सौभाग्य और प्रसन्नता का विषय है। ब्राम्हाण को दान देने का वचन देकर कदापि नही फिर सकता इसपर शुक्राचार्य उन्हें श्रीभ्रष्ट का शाप दे दिया।
आचार्य ने शाप से भयभीत हुए बिना बलि ने भगवान को भूमि का दान दिया संकल्प लेते ही भगवान वामन से विराट हो गये। उन्होंने एक पद में पृथ्वी और दूसरे में स्वर्गलोक को नाप लिए तीसरे पद के लिए बलि को वरूणपाश में बाध लिया बलि ने नम्रता से कहा प्रभो सम्पति का स्वामी सम्पति से बड़ा होता है। आपने दो पद में मेरा राज्य ले लिया अवशेष एक पद में मेरा शऱीर नाप लें तीसरा पद आप मेरे मस्तक पर स्थापित करें। धन्य हो गये महराज बलि आज भक्ति ने अपने अपूर्व त्याग से भगवान को बाँध लिया। भक्ति के वश में होकर भगवान को पाताल में बलि का द्वारपाल बनना पड़ा और सावार्णि मन्वन्तर में इन्द्रपद महाराज बलि को भक्ति का उपहार मिला।