MENU

Fun & Interesting

भगवान विष्णु की वामन अवतार कथा | राम सीता के विवाह की कथा | श्री कृष्ण महाएपिसोड

Tilak 69,905 lượt xem 1 month ago
Video Not Working? Fix It Now

"समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश पर एकाधिकार जमाने के लिये देवताओं और असुरों के बीच कलह होती है। भगवान विष्णु नहीं चाहते हैं कि अमृत की एक बूंद भी असुरों को मिले। इससे वे अमर हो जाते और पृथ्वी पर धर्म का नाश करते रहते। प्रभु ने मोहिनी रूप धारण किया और असुरों को अपने सौन्दर्य व लच्छेदार बातों में ऐसा उलझाया कि उन्होंने अमृत कलश मोहिनी को सौंप दिया ताकि वह अपनी इच्छानुसार इसे देवताओं और असुरों को पिला दे। मोहिनी अमृत कलश प्राप्त कर लेती है लेकिन वह अभी असुरों को और अधिक भ्रमित और अपने वश में रखना चाहती है इसलिये वह राजा बलि से कहती हैं कि शास्त्रों के अनुसार कुलीन पुरुषों को किसी स्वच्छन्द नारी पर अधिक भरोसा नहीं करना चाहिये। आप महर्षि कश्यप के कुल से हैं इसलिये एक बार पुनः विचार कर लें। राजा बलि मोहिनी पर अत्यधिक मोहित हो चुके हैं। वह कहते हैं कि बड़े से बड़ा कुलीन, शूरवीर महात्मा और योगी जब किसी सुन्दर स्त्री के नयन बाण से घायल होकर अपने घुटने टेक देता है तो वह अपना कुल, धर्म, वीरता और तपस्या उसकी ठोकरों में डाल देता है, तब उसे उचित अनुचित, पाप पुण्य का भान नहीं रहता। इस समय वही दशा असुरों की है। मोहिनी असुरों दानवों को माया रचित कलश से नकली अमृत पिलाती है। एक दानव उसे कलश बदलते देख लेता है। वह अमृत पीने के लिये अपना रूप बदल कर देवताओं के बीच बैठ जाता है और अमृत ग्रहण कर लेता है। किन्तु सूर्यदेव और चन्द्रदेव उसका यह छल देख लेते हैं और मोहिनी को उसके बारे में बता देते हैं। दानव वहाँ से भागने का प्रयास करता है। मोहिनी रूप धारण किये हुए भगवान विष्णु अपने चतुर्भुज रूप में आते हैं और सुदर्शन चक्र से उसका शीश काट देते हैं। असुर राजा बलि इसे छल कहता है और देवताओं पर आक्रमण कर देता है। श्रीकृष्ण को यह कथा सुनाते हुए महर्षि सन्दीपनि कहते हैं कि पुराणों में इसी युद्ध का वर्णन देवासुर संग्राम के रूप में किया गया है। चूँकि देवता अमृत पीकर शक्तिशाली हो चुके थे इसलिये इस युद्ध में सभी असुर दानव मारे गये। स्वयं राजा बलि भी देवराज इन्द्र के हाथों मारा गया। महर्षि सन्दीपनि बताते हैं कि दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य संजीवनी विद्या जानते थे इसलिये उन्होंने जिन दैत्यों, असुरों और दानवों के सिर धड़ से अलग नहीं हुए थे, अपनी संजीवनी विद्या से पुनः जीवित कर दिया। राजा बलि को भी पुनर्जीवन मिला। राजा बलि महान विष्णुभक्त प्रहलाद के पौत्र और शूरवीर थे। शुक्राचार्य ने इन्द्र से प्रतिशोध लेने के लिये राजा बलि से सौ यज्ञों का अनुष्ठान कराया। निन्यानबे यज्ञ पूरे हो जाते हैं। दैत्य गुरु शुक्राचार्य कहते हैं कि सौ यज्ञ पूरे होते ही इन्द्रलोक पर राजा बलि का अधिकार हो जायेगा। देवता पुनः भगवान श्रीहरि की शरण में जाते हैं। जब राजा बलि का सौंवा यज्ञ आरम्भ होने वाला था, भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर वहाँ पहुँच जाते हैं और यज्ञशाला बनाने के लिये अपने तीन पग के बराबर भूमि का दान माँगते हैं। राजा बलि हाथ मे संकल्प का जल लेते हैं तभी शुक्राचार्य वहाँ आ जाते हैं और बलि को टोकते हुए कहते हैं कि जिसे वह सामान्य बटुक समझ रहे हैं वह कोई और देवताओं का काम बनाने के लिये अदिति के गर्भ से जन्म लेने वाले स्वयं अविनाशी भगवान विष्णु हैं। वह विश्वरूप धारण की अपने तीन पग में उनका समस्त राजवैभव लेकर इन्द्र को दे देंगे। तब राजा बलि कहता है कि यदि एक उदार और करुणाशील मनुष्य किसी अपात्र याचक की कामना पूर्ण करके दुर्गति भोगता है तो वह दुर्गति भी शोभा की बात होगी। जिन भगवान विष्णु के दर्शन के लिये तीनों लोकों में यज्ञ आयोजित होते हों और वही भगवान विष्णु स्वयं बटुक का रूप रखकर मेरी यज्ञशाला में पधारे हैं तो मेरे लिये यह गौरव की बात है। मैं प्रहलाद का पौत्र हूँ और अपने कुल की मर्यादा को कलंकित नहीं कर सकता। मैं अपना वचन अवश्य पूरा करूँगा। राजा बलि की बातों को शुक्राचार्य अपना तिरस्कार मानते हैं और उसे श्रीहीन होने का श्राप देते हैं। राजा बलि इस श्राप को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि हर मनुष्य की एक दिन मृत्यु होनी है किन्तु मैं मृत्योपरान्त भी अपनी वचनबद्धता के कारण इतिहास में जीवित रहूँगा। इसके बाद वह हाथ में जल लेकर वामन कुमार को तीन पग भूमि दान करने का संकल्प लेते हैं।

श्रीकृष्णा, रामानंद सागर द्वारा निर्देशित एक भारतीय टेलीविजन धारावाहिक है। मूल रूप से इस श्रृंखला का दूरदर्शन पर साप्ताहिक प्रसारण किया जाता था। यह धारावाहिक कृष्ण के जीवन से सम्बंधित कहानियों पर आधारित है। गर्ग संहिता , पद्म पुराण , ब्रह्मवैवर्त पुराण अग्नि पुराण, हरिवंश पुराण , महाभारत , भागवत पुराण , भगवद्गीता आदि पर बना धारावाहिक है सीरियल की पटकथा, स्क्रिप्ट एवं काव्य में बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष डॉ विष्णु विराट जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे सर्वप्रथम दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर प्रसारित 1993 को किया गया था जो 1996 तक चला, 221 एपिसोड का यह धारावाहिक बाद में दूरदर्शन के डीडी नेशनल पर टेलीकास्ट हुआ, रामायण व महाभारत के बाद इसने टी आर पी के मामले में इसने दोनों धारावाहिकों को पीछे छोड़ दिया था,इसका पुनः जनता की मांग पर प्रसारण कोरोना महामारी 2020 में लॉकडाउन के दौरान रामायण श्रृंखला समाप्त होने के बाद ०३ मई से डीडी नेशनल पर किया जा रहा है, TRP के मामले में २१ वें हफ्ते तक यह सीरियल नम्बर १ पर कायम रहा।

In association with Divo - our YouTube Partner

#tilak #shreekrishna #shreekrishnakatha #krishna #shreekrishnamahaepisode"

Comment