आपके साथ भी कई बार ऐसा हुआ होगा कि एग्जाम से ठीक पहले हाथ-पैर कांपने लगे हों, या फिर किसी इंटरव्यू से पहले हथेलियों में पसीना आने लगा हो। लेकिन ये लक्षण कुछ समय बाद अपने आप चले जाते है। लेकिन अगर ये चिंता बिना किसी स्पष्ट कारण के होने लगे, तब जरूर ये चिंता की बात हो सकती है। कई लोगों में ये समस्या चरम पर पहुंचने के बाद उनके रोजमर्रा के कामों और उनकी जिंदगी को प्रभावित करने लगती है। ऐसी हालत में इसे चिंता रोग या एंग्जाइटी डिसऑर्डर कहा जा सकता है। एंग्जाइटी यानि की चिंता एक ऐसी मानसिक बीमारी बनकर उभर रही है जिसकी चपेट में आज आधे से ज्यादा लोग हैं। एंग्जाइटी की चपेट में आए व्यक्ति को चिंता और डर एक साथ लगता है। इस रोग में कभी कभी व्यक्ति का खुद से इतना नियंत्रण खो जाता है कि वह कुछ समय के लिए बेहोश भी हो जाता है। इस डिसऑर्डर की समस्या यह है कि अक्सर इसके साथ अवसाद के लक्षण भी उभरने लगते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाएं जल्दी इसकी शिकार बनती हैं। एंग्जाइटी के प्रमुख लक्षण हैं थकान, सिरदर्द और अनिद्रा हैं। व्यक्ति विशेष के लिए यह लक्षण अलग-अलग भी हो सकते हैं, लेकिन स्थायी डर और चिंता सभी में देखे जाते हैं। एंग्जाइटी डिसऑर्डर के प्रकार जनरालाइज्ड एंग्जाइटी डिसऑर्डर, ऑब्सेसिव कम्पलसिव डिसऑर्डर, पैनिक डिसऑर्डर,पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस, सोशल एंग्जाइटी डिसऑर्डर।छह महीने से अधिक एंग्जाइटी के लक्षण रहने पर इसका प्रभाव तन और मन, दोनों पर पड़ता है। लंबे समय तक रहने पर अवसाद हो सकता है। एंग्जाइटी से ग्रस्त व्यक्ति लोगों से कटा-कटा रहता है और उसमें आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। समस्या बढ़ने पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता घटती जाती है और किसी काम में मन नहीं लगता। याददाश्त भी प्रभावित होती है।
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Doctor: Dr Gauri Shankar Kaloiya, Associate Professor, Clinical Psychology, AIIMS
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