नमस्ते, बतियां दौरावत के सुननेवालोंका आज एक बार फिर स्वागत!
आज बारी है एक खास आख्यान की, जो समर्पित है देवी मां को… नवरात्रि के पावनपर्व पर आइए आज एक बार फिर आपसे मेरी एक बंदिश की कहानी सुनाती हूं।
आज का राग है श्रीकेदार… श्री और केदार इन दो लोकप्रिय रागोंके मिश्रण से यह राग बना है |पूर्वांगमें श्री की धीरगंभीरता और उत्तरांगमें केदार का लालित्य….दोनों मध्यम, दोनों धैवत लेता हुआ यह राग रिषभ के मामलेमें केवल श्री के कोमल रिषभ का प्रयोग करेगा। इसका गायन संध्या के श्री के समय ही होगा।
इस राग के बारे में एक दिलचस्प बात की तरफ आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगी।
राग श्री का नाम है स्त्रीत्व की ओर निर्देश करनेवाला, परंतु मुझे यह राग पुरुषस्वभाव का प्रतीत होता है।.. बातें कम, काम अधिक करनेवाला, धीरगंभीर … वहींपर राग केदार नामसे तो पुरुषवाचक है, परंतु मुझे केदारका स्वभाव स्त्रीसमान ललित, हंसता खिलखिलाता हुआ प्रतीत होता है।
हमारी भारतीय परंपरा में एक संकल्पना है, अर्धनारीनटेश्वर… पुरुष-प्रकृति, शिवशक्ती, एक दूसरे के बिना दोनों अधूरे… एक दूसरे के साथ से दोनों पूर्णत्व को प्राप्त करनेवाले …
इस अर्धनारीनटेश्वर की संकल्पना को अंजाम देनेवाले इस रागमें एक मध्यलय बंदिश सुनते हैं, जिसमें देवी का वर्णन कुछ ऐसे किया गया है
ओंकार नादमयी तुम हो,
शिवके ह्रदयकोषका नाद….
ज्वालामुखी अंतर्मय शिवकी
शक्ति, सृजना, ऊर्जा तुम हो…
Credits:
Written and Presented By: Dr. Ashwini Bhide Deshpande
Creative Ideation: amol Mategaonkar
Audio Recording & Mixing: Amol Mategaonkar
Video Recording & Color Grading: Kannan Reddy
Video Editing: Amol Mategaonkar
Special Thanks to: Shruti Abhyankar
Opening Title Photo Credit: Varsha Panwar
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