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कुमायुं के जजमानों का इतिहास.Kumaoni Rajput

Himalayilog 32,557 lượt xem 3 years ago
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कुमायुंनी जजमानों के कैसे बने जाति संज्ञानाम

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
www.himalayilog.com / www.lakheraharish.com

जै हिमालय, जै भारत। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार कुमायुं के जजमानों के जाति संज्ञानाम को लेकर आया हूं। इससे पहले गढ़वाली बामणों व जजमानों तथा कुमायुंनी बामणों के बारे में वीडियो ला चुका हूं। अब इस मामले में मेरे आगे बढ़ने तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब अवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।
इस मामले में मैं पहले ही साफ कर देता हूं कि मैं इतिहास का उल्लेख कर रहा हूं। किसी को महिमामंडित करने का मेरा कोई उद्देय नहीं है। कुमायुं के जजमानों को लेकर इस आलेख का आधार कुमायुं केसरी बद्रीदत्त पांडे, इतिहासकार डा. शिवप्रसाद डबराल चारण, हिमालय के इतिहासकार एटकिंशन, प्रसिद्ध साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन, इतिहासकार डा. शंतन सिंह नेगी आदि की पुस्तकें तथा कुमायुंनी लोगों से मिली जानकारी हैं। मैं पहले भी कहता रहा हूं कि अधिकतर इतिहासकार मानते हैं कि उत्तराखंड में ८० प्रतिशत क्षत्रिय खस मूल के हैं। हालांकि अब कोई भी यह मानने को तैयार नहीं है कि वे खस हैं। मैदानों से गए वैदिक क्षत्रियों के साथ उनके रोटी-बेटी के संबंध हो जाने से खस राजपूत व मैदानी राजपूत का भेद अब लगभग पूरी तरह से मिट गया है। गढ़वाल की तरह कुमायुं के अधिकतर जजमान भी अब सभी अपनी जड़ें मैदानों में तलाशते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि अधिकतर खस मूल के हैं।

आप जानते ही हैं कि उत्तराखंड कत्यूर शासन तक एक ही प्रशासनिक इकाई था। कत्यूरी शासन का आरंभ 850 ई. के लगभग हुआ और १२ वीं सदी तक ये लगभग समाप्त हो गया। इसके समाप्त होने के बाद गढ़वाल में पंवारों और कुमायुं में चंदों के उदय के बाद दोनों अलग-अलग प्रशासनिक इकाई हो गए।
कुमायुं केसरी बद्रीदत्त पांडे ने कुमायुं के क्षत्रिय जातियों को मैदानों के क्षत्रियों की तरह सूर्यवंशी और चंद्रवंशी के तौर पर विभाजित किया है।वे अकेले इतिहासकार हैं जो कत्यूरियों को सूर्यवंशी मानते हैं, जबकि अधिकतर इतिहासकार कत्यूरियों को खस मानते हैं। यह मैं पहले ही कह चुका हूं। इतिहास साक्षी है कि कत्यूरी राजवंश खस राजवंश था। जैसा कि कत्यूरियों को लेकर बनाई वीडियो में भी कह चुका हूं। यह वीडियों इस चैनल में देख सकते हैं।
चूंकि पांडे जी कत्यरियों को सूर्यवंशी मानते हैं। इसलिए उन्होंने इनको सूर्यवंशी क्षत्रियों की श्रेणी में रखा है। पांडे जी की पुस्तक –कुमायुं का इतिहास – में सूर्यवंशी, चंद्र वंशी व खस क्षत्रियों के तौर पर श्रेणियां बनाई गई हैं। ............................
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